एक वोट - एक दस का नोट
एक वोट - एक दस का नोट
भोपाल। भला आज के जमाने में दस का नोट ? जी हाँ यह मजाक की बात नहीं है। मध्य प्रदेश में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) सीपीआई (एम्)- के उम्मीदवारों के अभियान में यह एक प्रमुख आव्हान है। पार्टी हर सभा-जनसंपर्क और चौपाल बैठकों में इस पर अमल करने पर जोर दे रही है।
पार्टी के राज्य सचिव बादल सरोज ने कहा कि भाजपा ने प्रत्येक विधानसभा सीट पर खर्च के लिए आठ करोड़ रुपया निर्धारित किया है और कांग्रेस बुरी से बुरी हालत में भी पांच करोड़ तो खर्च करेगी ही। एक और सदाबहार पार्टी है- बसपा - मित्रों की सवारी ही हाथी है जिसका चारा ही उसके दस मतदाताओं के सप्ताह भर के भोजन से कम नहीं होता। इस चुनाव में साइकिल को भी भरोसा है कि यूपी के उसके बड़-बब्बा अगर छीजन में भी साझा करेंगे तो सौ-दो सौ करोड़ तो आ ही जायेगा। उन्होंने कहा कि इन महारथियों के बीच एक वोट-दस का नोट का नारा लेकर जाकर हम क्या करना चाहते हैं।
श्री सरोज ने कहा कि असल बात यह है कि चुनाव भी अन्य राजनीतिक संघर्षों की तरह संघर्ष का ही एक मोर्चा है। आपकी राजनीतिक-सांगठनिक कार्य-प्रणाली और प्राथमिकताये चुनाव के लिए अलहदा नहीं हो सकती। हमारी पार्टी के एक प्रत्याशी हैं : झमक लाल कोल। अनुपपुर जिले के अमरकंटक वाली पुष्पराजगढ़ सीट से मैदान में हैं। हम जब भी उनके इलाके में मीटिंग करने गये हैं- कोई सात मिनट की पैदल चढ़ाई वाली ऊँचाई पर सरई गाँव के बने अपने घर में उन्होंने चावल और थोड़ी सी दाल का भोजन कराया है। अनेक बार तो वे उबले मक्के से ही काम चला लेते हैं। उनके झोंपड़ी और मकान के बीच परिभाषित किये जाने वाले घर में सारी सम्पत्ति पाँच हजार की भी नहीं होगी। इस कामरेड ने दिग्विजय सिंह का कुर्ता पकड़ कर उन्हें तब रोक लिया था जब वे मुख्यमंत्री थे। झमकलाल की अगुआई में इस पहाड़ पर पिछली बीस पच्चीस वर्षों में कुछ नहीं तो दस से पंद्रह हजार एकड़ जमीन पर आदिवासियों ने कब्जे किये हैं। वे अकेले ऐसे नहीं हैं- सीधी जिले की धौहनी सीट के युवा आदिवासी प्रत्याशी बलराज सिंह गोंड पिछले दस महीनो से पदयात्रा और साइकिल जत्था निकाले हुये, रीवा जिले की सिरमोर सीट के प्रत्याशी जोखूलाल कोल ने ग्यारह अक्टूबर को हुयी बैठक में बताया था कि पंद्रह दिन पहले एक रिश्तेदार से माँगी मोटर साइकिल बैठ गयी है- डेढ़ हजार की मरम्मत माँग रही है। वे उसकी जुगाड़ में लगे थे।
माकपा नेता ने कहा कि सीपीआई (एम्) के प्रायः सभी उम्मीदवारों की कहानी झमक लाल-बलराज सिंह-जोखूलाल जैसी ही है। करोड़पति तो सीपीआई (एम्) का कोई भी उम्मीदवार नहीं है। बर्तन-कपडे-टीवी-पंखे जोड़-जाड कर लखपति भी शायद ही कोई निकले। रीवा की सेमरिया के रोहित और मुरेना की जौरा सीट के अशोक तिवारी मध्यमवर्गी किसान परिवार से जरूर हैं, मगर जबसे लाल झंडे के होलटाइमर बने हैं तबसे घर की खेती-वेती में उनका हिस्सा इतना ही है कि रसद भर आ जाती है। बालाघाट की वारासिवनी के युवा प्रत्याशी भूपेन पटले का परिवार ही अत्यंत लघु कृषक या सीमान्त किसान है। इंदौर जिले की आंबेडकर नगर (महू) सीट से भाजपा के चर्चित कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ इंदौर की पंद्रह साल से ज्यादा पहले से बंद हुकुमचंद मिल का बदली मजदूर अरुण चौहान मैदान में है तो भिंड जिले की गोहद सीट पर एक पत्थर तोड़ने वाले मजदूर का पढ़ा लिखा बेटा प्रेम नारायण माहोर डटा हुआ है।
श्री सरोज ने कहा कि इनमे से किसी का भी जिक्र आपको अखबारों में नहीं मिलेगा। टी वी में चमकते नहीं दिखेंगे ये सब। मगर यकीन मानिए, इतिहास यही लोग रचेंगे। ऊसर में हरियाली और मरुथल में पानी इन्हीं जैसों की दम पर आयेगा क्योंकि गटर कितनी गहरी क्यों न हो आज तक कोई नर्मदा-सोन-चम्बल उनसे नहीं निकली। चट्टानों की उथल-पुथल के बीच उन्हें चीर कर बाहर आई धाराओं ने ही धरती पर नदियों को जीवित किया है। कारपोरेट की गटर नालायक बनाम खलनायक की दुर्घटनाएं भर करवाने का स्वांग बुन सकती हैं, इतिहास रचने का बूता इसका नहीं है।
माकपा नेता ने अपील की कि इन आठों के संघर्ष में यदि कोई योगदान देना चाहें तो जरूर दीजियेगा। उन सीट्स पर रहने वाले परिचितों-मित्रों-नातेदारों को सन्देश भेज कर भी आप ऐसा कर सकते हैं। इनके लिए चुनाव निधि में मदद भेज कर भी आप योगदान दे सकते हैं। जो ऐसा करना चाहें वे सीपीआई (एम्) एम् पी स्टेट कमिटी के स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की बरखेडी ब्रांच भोपाल के खाते 53002840933 में राशि जमा कर सकते हैं। ऐसा करने वाले मित्र इसकी सूचना इसी स्थान या मोबाइल पर दे दें ताकि उन्हें पावती भेजी जा सके।


