सुप्रीम कोर्ट के विचार के लिए एक अजीब मामला पेश किया गया है. अकबर नाम के एक बच्चे की कस्टडी का केस है. बच्चा मुसलमान माँ बाप का है. करीब सात साल पहले जब अकबर छः साल का था, अपने पिता के साथ इलाहाबाद के एक शराबखाने पर गया था. बाप ने शराब पी और नशे में धुत्त हो गया. बच्चा भटक गया लेकिन बाप को पता ही नहीं चला कि बच्चा कहाँ गया. गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई गयी.

लखनऊ के कैसर बाग़ में बच्चा चाय की एक दुकान के सामने गुमसुम हालत में पाया गया. चाय की दुकान के मालिक ऐकू लाल ने बच्चे को देखा और साथ रख लिया. बहुत कोशिश की कि बच्चे के माता पिता मिल जाएँ. मुकामी टी वी चैनलों पर इश्तिहार भी दिया लेकिन कहीं कोई नहीं मिला. जब कोई नहीं मिला जो बच्चे को अपना कह सके तो उसने बच्चे को स्कूल में दाखिल करवा दिया. बच्चे का नाम वही रखा, धर्म नहीं बदला, स्कूल में बच्चे के माता पिता का वही नाम लिखवाया जो बच्चे ने बताया था.

लेकिन ऐकू ने इस बच्चे को अपने जीवन का मकसद समझ कर तय किया कि वह शादी नहीं करेगा. उसे शक़ था कि उसकी होने वाली पत्नी कहीं बच्चे का अपमान न करे.

तीन साल बाद अकबर के माँ बाप को पता चला कि वह ऐकू लाल के साथ है. उन्होंने बच्चे की कस्टडी की मांग की, लेकिन ऐकू लाल ने मना कर दिया क्योंकि बच्चा ही उसे छोड़कर जाने को तैयार नहीं था.

बच्चे के माँ बाप ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुक़दमा कर दिया और बच्चे की कस्टडी की फ़रियाद की. उन्होंने ऐकू लाल पर आरोप लगाया कि उसने बच्चे को बंधुआ मजदूर की तरह रखा हुआ था.

मामला २००७ में इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस बरकत अली जैदी की अदालत में सुनवाई के लिए आया.

माननीय न्यायमूर्ति ने आदेश दिया कि बच्चे की इच्छा और केस की अजीबो गरीब हालत के मद्दे नज़र बच्चे को ऐकू लाल की कस्टडी में रखना ही ठीक होगा.

बच्चे की माँ का वह तर्क भी हाई कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया कि ऐकू लाल ने बच्चे को बंधुआ मजदूर की तरह रखा था. बच्चे के स्कूल की मार्कशीट अच्छी थी और स्कूल में उसकी पढ़ाई अव्वल दर्जे की थी.

हालात पर गौर करने के बाद जस्टिस जैदी ने कहा कि अपना देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है. जाति बिरादरी की बातों को न्याय के रास्ते में नहीं आने देना चाहिए. जब अंतर जातीय विवाह हो सकते हैं तो अंतर जातीय या अंतर-धर्म के बाप बेटे भी हो सकते हैं. बच्चा ऐकू लाल के पास ही रहेगा, इसमें बच्चे की इच्छा के मद्दे नज़र उसके जैविक माता पिता की प्रार्थना को नकार कर बच्चे को ऐकू लाल के पास ही रहने दिया गया.

अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जहां जस्टिस डी के जैन और एच एल दत्तु की बेंच में बुधवार को इस पर विचार हुआ.

अदालत ने सवाल पूछा कि जब अकबर का बाप शराब की दुकान पर बच्चे को भूलकर घर चला आया था तो बच्चे की माँ ने उसके गायब होने की रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई थी?

बेंच ने कहा कि सबको मालूम है कि कानून के हिसाब से इतनी कम उम्र के बच्चे की स्वाभाविक गार्जियन उसकी माँ होती है. हम तो तुरंत आदेश देकर मामले को निपटा सकते हैं, लेकिन बच्चे की मर्ज़ी महत्वपूर्ण है. वह उस आदमी को छोड़कर नहीं जाना चाहता जिसने अब तक उसका पालन पोषण किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की माँ शहनाज़ के वकील से कहा कि उसकी आमदनी के बारे में एक हलफनामा दाखिल करें. लेकिन इसके पहले बेंच ने शहनाज़ के वकील से जानना चाहा कि वे क्यों ऐसा आदेश करें जिससे बच्चा उस आदमी से दूर हो जाए जिसने उसकी सात साल तक अच्छी तरह से देखभाल की है.

ऐकू लाल की भावनाओं को बेंच ने नोटिस किया और कहा कि उसने बच्चे का नाम तक नहीं बदला, उसके माँ बाप का नाम वही रखा, बच्चे के माँ बाप को तलाशने के लिए विज्ञापन तक दिया. यह वही माँ बाप हैं जिन्होंने अकबर के गायब होने के बाद रिपोर्ट तक नहीं लिखाया था. बहरहाल मामला देश की सर्वोच्च अदालत की नज़र में है और इस पर अगली सुनवाई के वक़्त फैसला हो पायेगा. लेकिन ऐकू लाल की तरह के लोग ही वह लोग हैं जिन पर हिंद को नाज़ है.

शेष नारायण सिंह