एनपीए में पॉवर सेक्टर बड़ा खिलाड़ी
एनपीए में पॉवर सेक्टर बड़ा खिलाड़ी
एनपीए में पॉवर सेक्टर बड़ा खिलाड़ी
नई दिल्ली स्थित एक संगठन सेंटर फॉर फाइनेंशियल एकाउंटबिलिटी( सीऍफ़ए), कल एक नई रिपोर्ट जारी करेगा जो कि वर्ष 2017 में कोयला आधारित परियोजनाओं एवं अक्षय उर्जा परियोजनाओं को बैंकों द्वारा दिए गए क़र्ज़ का तुलनात्मक अध्ययन करती है।
ग्लोबल स्ट्रैटिजिक कम्युनिकेशन काउंसिल की सलाहकार सीमा जावेद ने बताया कि इन दिनों गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों या नॉनपरफोर्मिंग एसेट्स ( एनपीए )के बढ़ाने के कारण सार्वजनिक बैंक भारी नुकसान की रिपोर्ट कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नॉन परफोर्मिंग एसेट्स ( एनपीए) के मानदंडों को और कठोर बनाये जाने के बाद एनपीए की संख्या में और वृद्धि की सूचना है।
सीमा जावेद ने बताया कि पिछले चार वर्षों में, भारत के सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों ने 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का बुरा ऋण माफ़ किया है। भारतीय बैंकिंग प्रणाली में बुरे ऋण का एक बड़ा स्रोत बिजली क्षेत्र है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सार्वजनिक बैंक अक्षय ऊर्जा की तुलना में कोयले आधारित उर्जा परियोजनाओं को और अधिक उधार दे रहे हैं, जबकि भारत में निजी वित्तीय संस्थानों ने कोयले की तुलना में अधिक नवीकरणीय वित्त पोषित किया है, हालाँकि वर्ष 2017 में देश में अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के मुकाबले तीन गुने से ज्यादा की वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत में सार्वजनिक और निजी बैंकों ने एक साथ, 17 गीगा वाट कोयला बिजली परियोजनाओं को वित्त पोषित करने के लिए 9.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया और 4.5 गीगा वाट अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को वित्त पोषित करने के लिए 3.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया, वह भी तब जब देश की थर्मल पावर क्षमता के लगभग 20 फीसद को फंसे हुए परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, ऐसे में कोयला संयंत्रों को जारी रखने की एक प्रवृत्ति है जिसे सुधारने की जरूरत है।
इस आंकलन में एक विरोधाभास यह देखना को मिलता है कि जहाँ उत्तर प्रदेश और झारखण्ड दो ऐसे राज्य हैं -जिन्होंने वर्ष 2017 में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के कोई क़र्ज़ नहीं लिया। वहीं इनके विपरीत तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा, पंजाब और उत्तराखंड राज्यों ने कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए कोई क़र्ज़ नहीं लिया।
इस अध्ययन में 72 ऐसी बिजली परियोजनाओं को चिह्नित करके उनकी समीक्षा की गयी है, जिनका वित्तपोषण किया गया है। इनमें कोयले से चलने वाले बिजलीघर और अक्षय ऊर्जा इकाइयां दोनों शामिल हैं, जिनका वर्ष 2017 में वित्तीय वर्ष समाप्त हुआ है।


