इशरत थी निर्दोष, गुनाहगारों को सजा बाकी
इशरत थी निर्दोष, गुनाहगारों को सजा बाकी
केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने सुबूतों के साथ यह साबित कर दिया है कि इशरत जहाँ निर्दोष थी। सीबीआई का दावा है कि 2004 में गुजरात पुलिस के फर्जी एनकाउन्टर में मारी गयी मुम्बई की छात्रा इशरत जहाँ आतंकवादी नहीं थी।
सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ने बुधवार को अहमदाबाद कोर्ट में पहली चार्जशीट पेश करते हुये दावा किया है कि एनकाउंटर में मारे गये तीन लोग आतंकवादी थे। इनके नाम जावेद, अमजद अली राणा और जौशीन थे। ये तीनों अहमदाबाद में आतंकवादी हमले की फिराक में थे लेकिन गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेंद्र मोदी इनके टारगेट पर नहीं थे। सीबीआई के मुताबिक इशरत के आतंकवादी होने का कोई भी सबूत नहीं मिला है।
सूत्रों के मुताबिक समझा जाता है कि सीबीआई की चार्जशीट से यह भी साबित हो चुका है कि राजेन्द्र कुमार और गुजरात के कई दूसरे पुलिसकर्मी फर्जी मुठभेड़ की साजिश में शरीक थे।
दिसम्बर 2009 में वरिष्ठ पत्रकार शेषनारायण सिंह ने इस प्रकरण पर बहुत बारीकी से पड़ताल की थी। यह पुरानी रिपोर्ट आज भी मौजूँ है। आइये देखते हैं शेष नारायण सिंह की दिसम्बर 2009 की रिपोर्ट
गुजरात में मोदी की सरकार अपना लक्ष्य हासिल करने के लिये कुछ भी करने में कोई संकोच नहीं कर रही है। मुम्बई की एक लड़की, इशरत जहाँ को, कुछ तथाकथित आतंकियों के साथ अहमदाबाद में जून 2005 में कथित मुठभेड़ में मार डाला गया था। इशरत जहां के घर वाले पुलिस की इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि उनकी लड़की आतंकवादी है। मामला अदालतों में गया और सिविल सोसाइटी के कुछ लोगों ने उनकी मदद की और अब मामले के हर पहलू पर उच्चतम नायायालय की नज़र है। न्याय के उनके युद्ध के दौरान इशरत जहाँ की माँ शमीमा कौसर को कुछ राहत मिली जब गुजरात सरकार के न्यायिक अधिकारी, एस पी तमांग की रिपोर्ट आयी जिसमें उन्होंने साफ़ कह दिया कि इशरत जहाँ को फर्ज़ी मुठभेड़ में मारा गया था और उसमें उसी पुलिस अधिकारी, वंजारा का हाथ था जो कि इसी तरह के अन्य मामलों में शामिल पाया गया था। एस पी तमांग की रिपोर्ट ने कोई नयी जाँच नहीं की थी, उन्होंने तो बस उपलब्ध सामग्री और पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट के आधार पर सच्चाई को सामने ला दिया था। एस पी तमांग की रिपोर्ट के बाद, सार्वजनिक जीवन के कई क्षेत्रो में साम्प्रदायिकता के जमे होने की ख़बरें आयीं थीं। जहाँ तक गुजरात सरकार और उसकी पुलिस का सवाल है, पिछले कई वर्षों के मोदी राज में वहाँ तो साम्प्रदायिकता पूरी तरह से स्थापित हो चुकी है। इशरत जहाँ के मामले में मीडिया के एक वर्ग की गैर जिम्मेदाराना सोच भी सामने आ गयी थी। ज़्यादातर टी वी चैनलों ने, इशरत के हत्यारे पुलिस वालों की बाईट लेकर दिन दिन भर खबर चलायी थी कि गुजरात पुलिस ने एक खूँखार महिला आतंकवादी और उसके साथियों को मुठभेड़ में मार गिराया था। बहरहाल इशरत जहाँ के फर्जी मुठभेड़ के बारे में जब एस पी तमांग की रिपोर्ट आयी तो कुछ गम्भीर किस्म के पत्रकारों ने अपनी गलती मानी और खेद प्रकट किया लेकिन जो गुरु लोग साम्प्रदायिकता के चश्मे से ही सच्चायी देखते हैं वे चुप रहे, साँस नहीं ली। लेकिन उच्चतम नायायालय ने हस्तक्षेप किया। और इशरत की याद को बेदाग़ बनाने की उसकी माँ की मुहिम को फिर भारतीय लोकतन्त्र और न्याय व्यवस्था में विश्वास हो गया।
