सबसे अश्लील तो वह लिंग है, जो स्त्री अस्मिता के खिलाफ तना है।
अगर हमने मुक्त बाजार चुना है, तो बाजार में सब कुछ बिकता है। सबसे ज्यादा बिकती है स्त्री देह।
यह जो समाज है पितृसत्ता का वह सनीलिओन की कोख नहीं है।
पलाश विश्वास
कल दफ्तर थोड़ी देर से निकला। सोदपुर से निकलते ही एक पागल नंग धढ़ंग सीढ़ी पकड़कर बस की छत पर चढ़ गया।
बस रोककर उसे उतारने में पूरी जनता लग गयी। आधे घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद वह नंगा पागल छत से उतरा।
अब यूं पहले समझ लें कि किन पागलों के हवाले मुल्क हमने सौंप दिया है और बाशौक लालीपाप खाते जाइये! फिर गायब भी हो जाये!
कल शाम कर्नल साहेब भाभीजी के साथ घर चले आयें। उन्हें फिक्र बहुत है कि तेरह मई के बाद हम कहां सर छुपायेंगे। कैसे जियेंगे। बसंतीपुर वाले भी अब ऐसा सोचते नहीं है।
बाकी चरचा लालीपाप बाबा के ताजा करिश्मे पर हुई।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक वेतन महज बीस फीसद बढ़ेगा, जबकि छठे वेतन आयोग में साठ फीसद बढ़ा था वेतन। लेकिन कर्मचारी गदगदा रहे हैं।
आखिर जो जिंदा बचेगा, मलाई मक्खन उड़ायेगा। किस किसका भसान है, कौन किस दरिया में डूबेगा और कहां कहां दरअस डूब गहरानी है किसी को मालूम नहीं है। नको। नको।
सिफारिश के साथ सेक्टर वाइज मैनपावर दर्ज है। जीडीपी का दस फीसद वेतन पर खर्च है। टाइटैनिक बाबा के बजट में इसीलिए सरकारी खर्च में कटौती हुई और चालू योजनाएं भी खत्म हुई।
अब सिफारिशी बगुलाभगतों को चिंता है कि सातवें वेतन मान से अर्थ व्यवस्था का क्या होना है। विकास के लिए संपूर्ण निजीकरण एजंडा है तो विनिवेश निजीकरण का नया नाम है।
सातवें वेतन आयोग को लागू करने के लिए देश भर में हर महकमे में व्यापक छंटनी की तैयारी है।
छंटनी का ताजा नाम उत्पादकता है।
उत्पादकता के सिद्धांत के नाम पचास पार करते न करते काम नहीं तो नौकरी नहीं, के तहत किसी की भी नौकरी जायेगी।
वैसे रियायरमेंट की आयु सीमा 60 से घटाकर 50 करने का ऐलान हो गया है। फिर यह सफाई भी आ गयी कि किसी की नौकरी तैंतीस साल से लंबी नहीं खींचेगी। हर हाल में उस हद के बाद सेवा समाप्त।
समझें कि किसी ने बीस साल की उम्र में नौकरी ज्वाइन की तो त्रेपन में ही उसे अलविदा।

फिर शिक्षा क्षेत्र में 65 साल तक नौकरी जो चल रही है, अब वह गयी। रेलवे के बाद नौकरियां एजुकेशन सेक्टर में सबसे ज्यादा है।
वहां क्या नजारा होगा, इससे समझें कि महाराष्ट्र में सिर्फ मराठी और गुजराती स्कूलों में एक लाख शिक्षकों का काम तमाम है।
अपने सूबे का हिसाब जोड़ लें।
रतन टाटा अब रेलवे के भी मालिक हैं।
कायाकल्प भी वे ही कर रहे हैं और हादसों पर अफसरों से जवाब तलब भी वे ही कर रहे हैं।
प्रभू का कोई किस्सा नहीं है।
अब रेलवे का मेट्रो बुलेट तक किताना विस्तार हुआ, कितना आधुनिकीकरण। वह किस्सा बांचने का मौका नहीं है।
सिर्फ यह गणित समझ लें कि रेलवे में कर्मचारी अठारह लाख से घटते घटते फिलहाल तेरह लाख है। सब कुछ ठेके पर है। और अब कायाकल्प तभी पूरा होगा जब सिर्फ चार लाख कर्मचारी है।
हमने अपने ब्लागों पर कैलकुलेटर के साथ बता दिया है कि पहली अप्रैल, 2016 को आपका कितना वेतन होगा। वह जरूर समझ लें। लेकिन बाकी किस्सा भी वक्त निकालकर पढ़ लें।
मुझे नहीं मालूम वीरेंद्र यादव मुझे जानते होंगे या नहीं, मैं उनका आदर करता हूं बहुत ज्यादा। उनने लिखा हैः
मित्र अतुल अनजान Atul Anjaanके सन्नी लियोन और बलात्कार संबंधी बयान पर वामपंथी नेत्री और सामाजिक-राजनीतिक चिन्तक कविता कृष्णन Kavita Krishnan ने अत्यंत महत्वपूर्ण और सारगर्भित लेख लिखा है. वामपंथी बौद्धिकों के बीच स्त्री और पितृसत्ता को लेकर चल रही बहसों का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए इस लेख में इस मुद्दे का गहरा विवेचन किया गया है. मैं कविता कृष्णन की निष्पत्तियों से व्यापक रूप से सहमत हूँ और अपने साथी एवं मित्र अतुल अनजान से गुजारिश करता हूँ कि वे चालू जुमलों की तात्कालिकता और भीड़ की लोकप्रियता से बचें और सचमुच वामपंथी आधुनिकता और स्त्री योनिकता के अनुकूल अपनी सोच का पुनराविष्कार करें. कठिन रास्तों का चुनाव ही दूरगामी लक्ष्यों के अनुकूल है सीधे सपाट रास्तों का नहीं.
