एक बड़े राजनीतिक षडयन्त्र का हिस्सा थी इशरत जहाँ की हत्या
एक बड़े राजनीतिक षडयन्त्र का हिस्सा थी इशरत जहाँ की हत्या
इशरत जहाँ की माँ शमीमा कौसर का बयान
- हेडलाइन्स टुडे को लीगल नोटिस भेजेंगी
जून, 2004 में गुजरात पुलिस द्वारा फर्जी एन्काउन्टर में मारी गयी इशरत जहाँ की माँ शमीमा कौसर ने कहा है कि इशरत की हत्या एक बड़े राजनीतिक षडयन्त्र का हिस्सा थी। उन्हें इस बात पर भी हैरानी है कि मीडिया सीबीआई जाँच को आईबी संस्था के ऊपर सीबीआई के हमले की तरह प्रस्तुत कर रहा है। जल्द ही उनके वकील इशरत पर झूठे, अपमानजनक और बदनाम करने वाले आरोप लगाने के लिये हेडलाइन टुडे टीवी चैनल को कानूनी नोटिस भेजेंगे और उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करेंगे।
आज जारी एक बयान में शमीमा ने कहा कि गुजरात पुलिस और उसके लोगों ने उनकी बेटी इशरत जहाँ का अपहरण किया, उसे गैर-कानूनी ढंग बंधक बनाये रखा और फिर उसका कत्ल कर दिया। उसकी हत्या एक बड़े राजनीतिक षडयन्त्र का हिस्सा थी। इशरत की हत्या को 'एनकाउन्टर' बताया गया। उसकी हत्या को यह कह कर जायज ठहराने की कोशिश की गयी कि वो आतंकवादी थी। पुलिस ने कहा कि वह तीन अन्य लोगों के साथ मिलकर गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी को मारने के लिये आयी थी। उन्होंने कहा कि यह गुजरात में हुआ पहला एनकाउन्टर नहीं था। पहले भी गुजरात के मुख्यमन्त्री की सुरक्षा के नाम पर ऐसे ही नकली एनकाउन्टरों में कई मुस्लिमों की हत्या की जा चुकी है। असल में ये सारे एनकाउन्टर पुलिस द्वारा की गयी गैर-कानूनी हत्याएँ हैं। इनमें से कई एनकाउन्टरों की जाँच चल रही है और कई में मुकदमे भी चल रहे हैं।
शमीमा नेबताया कि उनकी बेटी इशरत पढ़ाई करने के साथ-साथ ही काम भी करती थी ताकि वह अपने पिता की मृत्यु के बाद अपने भाई-बहन का पालन-पोषण कर सके। जिस दिन से उनकी बेटी की हत्या हुयी है उस दिन से वह कह रही हैं कि उनकी बेटी निर्दोष है। उसका किसी भी आतंकवादी या आपराधिक गिरोह से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं था। उन्होंने अगस्त 2004 में गुजरात उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर कर के अपनी बेटी की बेगुनाही की बात कही थी। शमीमा ने कहा, “मैंने माननीय उच्च न्यायालय से माँग की थी कि मेरी बेटी की बेगुनाही साबित करने और उसके हत्यारों को सजा दिलाने के लिये इस मामले की सीबीआई से जाँच करवाई जाये।“
इशरत की माँ ने कहा कि “गुजरात राज्य की वर्तमान सरकार नौ सालों तक इस मामले की जाँच में तरह-तरह के रोड़े अटकाती रही है ताकि इस जघन्य घटना के दोषियों को कानून से सजा न मिल सके। इस दौरान गुजरात सरकार और उसके वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में बचकानी और शरारत भरी याचिकाएँ दायर की। इन लोगों ने गवाहों पर दबाव डालने के साथ ही जाँच को रोकने के लिये अन्य कई गैर-कानूनी हथकण्डे भी अपनाए। मेरे वकीलों ने न्याय के रास्ते में आने वाली हर मुश्किल का सामना किया ताकि वो सच को सबके सामने ला सकें। सितम्बर 2009 में मजिस्ट्रेट श्री एस पी तमांग की न्यायिक जाँच की रिपोर्ट में कहा गया कि मेरी बेटी निर्दोष थी और उसे गुजरात पुलिस के लोगों ने मारा है। गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त की गयी श्री आर आर वर्मा की अध्यक्षता वाली एसआयीटी ने भी 2011 में इस एनकाउन्टर को फर्जी माना था और कहा था कि इशरत को एनकाउन्टर के पहले ही हिरासत में मार दिया गया था। 2011 में गुजरात उच्च न्यायालय के निर्देश पर इस मामले की जाँच सीबीआई को सौंपी गयी और हत्या समेत अन्य कई गम्भीर अपराधों की एफआईआर दर्ज की गयी।“
उन्होंने कहा कि सीबीआई उनकी बेटी समेत तीन अन्य लोगों की हत्या की जाँच कर रही है। यह जाँच उच्च न्यायालय की निगरानी में हो रही है। जाँच की प्रगति रिपोर्ट नियमित रूप से उच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत की जाती रही है। उन्हें हमेशा से उच्च न्यायालय में पूरा विश्वास रहा है। उन्होंने हमेशा यही प्रार्थना की है कि उच्च न्यायालय न्याय के लिये किये गये उनके संघर्ष को व्यर्थ न जाने दे। सीबीआई जाँच में पहले ही गुजरात के कई बड़े वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और उनके लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। सीबीआई जाँच से यह जाहिर हो चुका है कि 2004 में हुये इशरत एवम् तीन अन्य लोगों के फर्जी एनकाउन्टर के षडयन्त्र में गुजरात पुलिस के अधिकारियों के साथ ही अन्य लोग भी शामिल थे।
