कोलकाता में हम
कल माननीय प्रवीण तोगड़िया ने कह दिया कि पूरा बंगाल अब केसरिया है।
बेरोकटोक घर वापसी की चुनौती के बाद, खुल्ले नरसंहार की युद्ध घोषणा के बाद अमित शाह को तो बंगाल में गुजरात ही नजर आ रहा होगा लेकिन उनका रंग लाल है कि केसरिया, थोड़े कनफ्यूजन में हूं।
2021 तक हिंदू राष्ट्र की जो घोषणा हो गयी है और मुसलमानों और ईसाइयों से भारत आर्यावर्त को मुक्त कराके हिंदुस्तान बना डालने का जो एजेंडा है, उसे कोलकाता में बहुत असुरक्षित महसूस करने लगा हूं। कि क्या पता कोई बजरंगी कहीं धुन न डालें।
वैसे भी संघी एजेंडा में जैसे बौद्धों सिखों और जैनियों के घर वापस लाने का संकल्प नहीं है और वह एजेंडा हिडन है, तो समझा जा सकता सबसे ज्यादा ब्राह्मणवादी बंगाल के केसरिया हो जाने के बाद गैरब्राह्मणों और शरणार्थियों और आदिवासियों और अछूतों और स्त्रियों का क्या हाल होने वाला है।
डेरा डंडा उठाकर मोदी की चेतावनी के मद्देनजर कहीं और भागना पड़ेगा, जहां गुजरात का साया न हो। कहां होगी वह जगह, इस केसरिया हुआ जैसे भारत में, यह पहेली बूझ लें तो बतइयो।
ओबामा सैम अंकल पधार रहे हैं म्हारा देश।
सारे सुधार लागू होने वाले ठैरे।
दीदी दिल्ली से आकर कोलकाता की भाषा में फिर जिहाद-जिहाद खेल रही हैं तो मंत्री मदन मित्र की जेल हिरासत के बावजूद पूरी मौज है।
जेल से वे स्थानांतरित होकर अस्पताल के एसी वार्ड में हैं और वहां उनका दरबारे खास और दरबारे आम का चाकचौबंद इंतजाम है बलि।
दीदी की बयानबाजी और अरुण जेटली की गिला शिकायतों की छोड़ें और नवउदारवादी भाइयों बहनों, निश्चिंत रहिये कि ओबामा आका आने से पहले मैदान साफ हो जाना ठैरा।
इस बीच बहुत दिनों बाद चेकअप कराने की वजह से हमारा शुगर लेवल बढ़ा हुआ मिला तो डाक्टरबाबू ने दनादन महंगी महंगी दवाइयां दाग दी हैं।
जब तक नौकरी है भइये, खा भी लेंगे महंगी दवाइयां। लेकिन फिर एअर इंडिया हो गये तो जिंदगी क्या और कितनी मोहलत देगी बता नहीं सकते। लेकिन इस बीच सविता की नजरदारी सख्त हो गयी है और भोर छह बजे तक तो पीसी से प्रेमालाप की मनाही है।
इस्लामोफोबिया
अमेरिका की अब गजब मेहरबानी है।
इस्लामोफोबिया उन्हीं की मेहरबानी है तो अल कायदा, आईसिस, तालिबान और इस्लामिक ब्रदरहुड भी उनकी मेहरबानी है।
तालिबान और अलकायदा के करिश्मा तो खैर मालूम ही होगा।
खाड़ी युद्ध से पहले, अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के खिलाफ पाकिस्तान में जमे तालिबान को हथियार और डालर अमेरिका ने दिये, पूरे अस्सी के दशक में भारत उनसे लहूलुहान होता रहा है जो सिलसिला अब भी जारी है।
1948, 1962, 1965 और 1971 के युद्द में हथियारों के सौदागर अमेरिका का पक्ष क्या रहा है, याद भी करें। हिंद महासागर में सातवें नौसैनिक बेड़ा और दियागो गार्सिया को भी याद करें।
इतने पीछे जाना न चाहे तो इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर को हुई हत्या से पहले उनके भाषण को पढ़ें और सुनें।
अभी अभी व्हाइटहाउस ने मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकवादी संगठन मानने से मना कर दिया है और गार्जियन की खबरों के मुताबिक आइसिस के आकाओं से अमेरिका की प्रेमं पींगे चल रही हैं।
सीआईए के भरोसे हमारी सुरक्षा
अब हिंदुत्व का यह उन्माद अगर मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये का खुल्ला ऐलान कर सकता है और राज्य सरकारें और केंद्र सरकार कार्वाई नहीं करतीं तो भारत को तोड़ने की शुरुआत से कोशिश कर रही सीआईए और दूसरी अमेरिकी एजंसियों के हवाले हुई कारपोरेट हितों के लिए आंतरिक सुरक्षा के छाता तले मध्य एशिया के अमेरिकी वसंत से हम लोग कब तक इस्लामोफोबिया का जाप करते हुए बचे रहेगें, हम यानी हिंदू मुसलमान समेत सारे भारत के सारे नागरिक।
आतंकवाद किसी की पहचान देखकर धमाका नहीं करता और इसके नजारे पूरे मध्यएशिया में देखते रहने के बाद पेशावर में भी भुगत रहा है पाकिस्तान जहां हर पाकिस्तानी ड्रोन के निशाने पर है।
बायोमेट्रिक डिजिटल देश में हम भी अमेरिकी चांदमारी के निशाने पर हैं और हमें इसका अहसास भी नहीं है।
O- पलाश विश्वास