उनके हत्यारे उनमें से ही हैं जो नहीं चाहते कि कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो
उनके हत्यारे उनमें से ही हैं जो नहीं चाहते कि कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो
उनके हत्यारे उनमें से ही हैं जो नहीं चाहते कि कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो
कश्मीर में 2002 में कश्मीर के बड़े नेता और भारत से बातचीत के पक्षधर अब्दुल गनी लोन की हत्या कर दी गई। ऐसे ही अज्ञात हमलावरों द्वारा। आरोप स्टेट से लेकर पाकिस्तान तक पर लगे। इसके पहले 1990 में मीरवाइज़ मौलवी फ़ारूक़ की हत्या भी ऐसे ही हुई थी।
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2 जनवरी 2011 को विभाजित हुर्रियत के नरम धड़े के प्रमुख प्रवक्ता अब्दुल गनी बट्ट ने कश्मीर बुद्धिजीवियों की भूमिका पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा - मीरवाइज़, लोन और जे के एल एफ के विचारक प्रोफेसर अब्दुल गनी वानी की हत्या भारतीय सेना ने नहीं भीतर के लोगों ने की थी। हमने अपने बुद्धिजीवियों को मार डाला। जहाँ भी हमें कोई बुद्धिजीवी मिला, हमने उसे मार डाला। (देखिये #कश्मीरनामा पेज़ 420 और 'कश्मीर एन्ड शेर ए कश्मीर : अ रिवोल्यूशन डिरेल्ड, पी एल डी परिमू, पेज़ 244)
शुजात सिर्फ़ सेना के आलोचक नहीं थे। उन्होंने पाकिस्तान में पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में सीधे नवाज़ शरीफ़ से पाकिस्तान द्वारा कश्मीरी लड़कों को आतंकवाद का प्रशिक्षण देने पर सवाल किया था। वह ट्रैक टू शांति प्रयासों में भागीदार थे। एक एन जी ओ चलाते थे जो घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों की भलाई के लिए काम करता था। याद दिला दूँ कि उन पर पहले भी हमले हुए थे।
सरकार के विरोध में insane व्यवहार न कीजिये। कश्मीर का कोई मामला इतना सीधा नहीं। ईद के पहले औरंगज़ेब नामक एक सैनिक का भी अपहरण करके उसकी हत्या की गई है।
मैं यहाँ तत्कालीन अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट कॉलिन पॉवेल की वह बात दुहराउंगा जो उन्होंने लोन साहब की हत्या पर कही थी - "हालाँकि उनकी हत्या का ज़िम्मा किसी ने नहीं लिया लेकिन इतना तो तय है कि उनके हत्यारे उनमें से ही हैं जो नहीं चाहते कि कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो।"
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(अशोक कुमार पाण्डेय, “कश्मीरनामा” पुस्तक के लेखक हैं। उनकी एफबी टिप्पणी)


