विद्युत वितरण व आपूर्ति अलग करने का प्रस्तावित संशोधन वापस लेने की मांग।
लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उ0प्र0 ने मांग की है कि गलत ऊर्जा नीति की पुनर्समीक्षा हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की जाये जिसमें ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों व राष्ट्रीय समन्वय समिति को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाये। समिति ने ऊर्जा क्षेत्र की बदहाली के लिए निजी क्षेत्र पर अति निर्भरता की दोषपूर्ण नीति को जिम्मेदार ठहराते हुए मांग की है कि केन्द्र सरकार द्वारा इलेक्ट्रीसिटी एक्ट ’03 में प्रस्तावित संशोधन वापस लिया जाये जिसमें विद्युत वितरण और विद्युत आपूर्ति को अलग-अलग कर विद्युत आपूर्ति के लिये कई लाइसेन्स देने का प्राविधान है। समिति ने अदानी पावर और टाटा पावर द्वारा बिजली दरों में वृद्धि पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाने के बाद 27 अगस्त से 02 अक्टूबर तक बिजली घर बंद करने को ब्लैकमेल बताते हुए केंद्र सरकार से इन कंपनियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने की मांग की है। समिति ने औरंगाबाद का फ्रेन्चाइजी करार रद्द किये जाने का स्वागत करते हुये मांग की है कि उ0प्र0 में भी आगरा का फ्रेन्चाइजी करार तत्काल रद्द किया जाए।

संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों शैलेन्द्र दुबे, डी सी दीक्षित, गिरीश पाण्डेय, सद्रूदीन राना, चन्द्र प्रकाश अवस्थी‘‘बब्बू’’, डी सी शर्मा, श्री पाल यादव, सुरेश शर्मा, आर एस वर्मा, पी के दीक्षित, विनय शुक्ला, पूसे लाल, भगवान मिश्र ने आज यहां एलान किया है कि बिजली संकट के लिए जिम्मेदार दोषपूर्ण ऊर्जा नीति में सार्थक बदलाव हेतु देश के बिजली इन्जीनियर, जूनियर इंजीनियर व कामगार नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी आफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लाइस एण्ड इंजीनियर्स (एन सी सी ओ ई ई ई) के तत्वावधान में संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान 08 दिसंबर को दिल्ली में विशाल राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेंगे। प्रदर्शन में विभिन्न प्रांतों से एक लाख से अधिक बिजली कर्मचारी , जूनियर इंजीनियर और इंजीनियर सम्मिलित होंगे।

उन्होंने कहा कि केंद्र व राज्य सरकारों की गलत ऊर्जा नीति के चलते देश इतिहास के सबसे भीषण विद्युत संकट के दौर से गुजर रहा है। इसी दौरान अदानी पावर और टाटा पावर द्वारा 8000 मेगावाट से अधिक क्षमता के बिजली घरों को दरें बढ़वाने के लिए बंद करना ब्लैकमेल है जिस पर केन्द्र सरकार को सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि निजीकरण का इससे खराब नतीजा और क्या हो सकता है। उन्होंने कहा कि ऊर्जा क्षेत्र में तथाकथित सुधारों के नाम पर विगत दो दशकों से चल रहा बिजली बोर्डों के विखण्डन, निजीकरण व फ्रेन्चाईजीकरण का प्रयोग पूरी तरह विफल रहा है, ऐसे में विद्युत अधिनियम ’03 में एक और संशोधन कर विद्युत वितरण व आपूर्ति को अलग कर विद्युत आपूर्ति का पूरी तरह निजीकरण करना ऊर्जा क्षेत्र को तबाही की ओर ले जायेगा जो व्यापक राष्ट्रहित में नहीं है। अतः केन्द्र सरकार को सर्वोच्च प्राथमिकता पर दोषपूर्ण ऊर्जा नीति की पुनर्समीक्षा करना चाहिए और पुनर्समीक्षा की प्रक्रिया पूरी होने तक निजीरकण, फ्रेन्चाइजीकरण व अधिनियम में संशोधन जैसी तमाम प्रक्रिया रोक देना चाहिए।

समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि घाटे के नाम पर बिजली बोर्डों का विखण्डन किया गया। आज हालात यह है कि बिजली वितरण कम्पनियों का घाटा ढाई लाख करोड़ रूपये से अधिक हो गया है जो तथाकथित सुधारों की विफलता का प्रमाण है। देश में कोयला व गैस का समुचित भण्डार होने के बावजूद अव्यवस्था के चलते एक ओर 30,000 मेगावाट से अधिक क्षमता के बिजली घर ईंधन संकट के चलते प्रभावित हैं तो दूसरी ओर सूखा प्रभावित देश भीषण बिजली संकट से कराह रहा है। उन्होंने कहा कि यू पी ए सरकार की ऊर्जा नीति का परिणाम केजी डी-6 घोटला, कोयला ब्लाक आवंटन घोटाला, अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट घोटाला, दिल्ली निजीकरण घोटाला जैसे अनेक घोटालों के रूप में सामने आ रहा है तो ऊर्जा नीति की पुनर्समीक्षा समय की महती मांग है।

विद्युत अधिनियम ’03 में विद्युत वितरण व आपूर्ति को अलग-अलग करने के प्रस्तावित प्राविधान को जनता से धोखा बताते हुए उन्होंने कहा कि बिजली संकट से ग्रस्त देश में कई निजी कम्पनियों को बिजली आपूर्ति का लाइसेन्स देने से स्पर्धा के बजाय निजी घरानों की सांठ-गांठ के चलते बिजली दरों में भारी वृद्धि होगी और आम जनता की कमर टूट जायेगी। उन्होंने कहा कि व्यापक जनहित में प्रस्तावित संशोधन वापस लिया जाये। निजी घरानों पर अति निर्भरता के कारण बिजली संकट व बिजली दरों में बढ़ोत्तरी को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि बिजली ग्रिड के समुचित संचालन व मुनासिब टैरिफ के लिए कुल उत्पादन क्षमता का 70 से 80 प्रतिशत केन्द्र व राज्य सरकार के नियंत्रण में होना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि देश में 4 अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट निजी घरानों (तीन रिलायन्स व एक टाटा) को दिये गये थे किन्तु टेण्डर में दी गयी दरों मे बाद में मनमानी वृद्धि की अनुमति यू पी ए सरकार ने दी जिससे बिजली दरें बढ़ी और प्रतिस्पर्द्धात्मक बिडिंग का मजाक बन कर रह गया है।

कर्मचारी नेताओं ने कहा कि निजीकरण की ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार किया जाना ऊर्जा क्षेत्र की सबसे प्राथमिक जरुरत है ओड़ीसा में निजीकरण के 15 साल बाद 46 प्रतिशत हानियां हैं। आगरा, नागपुर, औरंगाबाद, जलगांव, भिवांडी में फ्रेन्चाइजीकरण के चलते निजी कम्पनियां भारी मुनाफा कमा रही है जब कि सरकारी वितरण कम्पनियां काफी मंहगी बिजली खरीद कर अत्यधिक सस्ते दाम पर फ्रेन्चाइजी को देने के कारण घाटा उठा रही हैं। निजी कम्पनियों की लूट व मनमाने पन को देखते हुए विगत 10 नवम्बर महाराष्ट्र विद्युत वितरण निगम ने औरंगाबाद फ्रेन्चाइजी का करार रद्द कर दिया है। ऐसे में जरूरी है कि उ0प्र0 सरकार भी आगरा का फ्रेन्चाइजी करार रद्द कर सार्थक पहल करे। सी ए जी ने अपनी रिपोर्ट में आगरा के फ्रेन्चाइजीकरण पर गम्भीर सवाल उठाये हैं और 5000 करोड़ रु से अधिक का घोटाला उजागर किया है। सी ए जी ने रोजा और बजाज घोटाले पर भी गंभीर आपत्तियां की हैं।

उन्होंने मांग की कि बिजली कम्पनियों के सुचारू संचालन, लाइन हानियां कम करना सुनिश्चित करने व बेहतर उपभोक्ता सेवा हेतु ठेकेदारी प्रथा बंद कर संविदा के बजाय सभी रिक्त पदों पर नियमित भर्ती की जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि अव्यवहारिक नई पेन्शन प्रणाली वापस लेकर पुरानी पेन्शन नीति लागू की जाये जिससे बिजली इन्जीनियर, जूनियर इंजीनियर व कामगार न्यायोचित सेवा नैवृत्तिक लाभ व पेन्शन पा सकें।