कामायनी महाबल, सीमा मुस्तफा और रुकमिणी सेन से लेकर अरुणा राय, अरुंधती राय, नंदिता दास , कंगना रणावत और कविता कृष्णवल्लरी मुझे बहुत प्रिय हैं और उनके विचारों और उनकी लड़ाई के साथ हूं, हर कीमत पर।
हर स्त्री के साथ उसी तरह हूं, जैसे अपने पहाड़ की तमाम इजाओं, वैणियों के साथ हूं या फिर दुनिया की हर शरणार्थी मां बहन बेटी के गमों में जैसे मेरे ही लहूलुहान दिलोदिमाग हैं।
मैं नीलाभ को अपने समय का बेहतरीन लेखक और कवि मानता हूं। तो मैंने तमाम विवादों के बावजूद निहायत घटिया बाजारु विचलन के बावजूद हमेशा अपने को तसलिमा नसरीन के साथ खड़ा पाया है।
मैं सरेबाजार किसी इंद्राणी के कपड़े उतारने के मीडिया ट्रायल के मामले में भी सुरक्षित शुतुरमुर्गी रेतीली नकाब ओढ़ने से परहेज किया है। इसका पुरजोर विरोध करता हूं।
इन सबका मतलब यह नहीं है कि मैं बाजार के साथ खड़ा हो जाउं।
उस नंदिता दास या उस कंगना रणावत या जो शबाना थीं या जो हमारी प्रिय स्मिता रही हैं, उनसे परिचय के आसार नहीं है, लेकिन मैं उन्हें अपने बेहद करीब पाता हूं।
नस्ली पितृसत्ता के खिलाफ वह जंग लड़ती रही हैं।
फिर भी शायद मैं उतना भी क्रांतिकारी नहीं हूं कि मुक्त बाजार ने जनता को गुलाम बनाये रखने और कत्लेआम के एजंडा को मुकम्मल बेरहमी से लागू करने के जो हथियार बनाये हैं हमारे दिलो दिमाग को बुनियादी मसलों से हाशिये पर डालने के लिए, मैं उन औजारों की वकालत करुं।
मुझे माफ कीजियेगा कि मैं कमसकम किसी कीमत पर कंडोम के खुल्ला विज्ञापन, वियाग्रा, जापानी तेल, राकेट कैप्सूल, जननांगों को मजबूत करने के तौर तरीकों, गोरा बनाने के कारोबार, वशीकरण मंत्र तंत्र यंत्र के हक में नहीं हूं।
और मेरे ख्याल से बाजार में स्त्री देह का कारोबार सभ्यता और मनुष्यता के विरुद्ध है और यह साम्राज्यवादी सामंती उत्पादन प्रणाली में सबसे बेहतरीन, सबसे खूबसूरत, सबसे सक्रिय, सबसे लोकतांत्रिक, सबसे उदार, सबसे त्यागी स्त्री के शोषण उत्पीड़न और उसके अस्मिता विरुद्ध निरंतर बलात्कार का तिलिस्म है यह समूचा विज्ञापन तंत्र मुक्ता बाजार का ग्लाम ब्लिट्ज।
मुझे लगता है कि अतुल अनजान से गलती यह हुई है कि उनने निशाना सनी लिओन पर साधा और यह हमारे वाम दोस्तों की खास तहजीब है कि वे शख्सियत की बातें करते हैं और उसी में उलझे रहते हैं, तंत्र जस का तस बना रहता है। वे तंत्र का विरोध नहीं करते।
सनी लिओन पोर्न स्टार रही है या कोई इंद्राणी किसी हत्या के मामले में अभियुक्त है, तो उनका अपराध काली लड़कियों को गोरा बनाने के फर्जीवाड़ा या देश और देश के सारे संसाधन अश्लील विकास के बेदखली उत्सव से बड़ा नहीं है और गौरतलब है कि संसदीय वामपंथ उसके प्रतिरोध में कुछ भी नहीं कर रहा है।
परिस्थितियों के मुताबिक अपनी आजीविका बतौर यौन कर्म अपनाने वाली स्त्रियों को देखें तो वे कहीं उन भद्र और सभ्य और कुलीन स्त्रियों से ज्यादा स्वंत्र हैं जो कमसकम जानती हैं कि इस मर्दानगी के बाजार में उनकी क्या गत है।
