उद्धव ठाकरे की जीत हुई और सुप्रीम कोर्ट की हार?

उद्धव ठाकरे के विवेक ( नैतिकता) ने सुप्रीम कोर्ट के न्याय की जनता के सामने कलई खोल दी !

मोदी के अमृतकाल (विषकाल) में जब 47 लाख देशवासियों को सरकार ने मौत के घाट उतार दिया हो, देश श्मशान और कब्रिस्तान बन गया हो. सुप्रीम कोर्ट सरकार की जवाबदेही तय करने में नाकाम हो. ऐसे संकट काल में उद्धव ठाकरे की अघाड़ी सरकार ने महाराष्ट्र में शुचिता की मिसाल कायम की. यह बात दीगर है कि ईडी और सीबीआई के दम पर मौजूदा शिंदे सरकार अवैध रूप से महाराष्ट्र में कायम है. अवैध इसलिए :

माननीय उच्चतम न्यायालय

यह कैसा न्याय ?

1.शिवसेना में फूट अवैध !

2.गवर्नर का बहुमत सिद्ध करने के लिए दिया आदेश अवैध

3.शिंदे गुट की वीप अवैध

4.शिंदे की पार्टी अवैध

5.चुनाव आयोग का निर्णय अवैध

6.शिव सेना से टूटकर गए विधायक अवैध

फिर
सरकार वैध कैसे?

उद्धव ठाकरे के विवेक ( नैतिकता) ने सुप्रीम कोर्ट के न्याय की जनता के सामने कलई खोल दी !

हालाँकि कई राजनैतिक घाघ और सत्तापिपासु उद्धव ठाकरे की नैतिकता को राजनैतिक अपरिपक्वता मान रहे हैं. लेकिन आज घनघोर सत्ताभ्रष्ट नेताओं में उद्धव उज्जवल और धवल दिखते हैं. उनका मन इस बात से आहत हुआ कि जिनको पार्टी में सब कुछ दिया वही पीठ में छुरा घोंप कर चले गये, तो फिर सरकार में क्या रहना?

उद्धव ने वो गाना चरितार्थ किया ‘ये दुनिया मिल भी जाए तो क्या है?’.

शाबाश उद्धव ! बाल ठाकरे ने अपना उतराधिकारी चुनते हुए उद्धव के इन्हीं गुणों को देखा होगा. राजनीति में विवेक की शक्ति का लोहा भारत में गांधी जी ने मनवाया था. उसके बाद नेहरु और लाल बहादुर शास्त्री जी तक यह परम्परा चली फिर ऐन – केन सत्ता प्रकरण हावी हो गया. आज तो इस कदर रसातल में पहुँच गया है कि ‘सत्यमेव जयते’ सलीब पर टंगा है और झूठ देश पर राज कर रहा है.

यह भी शिव सेना का इतिहास रहा है कि वो एक पार्टी के तौर पर ‘सडक छाप’ न्याय करने के लिए जानी जाती है. पर उद्धव ने एक शालीन सरकार चलाकर देश में मिसाल कायम की. विशेषकर एक हिन्दुत्ववादी पार्टी होते हुए ‘संविधान सम्मत’ शासन किया. उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी ने भीतर घात सहा पर हिंसा ना की ना होने दी.

उद्धव ठाकरे ने अपनी और अपनी पार्टी की एक नयी पहचान आज भारत में बनाई है. क्योंकि लोकतंत्र संख्या बल से चलता हैं लेकिन संख्या विवेक हीन भीड़ बन जाए तो लोकतंत्र भीड़ तन्त्र बन जाता है और आज भारत में वही भीड़ तन्त्र और तानाशाह झूठ का परचम फ़हरा रहा है. और बाकी संवैधानिक लोकतान्त्रिक संस्थाएं तानाशाह के सामने रेंग रही हैं, चाहे सुप्रीम कोर्ट हो या चुनाव आयोग.

उद्धव ठाकरे की आज जीत हुई और सुप्रीम कोर्ट की हार. ऐसे में भारत की मालिक जनता भी अपना विवेक जगाए और भारतीय राजनीति में ‘विवेकशील’ राजनेताओं को चुने !

– मंजुल भारद्वाज

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व रंगकर्मी हैं।)

Uddhav Thackeray's victory and Supreme Court's defeat?