ऑटिज्म गार्जियन विलेज : 'वसुधैव कुटुंबकम दर्शन' का दर्शन
ऑटिज्म क्या है? एक तरह का मानसिक विकार है ऑटिज्म. भारत का पहला ऑटिज्म आश्रम. ऑटिज्म क्यों और कैसे होता है? ऑटिज्म गार्जियन विलेज

ऑटिज्म क्या है?
कभी किसी ऐसे बच्चे को देखा है जो अपने में खोया रहता है। उससे बात करिये तो, इधर उधर देखता है। आपकी बात समझ नहीं पाता। अपनी, कह नहीं पाता। बहुत चंचल है या, जरूरत से ज्यादा सुस्त है। ज़ब कोई वही काम करता रहे जो उसे करना पसंद हो, यही नहीं उसे बारम्बार करें। तब, समझ जाइये! कुछ गड़बड़ है। जी हाँ! यही होता है -ऑटिज्म।
एक तरह का मानसिक विकार है ऑटिज्म
ऑटिज्म जीवन भर रहता है। इससे पीड़ित का जीवन प्रायः दूसरों पर निर्भर रहता है। रोजमर्रा के काम भी बिना किसी के सहयोग के नहीं हो पाता। आजकल, चिकित्सा क्षेत्र में बढ़ते रुझान के चलते ऐसे मामले अब प्रकाश में आने लगे है। हालांकि अभी भी देश के 2 टियर,3 टियर शहरों में इसको लेकर जागरूकता का अभाव है।
1981के बाद से ऑटिज्म बीमारी से पीड़ितों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होती देखी जा रही है। एक आंकड़े के अनुसार ये संख्या लगभग 6/1000 है। इसमें भी बालक, बालिकाओं में 3:1 का अनुपात है।
ऑटिज्म क्यों और कैसे होता है?
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ऑटिज्म का सही कारण अभी चिकित्सा विज्ञान के पास नहीं है। इसके बारे में अभी कई तरह की भ्रान्तियां प्रचलित है। मगर स्थापित कोई भी नहीं। ऐसी स्थिति में ज़ब किसी माता पिता को अपनी संतान के बारें में पता चलता है कि वो, एएसडी, एडीएचडी ( आत्मविमोह और अत्यधिक चंचलता )से पीड़ित है। तब, उसकी समझ में ही नहीं आता कि वो क्या करें? फ़िर, शुरू होती है उसकी भाग दौड़। ये डॉक्टर, वो अस्पताल, स्कूल। इस मंदिर, उस मज़ार, गुरद्वारे, चर्च। अपनी सामर्थ्य अनुसार कोई जगह नहीं छोड़ता। ज़ब,कहीं से कोई राहत नहीं मिलती तब, तलाश शुरू होती है ऐसी जगह कि जहाँ ऐसे बच्चों को कुछ सिखाया, पढ़ाया जा सकता हो। उसी ख़ोज के क्रम में ज़ब ऑटिज्म गार्जियन विलेज के बारे में लोग सुनते हैं तब, यहां आते हैं।
सिकंदराबाद स्थित ये गांव अपनी तरह का दुनिया में इकलौता गांव है। जहाँ एक ही छत के नीचे वो सारी सुरक्षित सुविधा मौजूद है जो किसी सभ्य समाज के लिए जरुरी होती है। इसके संस्थापक डॉ. ए. के. कुंद्रा 2012 में बोलारम के स्कूल में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा रहे थे, जहाँ उन्हें एक ऐसा छात्र दिखा जो कुछ समझ नहीं पा रहा था। ऐसा नहीं कि वो समझना नहीं चाह रहा था। पर यूं लगता था कि तमाम कोशिशों के बाद भी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है। यहीं से उनके दिमाग़ में इस बीमारी के प्रति जिज्ञासा हुई।
भारत का पहला ऑटिज्म आश्रम
उसके कुछ दिनों बाद डॉ. कुंद्रा लंदन गए। जहाँ उन्हें इस बीमारी के बारे में काफ़ी कुछ पता चला। वहां से लौटने के बाद इन्होंने ऑटिज्म आश्रम की स्थापना की। जो भारत में पहला ऐसे लोगों का आश्रय स्थल बना। जहाँ इन्हें खाना, सुरक्षित रहना और स्वास्थ्य की समुचित देखभाल, एक साथ होने लगी। धीरे धीरे लोग जुड़ते गए।
डॉ. कुंद्रा ने इस बीमारी को बड़ी गहनता से जाना है। इस पर उनका काफ़ी अध्ययन है। उन्हें इस बीमारी से पीड़ित मरीज के साथ-साथ उनके अभिभावकों की मनः स्थिति का भी बखूबी भान है। उन्हें मालूम है कि गार्जियन के दिमाग़ में क्या चल रहा है ? प्रायः वो, अभिभावकों के मन में आने वाले विचारों को पहले ही भाँप लेते हैं।
इसी कड़ी में उनकी जरूरतों को देखते हुए उन्हें लगा कि ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को एक शांत, सुरक्षित माहौल में रखना होगा। इनके लिए एक ऐसी जगह होनी चाहिए, जहाँ ऐसे लोगों के साथ उनके परिवार वाले भी रहना चाहें तो रह सकें। इसी के चलते 2020 में ऑटिज्म गार्जियन विलेज की नींव पड़ी।