सामाजिक सुरक्षा की चहारदीवारी में आजन्म कैद और मरदों की पहचान, मरदों की जंदगी जीती तिल-तिल घिस-घिसकर मर रही गुलामी को अपनी चमकदार हैसियत समझ रही स्त्रियों के मुकाबले वे ज्यादा समझदार हैं और श्रम का मूल्य वसूल लेने से वे परहेज भी नहीं करते।
उस गाने को फिर से सुन लीजिये, पैसे दे दो, जूते ले लो।
उच्चारण में तनिको फेरबदल कर दे तो समझ जाइये रस्म अदायगी का असल मतलब क्या है आखिरकार। यह जो समाज है पितृसत्ता का वह सनीलिओन की कोख नहीं है।
हमारे लिए यह मामला अश्लीलता का नहीं है और न नैतिकता का मामला यह है कहीं किसी कोण से।
मजहब की बात नहीं करते हम।
हम विशुद्ध अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं।
अगर हमने मुक्त बाजार चुना है तो बाजार में सब कुछ बिकता है। सबसे ज्यादा बिकती है स्त्री देह।
पहले उन सत्ता चमकदार महानों और महामहिमों के हरम के अंदरखाने तनिको ताक झांक कर लीजिये तो देहमंडियों का हकीकत बेनकाब भी हो जायेगा।
इस पूरे तंत्र के लिए कोई सनी लिओन जिम्मेदार नहीं है।
सातवें दशक का किस्सा मशहूर है कि कोई नई टीन एजर हिरोइन सुपरहिट फिल्म की नायिका बन जाने के बावजूद लाइटमैन से लेकर मेकअप आर्टिस्ट को बेहतर तस्वीरों के लिए खुश कर देती थी। इस पर सौ सौ चूहे खाकर राज करने वाली कयामत बरपाने वाली शरीफजादियों ने इतना हंगाम बरपाया कि बेचारी इंडस्ट्री से ही बाहर हो गयी।
हंगामा बरपावने वालियों का राजकाज अभी जारी है।
सनी लिओन अगर अपराधी है तो उन सारी सनियों का क्या कीजिये जिसे बाजार ने अपने जंक माल और नस्ली भेदभाव के जरिये वर्चस्व मजबूत करने का इरादा रखने वालों की बेमतलब खरीद के लिए बाजार में छोड़ रखा है।
द्रोपदी का अपराध यह है कि उसका किस्सा मशहूर है।
राधा का भी अपराध है कि उनका अवैध प्रेम आध्यात्मिक चाशनी में वाइरल है और उसकी वंचना का इतिहास कभी लिखा नहीं गया है, जैसे स्त्री उत्पीड़न की महानायिका बतौर हम न इलियड की हेलेन को देखते हैं, न रामायण की सीता को और न द्रोपदी या राधा को।
सही मायने में उनकी हैसियत भी किसी सुपरहिट हिरोइन की जैसी है और वे स्त्री के शोषण, दोहन और उत्पीड़न के साथ साथ पितृसत्ता के बेहतरीन आइकन हैं।
बहस का मुद्दा सनी लिओन को हम न बनायें तो बेहतर है।
हमने हमेशा निजी अनुभव से पाया है और इसे सबसे बेहतर तरीके से शरत के उपन्यासों में देखा जा सकता है कि स्त्री कोई भी कुरबानी करने को हमेशा तत्पर रहती है और वह हर हाल में हालात की शिकार होती है। यह दरअसल हमारा अपराध है, उसका हरगिज नही। चूंकि सारा पाप धतकरम इस पितृसत्ता का है।

इंसानियत का जज्बा किसी भी सूरत में उनके यहां कम नहीं होता और न मुहब्बत कभी कम होती है या वफा कभी कम पड़ती है।
स्त्री को कटघरे में खड़ा करने से पहले अपने पुरषाकार वजूद के गिरेबां में झांके तो बेहतर।
इस बाजार के खिलाफ हमारी मर्दानगी किसी काम आये तो बेहतर।
बाजार से टकरा नहीं सकते।
अबाध पूंजी मुल्क की तरक्की के लिए हर सूरत में जायज है और गुनाहगार सिर्फ कोई अकेली सनी लिओन।
वाह, क्या बात है!
