संदीप पांडे की छवि एक गांधीवादी समाजसेवी की थी और है। इंजीनियरी की पढ़ाई उनके व्‍यक्तित्‍व का एक आयाम है। यह आयाम उनके सामाजिक कामों की तुलना में सबसे छोटा है
अभिषेक श्रीवास्तव
एक आदमी एक साथ पांच काम कर सकता है। अगर वह पेशे से शिक्षक है, तो खर्चे-पानी के लिए कहीं पढा-लिखा सकता है। अगर वह निजी जीवन में गांधीवादी है, तो चरखा कात सकता है। अगर वह समाजसेवी भी है, तो सामाजिक आंदोलनों का हिस्‍सा हो सकता है। सामाजिक कामों को साकार करने के लिए वह अपना एनजीओ चला सकता है। एनजीओ से वह आरटीआइ कर सकता है। आरटीआइ से वह भ्रष्‍टाचार से लड़ सकता है। यह सब कुछ करते हुए वह पुरस्‍कार भी पा सकता है।
संदीप पांडे को हमारा समाज किस रूप में जानता है? मसलन, कितने लोग जानते थे कि वे पेशे से इंजीनियर हैं और बीएचयू में इंजीनियरिंग पढाते हैं? शायद, बहुत कम।
संदीप पांडे की छवि एक गांधीवादी समाजसेवी की थी और है। इंजीनियरी की पढ़ाई उनके व्‍यक्तित्‍व का एक आयाम है। यह आयाम उनके सामाजिक कामों की तुलना में सबसे छोटा है। उन्‍हें अगर किसी संस्‍थान की फैकल्‍टी से हटा ही दिया गया, तो ऐसा क्‍या तूफान आ गया? क्‍या हम उन्‍हें महज इंजीनियरिंग के एक प्रोफेसर तक सीमित कर देना चाह रहे हैं? क्‍या संदीप पांडे को बीचयू से हटाया जाना ही इस बात का साक्ष्‍य है कि शैक्षणिक संस्‍थाओं का भगवाकरण हो रहा है? भगवाकरण के तो और भी कई मजबूत साक्ष्‍य मौजूद हैं। एफटीआइआइ से लेकर आइआइटी और आइसीएचआर तक ढेरों उदाहरण हैं। ऑक्‍युपाइ यूजीसी चल ही रहा है। एक भगवा और ब्राह्मणवादी संस्‍थान से संदीप पांडे को नहीं हटाया जाएगा तो और किसे हटाया जाएगा?
ऐसा हमेशा नहीं हो सकता कि आप समाज में इंकलाब भी लाते रहें और सत्‍ता-पोषित संस्‍थानों में पेशेवर ज्ञान भी बांटते रहें। बीएचयू या किसी भी शिक्षण संस्‍थान की स्‍वायत्‍तता एक पाखण्‍ड है। इसे जितनी जल्‍दी समझ लिया जाए उतना बेहतर है। अगली बार यह स्थिति न आने पाए कि किसी को संस्‍थानों से हटाया जाए तो हम लोग हल्‍ला मचाने लगें। बेहतर हो कि संदीप पांडे जैसे दूसरे सरोकारी लोग जिनकी छवि मूलत: सामाजिक कामों से बनी है, वे माहौल को देखते हुए खुद ही इन संस्‍थानों का बहिष्‍कार कर दें। लडकों को अच्‍छा-बुरा इंजीनियर बनाने के लिए हमारे यहां ढेरों गुरुघंटाल बैठे हैं। संदीप पांडे जैसे ईमानदार लोग अच्‍छा मनुष्‍य बनाने का काम करें, ज़रूरत इस बात की ज्‍यादा है।