आज ईसा मसीह, मो अली जिन्नाह और अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म-दिन है। इस दिन को सेकुलर-दिवस घोषित किया जा सकता है।
सर सैयद और मालवीय को साथ-साथ भारत-रत्न मिलता तो शायद और ही अच्छा होता। राम-रथ से उतरकर जब जिन्नाह के मज़ार पर सर झुका ही सकते हैं तो फिर परहेज किस बात का है ?
वैसे जिन्नाह जैसे नेता की बात मानी गयी होती तो आज देश का सेकुलर-ढांचा कुछ अलग होता। मालवीय से ज्यादा प्रगतिशील जिन्ना थे। जिन्ना अगर अखंड-भारत का हिस्सा होते तो आज वह असली भारत-रत्न होते ?
1857 तक हम साथ-साथ लड़े। हम साझी शहादत और विरासत के निकट थे। 1857 में मुस्लिम रहनुमा मुसलमानों को फ़ारसी से बाहर निकाल कर ज्ञान-विज्ञान की ओर ले जाना चाहते थे। अगर वह परंपरा आगे बढ़ती तो आज के मुस्लिम युवा गुमराह के शिकार नहीं होते।
1858 में सर सैयद ने मुरादाबाद और गाजीपुर में विद्यालय की स्थापना की थी, इस्लाम के लिए नहीं, बल्कि विज्ञान के लिए। 1863 में साइंटिफिक सोसाईटी और एंग्लो ओरिएंटल कालेज की स्थापना हो रही थी।
20 वीं सदी की शुरुआत ब्रिटिश साम्राज्यवाद के षड्यंत्र से हुई। बंग-भंग ने विभाजन के बीज को जमीन दी। हम उसके शिकार हो गए। अपनी-अपनी धारा में बह चले।
1857 में मात्र 6 प्रतिशत लोग ही शिक्षित थे। उस वक्त 27 कालेज थे। 1872 में 72 कालेज हो गए। सदी के अंत तक 3284 कालेज हो गए। कोलकाता, बम्बई, मद्रास, इलाहबाद और लाहौर विश्वविद्यालय भी खुल गए थे।
छोटे-छोटे मुल्कों में अनुपात में ज्यादा विश्वविद्यालय थे। उस वक्त यूके में 18 , फ़्रांस में 15, इटली में 21 जर्मन में 22 और अमेरिका में 134 विश्वविद्यालय थे।
हमारी प्राथमिकता बदल गयी। आजादी के मायने बदल गए। आजादी के आन्दोलन दिशा हो गए। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ विश्वविद्यालय दो धारा के प्रवक्ता बन गए।
हिन्दू-महासभा के संस्थापक मालवीय को भारत रत्न मिल गया है। 1914-15 और 2014 - 15 की परिस्थिति एक जैसी हो गयी है। उस वक्त भी आज की तरह हिन्दू-राष्ट्र की आवाज उठी थी और देश बंट गया।
गोडसे को मालवीय उस वक्त जन्म दे रहे होंगें। आज पुनः मालवीय गोडसे को जिन्दा कर रहे हैं। इतिहास की उस शोकांतिका के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। सवाल है और कितने पकिस्तान होंगें? हम इतिहास से सबक नहीं लेना चाह रहे हैं वल्कि उसे दुहरा रहे हैं।
मामला भारत-रत्न के देने या नहीं देने का नहीं है। मामला उस विचार प्रक्रिया का है जिस कारण देश तबाह हुआ और होगा। बाबूजी थोड़ा सम्हल के। रत्न-हीन भारत नहीं है। बल्कि रत्नगर्भा भारत भू को बचाए रखें। जो भी हस्ती शेष है उसे मिटने नहीं दें। शुभ हो !
- बाबा विजयेंद्र
बाबा विजयेंद्र, लेखक स्वराज्य खबर के संपादक हैं।