संघ का बेशर्म राष्ट्रवाद

संघी राष्ट्रवाद के तहत कर्ज वसूली में किसान आत्महत्या कर लें, कोई दिक्कत नहीं है...

हरियाणा में चाहे 50000 करोड़ की परिसंपत्ति फूंक दी जाए, लूट ली जाए, संघ के राष्ट्रवाद को कोई खतरा नहीं है...


कर्ज न चुका पाने की स्थिति में 2014 में 5642 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। वहीँ, 2015 में केवल मराठवाड़ा में 1100 किसानों ने आत्महत्या की है। मुख्य सवाल कर्ज वसूली का है।

संघी राष्ट्रवाद के तहत कर्ज वसूली में किसान आत्महत्या कर लें, कोई दिक्कत नहीं है। वहीँ विजय माल्या ने किंगफ़िशर कंपनी के नाम पर (पैसा करोड़ रुपए में) एसबीआई-1600, पीएनबी-800, आईडीबीआई-800, बैंक ऑफ इंडिया- 650, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया-430, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया-410, यूको बैंक- 320, कॉर्पोरेशन बैंक-310, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर-150, इंडियन ओवरसीज बैंक-140, फेडरल बैंक- 90, पंजाब एंड सिंध बैंक-60, एक्सिस बैंक-50 इतना रुपया कर्ज लिया और कुल कर्ज लगभग 11000 करोड़ रुपये हो रहा है।

सरकार की कोई दिलचस्पी विजय माल्या से कर्ज वसूलने में नहीं थी और दो मार्च को माल्या विदेश चले गए. इस प्रक्रिया में संघ के राष्ट्रवादी तत्वों को कोई दिक्कत नहीं है और न ही नागपुर मुख्यालय के राष्ट्रवाद को इससे कोई खतरा महसूस हुआ और इस तरह से राष्ट्रवाद की यह सरकार लाखों-लाख करोड़ रुपये बड़े उद्योगपतियों से वसूलने में दिलचस्पी नहीं है, देश चाहे दिवालिया हो जाए।

हरियाणा में चाहे 50000 करोड़ की परिसंपत्ति फूंक दी जाए, लूट ली जाए, संघ के राष्ट्रवाद को कोई खतरा नहीं है। गुजरात में चाहे जितने नरसंहार किये जाएँ संघ की नजर में सब चलता है लेकिन नारा कोई नहीं लगा सकता है। नारा तो सिर्फ महबूबा मुफ़्ती ही लगा सकती हैं। सरकार उन्ही के साथ बनानी है, संघ को कोई दिक्कत नहीं है।

राज ठाकरे जब कह रहा है कि महाराष्ट्र के अन्दर उत्तर भारतीयों के ऑटो जला दो तो सियार माफिक मान्द में छिपे नागपुरी हुआँ-हुआँ के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं। हुआँ-हुआँ के अलावा इन्होंने कुछ सीखा नहीं है। जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शासन था, तब भी यह हुआँ-हुआँ ही करते थे और अब अमेरिकी साम्राज्यवाद की चेलागिरी कर रहे हैं। इनका राष्ट्रवाद बेशर्म राष्ट्रवाद है, जिसके मापदंड अलग-अलग हैं।

रणधीर सिंह सुमन