बाजार स्त्री ने नहीं चुना, बाजार पितृसत्ता ने बनाया है और कंडोम का इस्तेमाल भी वही करता है। जापानी तेल का शौकीन भी वहीं है।
नपुंसकता से फारिग होने की वजह से उस कभी वियाग्रा चाहिए तो फिर राकेट कैप्शूल।
स्त्री को भोग के लिए बुक करना भी मर्दानगी है।
कास्टिंग काउच से लेकर मानव तस्करी का धंधा भी उसी का है और मांस के दरिया का सौदागर भी वही।
फिर भी हम किसी सनी लिओन और उसके विज्ञापनों का महिमामंडन नहीं करते।
इसके बावजूद कि हमें सनी लिओन की आजीविका और नैतिकता के मजहबी सियासती सौंदर्यशास्त्र से कोई लेना देना नहीं है।
मुक्त बाजार की बेहतरीन खूसूरत औजार हैं वे उसी तरह जैसे हमारे बेहद मशहूर अर्थशास्त्री, संपादक, जनता के नुमाइंदे तमाम कातिल बलात्कारी बाहुबलि धनपशु वगैरह-वगैरह है और हमने जिन्हें रब बनाया हुआ है।
सबसे अश्लील तो वह लिंग है, जो स्त्री अस्मिता के खिलाफ तना है।
इस मुद्दे को कृपया सनी लिओन का मुद्दा न बनाइये। यह इस मुल्क की सेहत से गहरा ताल्लुक रखता है और मजहबी सियासती हुकूमती त्रिशूल से जो लहूलुहान है और बाजार जिसे निगल रहा है।
उसी तरह आइलान की तस्वीर जो वाइरल है, उस पर आंसू भी न बहाइये।
मैं वह तस्वीर देखता हूं तो अपनी तस्वीर देख रहा होता हूं।
दरअसल जनमने से पहले ही यूं समझिये कि शरणार्थी का भसान इसीतरह सात समुंदर तेरह नदियों में हो ही जाता है और इंसानियत तमाशबीन होती है।
आपको अब यूरोप, अमेरिका और मध्यपूर्व का शरणार्थी सैलाब देखकर मारे करुणा मतली सी आ रही है और आपके यहां पहले तो देश का बंटवारा हुआ मजहब की वजह से और फिर देश के बंटवारा हो रहा है मजहबी एजेंडे से। कौन शरणार्थी है, कौन नहीं, कहना मुश्किल है। बेदखली विकास हरकथा अनंत है।
आपको अब यूरोप, अमेरिका और मध्यपूर्व का शरणार्थी सैलाब देखकर मारे करुणा मतली सी आ रही है और आपके यहां इस देश के मूलनिवासी आदिवासी हजारों हजार साल से जल जंगल जमीन से बेदखल हैं और शरणार्थी बने हुए हैं।
यूं समझिये कि सलवा जुड़ुम और पूंजी के हित में हो रही अबाध बेदखली के लिए सैन्य राष्ट्र के खिलाफ जन प्रतिरोध में मारे जाने वाले हर चेहरे पर आइलान का चेहरा चस्पां है।
कश्मीर, हिमालय, मध्यभारत, आदिवासी भूगोल, मणिपुर और असम से लेकर समूचे पूर्वोत्तर में , हर दलित गांव में, हर उत्पीड़ित स्तरी की देह में आइलान का चेहरा चस्पां है। तमाम चीखे पिर आइलान है।
देश अभी नये सिरे से बंटा नहीं है।
बाबरी विध्वंस के बाद दंगे हुए हैं खूब।
आतंकी हमले भी कम नहीं हुए।
गुजरात में मां का पेट चीरकर बच्चे की ह्त्या हुई है और उस बच्चा का चेहरा भी आइलान का चेहरा रहा है।
भोपाल गैस त्रासदी का चेहरा भी आइलन है।
आपरेशन ब्लू स्टार और सिख संहार का चेहरा भी आइलन है।
अबाध पूंजी के लिए देश का संविधान खत्म।
अबाध पूंजी के लिए कायदा कानून खत्म।
अबाध पूंजी के लिए मेहनतकशों के हक हकूक खत्म।
अबाध पूंजी के लिए स्त्री दह में तब्दील उपभोक्ता सामग्री।
बाध पूंजी के लिए हमारे बच्चे बंधुआ मजदूर।
अबाध पूजी के लिए युवाजनों के हाथ पांव कटे हुए।
सरहदों और कंटीली बाड़ो के अलावा, सातों समुंदर और तेरह पवित्र नदियों के अलावा बाकी देश भी डूब है रेडियोएक्टिव , जिसमें भसान उत्सव कार्निवाल है और हर जिंदा मुर्दा स्त्री पुरुष बूढ़ा जो ब नागरिक या बेनागरिक है, उसका चेहरा अंततः आइलान है।