इशरत की माँ का आरोप है कि गुजरात उच्च न्यायालय भी राज्य की पुलिस के संघ प्रेमी रुख को ही आगे बढ़ाता है। हालाँकि किसी अदालत के विषय में उनके इस आरोप को सही नहीं ठहराया जा सकता लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उन्हें राहत दी है। हुआ यह था कि जब एस पी तमांग की रिपोर्ट आयी तो गुजरात उच्च न्यायालय ने उस पर रोक लगा दी थी और कह दिया कि उस रिपोर्ट पर कोई भी कार्रवाई नहीं हो सकती थी। शमीमा कौसर ने उच्चतम नायायालय में गुहार की और अब देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला आ गया है कि गुजरात उच्च न्यायालय में इशरत जहाँ केस के फर्जी मुठभेड़ से सम्बंधित सारे मामले रोक दिये जायें। इस स्टे के साथ ही मामले को जल्दी निपटाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है। जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस दीपक वर्मा की अदालत ने सात दिसम्बर को मामले की सुनवाई का हुक्म भी सुना दिया है। शमीमा कौसर को इस बात से सख्त एतराज़ है कि उच्चतम नायायालय में मामला लम्बित होने के बावजूद, गुजरात उच्च न्यायालय मामले को रफा दफा करने के चक्कर में है।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने गुजरात उच्च न्यायालय में प्रार्थना की थी कि एस पी तमांग की रिपोर्ट गैर कानूनी है और उस पर कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिये क्योंकि एस पी तमांग ने जो जाँच की है वह उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। गुजरात उच्च न्यायालय ने नौ सितम्बर के दिन इस रिपोर्ट पर रोक लगा दी थी। उच्च न्यायालय के इसी फैसले के खिलाफ शमीमा कौसर ने उच्चतम नायायालय में अपील की थी जिस पर अब फैसला आया है।
एस पी तमांग की रिपोर्ट में तार्किक तरीके से उसी सामग्री की जाँच की गयी है जिसके आधार पर इशरत जहाँ के फर्जी मुठभेड़ मामले को पुलिस अफसरों की बहादुरी के तौर पर पेश किया जा रहा था। तमांग की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि जिन अधिकारियों ने इशरत जहाँ को मार गिराया था उनको उम्मीद थी कि उनके उस कारनामे से मुख्य मन्त्री नरेंद्र मोदी बहुत खुश हो जायेंगे और उन्हें कुछ इनाम -इकराम देंगे। अफसरों की यह सोच ही देश की लोकशाही पर सबसे बड़ा खतरा है।. जिस राज में अधिकारी यह सोचने लगे कि किसी बेक़सूर को मार डालने से मुख्य मन्त्री खुश होगा, वहाँ आदिम राज्य की व्यवस्था कायम मानी जायेगी। यह ऐसी हालत है जिस पर सभ्य समाज के हर वर्ग को गौर करना पड़ेगा वरना देश की आज़ादी पर मंडरा रहा खतरा बहुत ही बढ़ जायेगा और एक मुकाम ऐसा भी आ सकता है जब सही और न्यायप्रिय लोग कमज़ोर पड़ जायेंगे और मोदी टाईप लोग समाज के हर क्षेत्र में भारी पड़ जायेंगे। ज़ाहिर है ऐसी किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने के लिये सभी जनवादी लोगों को तैयार रहना पड़ेगा वरना मोदी के साथी कभी भी, किसी भी वक़्त महात्मा गाँधी की अगुवाई में हासिल की गयी आज़ादी को वोट के ज़रिये तानाशाही में बदल देंगे। ऐसा न हो सके इसके लिये जनमत को तो चौकन्ना रहना ही पड़ेगा, लोकतंत्र के चारों स्तम्भों, न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया को भी हमेशा सतर्क रहना पड़ेगा।