अपनी बचत की सारी जमा पूँजी जोड़ इन्होंने 10 एकड़ जमीन खरीदी। फ़िर, उसके बाद शुरू किया अपना मिशन।
इस ऑटिज्म गार्जियन विलेज में एक सामुदायिक भवन, सामूहिक भोजन कक्ष, एक अस्पताल भी है। जिसमें नियमित रूप से इनका उपयोग होता है। इस विलेज़ में पर्यावरण का खास ध्यान रखा गया है। यहां तक़रीबन 1000 पेड़ लगे हैं। जिनमें 200 आम, 200 नीम, आंवला, गुलमोहर, सहजन आदि के पेड़ लगे हैं। इन सारे पेड़ो का सीधा संबंध मानव मस्तिष्क से है। इनका आयुर्वेदिक महत्व सभी को पता है। ये सारे पेड़ मानव को शांत और स्थिर रखने में मदद करते हैं।
आज, ऑटिज्म गार्जियन विलेज में 84 कॉटेज हैं। जिसमें 35 कॉटेज में परिवार रह रहा है। बाकी 49 कॉटेज भी बुक हैं। एक कॉटेज की कीमत है 35 लाख। इसको लेने के बाद इसकी बाकायदा ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति, उनके माता पिता के नाम से रजिस्ट्री होती है। जिससे माता पिता निश्चिंत हो जाते है। क्योंकि उनके न रहने पर उनकी संतान को कोई उनके घर से हटा नहीं सकता। ज़ब तक मन किया वो इसमें अपने संतान के साथ रहें। उनके न रहने पर ऑटिज्म विलेज की टीम उनकी उचित देखभाल करती है और आगे भी करने की जिम्मेदारी लेती है।
इन कॉटेज को खास तरीके से डिजाइन किया गया है, जिसमें दीवारों की संख्या कम से कम रखी गयी है। ताकि उन्हें आने जाने में दिक्कत का कम सामना करना पड़े। इस कैंपस में शांति पर विशेष ध्यान दिया गया है। पूरा क्षेत्र वाहन निषेध क्षेत्र भी है। यहां कार पर प्रतिबंध है, क्योंकि ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति को कार बहुत पसंद होती है। ज़ब वे कार को देखते हैं तब उस पर सवार होने की जिद करते हैं।
इस ऑटिज्म गार्जियन विलेज में सिर्फ इनके निश्चिंत रहने का ही इंतजाम नहीं है। इनको शारीरिक, मानसिक रूप से भी फिट ऱखने पर जोर दिया जाता है। इन्हें यहां टहलने से लगाए बास्केटबॉल तक खेलने की सुविधा है।
ऑटिज्म में बास्केटबॉल खेलना फायदेमंद भी माना जाता है। क्योंकि इससे दिमाग़ को एक ही जगह पर केंद्रित होने से बचाया जा सकता है। जिससे उनके दुहराव के क्रम को रोकने में मदद मिलती है। इसके अलावा यहाँ टेनिस कोर्ट, मिनी गोल्फ कोर्स, बिलियर्डस की भी सुविधा है। ये सारे के सारे संसाधन ऑटिज्म में राहत प्रदान करते है।
यहां,संगीत के माध्यम से तनाव दूर कराया जाता है। जिसके लिए उनका ड्रमिंग सेशन आयोजित होता है। इससे दिमाग़ को शांत करने में मदद मिलती है। ऑटिज्म पीड़ितों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जिसमें डिस्पोजल प्लेट से लगाए हवाई चप्पल तक का निर्माण इनके द्वारा किया जाता है।
इस विलेज़ में एक जनरल स्टोर भी है जिसका संचालन यहां रहने वाले तीन युवा करते हैं। इतना ही नहीं इनके सामाजिककरण के लिए भी खास इंतजाम है। इसके लिए उन्हें हर कॉटेज में सामान पहुंचाने को कहा जाता है। जिसके चलते ये एक दूसरे से परिचित हो जाते हैं।
इस विलेज में ढाई साल के बच्चे से लेकर 42 साल के वयस्क तक हैं। इस जगह पर हर कॉटेज के लोग एक दूसरे से परिवार सरीखा व्यवहार करते हैं। इस विलेज़ में पहली बार रहने के लिए आयी एक महिला को उनके पड़ोसियों ने लगभग एक हफ्ते तक तीनों टाइम का भोजन भी खुद निःशुल्क कराया। यहां आने पर आपको भारत की 'वसुधैव कुटुंबकम दर्शन' का दर्शन होता है। जहाँ समूची दुनिया एक परिवार है। रंग, नस्ल, देश, वर्ग विभेद की कोई बात ही नहीं। बात है तो बस परोपकार की। जो भारतीय संस्कृति के 'सर्वें भवन्तु सुखिना ' की सूक्ति को ये ऑटिज्म गार्जियन विलेज भली भांति फलीभूत कर रहा है। पर, डॉ. कुंद्रा से ये भी अपेक्षा की जानी चाहिए कि वो गरीबों के लिए भी ऐसा ही कोई आश्रय ग्राम बनायेंगे।
संजय दुबे
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