उत्तर प्रदेश - सियासी बिसात पर मोहरों की फेरबदल
उत्तर प्रदेश - सियासी बिसात पर मोहरों की फेरबदल
संदर्भ : उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2017
रामेन्द्र जनवार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासी शतरंज की बिसात पर सभी पार्टियाँ आपने मोहरे सेट कर रही हैँ।
बसपा से राज्यसभा सदस्य बनाए गए जुगुल किशोर ने भी खुलकर भाजपा का दामन थाम लिया। अभी उनका राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई तक था।
जुगुल किशोर के विषय में लोगों का कहना है कि ये मायावती के बेहद करीबी लोगों में रहे हैं, कई क्षेत्रों के को-ऑर्डीनेटर रहे, लेकिन दरहकीकत ये मायावती के सबसे बेहतर मनी कलेक्टर रहे हैं।
सियासी पंडितों का कहना है कि जैसे काँग्रेस के केन्द्रीय सत्ता में रहते मायावती ने ताज कारीडोर मामले में बचाव के लिए एक मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए अपने सबसे करीबी आई.ए.एस. अधिकारी पी. एल.पुनिया को काँग्रेस में प्लांट किया, उसी तरह केन्द्र में भाजपा के आने के बाद अपने पुराने कारनामों से बचाव और 2017 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अब जुगुल किशोर को भाजपा में प्लांट किया है। अगर 2017 में प्रदेश में सरकार बनाने में कोई दिक्कत आती है, तब भी जुगुल किशोर मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं।
उधर सपा भी अपनी लामबंदी करने में पूरी तरह जुटी हुई है। छिटके हुए कथित समाजवादियों से अंदरखाने सम्पर्क साधा जा रहा है। जनकल्याणकारी कामों की झड़ी लगाकर दिखाने की कोशिश की जा रही है। अधिकारियोँ को गाँवों में सरकार की उपलब्धियाँ बताने के लिए ढकेला जा रहा है। सरकार की उपलब्धियों के बखान के लिए पार्टी स्तर पर पूरी तरह प्रचार के हरबा हथियार से लैस बेड़े काफी पहले निकाले जा चुके हैं।
इस बिसात पर अगर किसी के मोहरे जिच में फँसे हैं तो वह काँग्रेस है, जिसके पास प्रदेश में ना कारसाज नेतृत्व है और ना कोई टेढ़ी-सीधी कामयाब चालें चल पा रही है।
उत्तर प्रदेश नेतृत्व में बदलाव की चर्चा दो सालों से है, लेकिन 2017 से बस एक कदम दूर रहकर भी केन्द्रीय नेतृत्व बदलाव को अन्जाम नहीं दे पा रहा है। संघर्षशील कार्यकर्ता अगर थोड़े बहुत बचे भी हैं, तो बदलाव को अंजाम तक ना पहुँचा पाने से 2017 को लेकर पूरी तरह निराश हो चुके हैं।
ऎसे में 2017 पूरी तरह बसपा, भाजपा और सपा के बीच सिमटता जा रहा है।