शमीमा ने कहा कि 14 जून, 2013 को उच्च न्यायालय में हुयी सुनवाई में सीबीआई ने अदालत के सामने जो सबूत पेश किये हैं उनसे इस घटना के पीछे एक बड़े षडयन्त्र के छिपे होने का अंदेशा जाहिर होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि आईबी के वरिष्ठ अधिकारी राजेन्द्र कुमार भी इस षड्यन्त्र में शामिल थे। सीबीआई के वकील ने 14 जून, 2013 को अदालत में कहा कि उनकी जाँच से यह जाहिर होता है कि राजेन्द्र कुमार को न केवल उनकी बेटी को गैर-कानूनी ढंग से बंधक बनाये जाने की जानकारी थी बल्कि वो इस ऑपरेशन में दिशा-निर्देश भी दे रहे थे। शमीमा ने कहा कि “मैं यह जानकर दुःखी और हैरान हूँ कि राजेन्द्र कुमार को सीबीआई द्वारा न्यायिक हिरासत में लेकर पूछताछ करने से बचाने का प्रयास किया जा रहा है। मुझे इस बात पर भी हैरानी है कि मीडिया सीबीआई की जाँच को आईबी संस्था के ऊपर सीबीआई के हमले के तरह प्रस्तुत कर रही है। मेरे विचार से ज्यादा परेशानी और शायद ज्यादा खतरनाक बात यह है कि आईबी जैसी संस्था के बड़े अधिकारी किसी साम्प्रदायिक और राजनीतिक एजेण्डे को आगे बढ़ाने के लिये अपने पद का दुरुपयोग कर सकते हैं।“ उन्होंने कहा कि देशहित में ऐसे लोगों को आईबी से छाँट कर बाहर निकाला जाना चाहिये ताकि सभी देशवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इशरत की माँ ने कहा कि सीबीआई की जाँच बिल्कुल सही दिशा में आगे बढ़ रही थी। इस जाँच को धक्का पहुँचाने के लिये एक निजी टीवी चैनल हेडलाइन टुडे पर सोचे-समझे तरीके से एक बदनियती भरा अपुष्ट ऑडियो टेप चलवाया गया। आईबी की इस कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग में उनकी बेटी इशरत पर लगाये गये आरोपों पर कोई कुछ नहीं कह रहा है। लेकिन उच्च न्यायालय में सुनवाई के ठीक एक दिन पहले यानी 13 जून, 2013 को एक निजी टीवी चैनल द्वारा इन ऑडियो टेपों को चलाया जाना न केवल इन्हें सन्देहास्पद बनाता है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि वे लोग अपराधी को बचाने के लिये बेचैन हैं । उन्होंने बताया कि उनके वकील इशरत पर झूठे, अपमानजनक और बदनाम करने वाले आरोप लगाने के लिये हेडलाइन टुडे टीवी चैनल को कानूनी नोटिस भेजेंगे और उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करेंगे।
टीवी पर इस जाली ऑडियो टेप के आने के अगले ही दिन यानी 14 जून, 2013 को गुजरात के एडिशनल एडवोकेट जनरल ने उच्च न्यायालय में इस जाली षडयन्त्रपूर्ण सीडी को लहराते हुये इसे सबूत के रूप में शामिल किये जाने को लेकर लम्बी बहस की। इसके बाद तो इस कुत्सित षडयन्त्र का रहस्य और मकसद सबके सामने साफ हो गया। गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार के इस खोखले सबूत को अस्वीकार करते हुये उसे नागरिकों की रक्षा करने के उसके संवैधानिक कर्तव्य की याद दिलायी। माननीय न्यायालय ने इस फर्जी एनकाउन्टर की जाँच में लगातार रोड़े अटकाने के लिये राज्य सरकार की आलोचना भी की।
उन्होंने कहा कि “मैं अपनी बेटी पर आतंकवादी होने या किसी भी आतंकवादी समूह से सम्पर्क रखने के तमाम आरोपों और बयानों का कड़ा विरोध करती हूँ। इससे पहले भी झूठी, मनगढ़न्त और आधारहीन खबरों के सहारे मेरी बेटी को आतंकवादी ठहराने की कोशिशें की जा चुकी हैं। लेकिन यह बात महत्वपूर्ण है कि न्यायिक और निष्पक्ष जाँच में इशरत को हमेशा ही बेगुनाह पाया गया है। गुजरात सरकार ने उच्च न्यायालय में होने वाली हर सुनवाई में इशरत एवम् अन्य की हत्या के मामले की जाँच कर रही सीबीआई टीम को भटकाने और परेशान करने की कोशिश की। चूँकि मैं इस मामले पर लगातार नजर रखे हुये हूँ इसलिये मैं कुछ सवाल पूछना चाहती हूँ। गुजरात सरकार को आईपीएस सतीश वर्मा को इस जाँच से हटाने की इतनी बेचैनी क्यों थी ? इस ईमानदार और गहरी जाँच से ऐसा कौन सा सच सामने आ सकता है जिससे गुजरात सरकार डर रही है ? वो कौन लोग हैं जिन्हें गुजरात सरकार बचाना चाहती है ?”
शमीमा ने कहा कि यह उनका अधिकार है कि वह पूरा सच जानें कि उनकी बेटी इशरत जहाँ को किसने मारा ? उसकी हत्या की साजिश में कौन-कौन लोग शामिल थे ? वो कौन लोग थे जो एक मुस्लिम युवती की हत्या से लाभ लेना चाहते थे ? न्याय पाना उनका मौलिक अधिकार है और इसके लिये जरूरी है कि इस षड्यन्त्र से पर्दा हटे। जो लोग उनकी मासूम बेटी की हत्या के लिये दोषी हैं उन पर मुकदमा चले और कानून उन्हें सजा दे।


