और तेज हो गया राष्ट्र के सैन्यीकरण का सिलसिला
और तेज हो गया राष्ट्र के सैन्यीकरण का सिलसिला
एफडीआई केसरिया स्वदेशीकरण का गुप्त मंत्र, इसी से प्रतिरक्षा का स्वदेशीकरण भगवा
पलाश विश्वास
राष्ट्र का सैन्यीकरण का सिलसिला और तेज हो गया है।
तीसरी दुनिया के देशों का भूगोल इस वक्त मुक्त बाजार का भूगोल है और इस मुक्तबाजार में सर्वत्र सत्ता वर्ग को सैन्य राष्ट्र के मार्फत अर्थ व्यवस्था के बाहर क्रयशक्तिविहीन जनसमूहों के जनविद्रोहों का समाना करना पड़ता है और सैन्य राष्ट्र उसका अभेद्य सुरक्षाकवच है।
धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के देशभक्ति पृष्ठभूमि में राष्ट्र के सैन्यीकरण पर चर्चा निषिद्ध है।
स्विस बैंक में जो कालाधन है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा रक्षा सौदों का कमीशन है। तमाम उजले चेहरों में रक्षा घोटालों की कालिख लगी है। हो हंगामा के बावजूद इन घोटालों की जांच कभी पूरी होती नहीं है और अपराधी सर्वोच्च शिखर तक पहुंचकर कानून के राज के दायरे से बाहर हो जाता है।
राष्ट्र का सैन्यीकरण सबसे बड़ा और सबसे पवित्र कारोबार है। देशी पूंजी का कारोबार और विदेशी पूंजी का कारोबार भी। बजट घाटे में लेकिन रक्षा प्रतिरक्षा और जनगण के खिलाफ अविरत होने वाले राजस्व व्यय का कोई आंकड़ा होता नहीं है।
गौरतलब है कि संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2013-14 में सुझाव दिया गया कि सुस्त औद्योगिक वृद्धि में तेजी लाने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड), राष्ट्रीय निवेश एवं विनिर्माण क्षेत्रों (एनआईएमजेड) और रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी के माध्यम से निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करना बेहद जरूरी है। समीक्षा से संकेत मिलता है कि औद्योगिक वृद्धि में सुस्ती से सरकार को सुधार के एजेंडे को बढ़ाने के लिए उपयुक्त अवसर मिला है, इसीलिए बुनियादी ढांचा क्षेत्र की बाधाओं को दूर किया जा रहा है। एफडीआई बिना उत्पादन प्रणाली के उत्पादन वृद्धि और विकास दर बढ़ाने का अचूक रामबाण है, जाहिर है।
स्वयंभू राष्ट्रभक्तों की सरकार अब सत्ता में है और हमेशा की तरह राष्ट्भक्ति का अभूतपूर्व रिकार्ड कायम करते हुए इस सरकार ने रक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 49 प्रतिशत तक कर देने की घोषणा की है। गौरतलब है कि किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कहते हैं।
वित्त प्रतिरक्षा मंत्री जेटली ने सच ही कहा होगा कि रक्षा क्षेत्र को एफडीआई के लिये पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी सरकार के समय खोला गया था तब क्षेत्र में 26 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी गई थी। इसके बाद ही इसमें टाटा, महिन्द्रा और अन्य समूहों ने प्रवेश किया। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार की ऑफसेट पालिसी जिसमें विदेशी कंपनियों को उन्हें मिले 300 करोड़ रुपये से अधिक अनुबंध में कम से कम 30 प्रतिशत वापस भारतीय बाजार में निवेश करना होता है, उससे क्षेत्र को बढ़ावा मिला है। रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की सीमा बढ़ाने की जोरदार वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि अभी देश का 70 फीसद रक्षा साजो समान विदेश से आता है। उन्होंने कहा कि इसका मकसद भारत का नियंत्रण बनाए रखते हुए देश में सर्वोत्तम तकनीक लाना है।
जाहिर है कि स्वदेशीकरण की सर्वोत्तम विधि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है।
जाहिर है कि इसी स्वदेशी एजेंडा के तहत राष्ट्रभक्तों की केसरिया कारपोरेट सरकार ने वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट 2014 के दौरान रक्षा और इंश्योरेंस सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को बढ़ा दिया है जो संजोग से अमेरिकी मांग के मुताबिक है। संजोग से भारत दुनिया भर में रक्षा उत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार है लेकिन भारतीय रक्षा आंतरिक सुरक्षा बाजार में भारत अमेरिकी परमाणु संधि के बावजूद अमेरिकी उपस्थिति बेहद कम है और भारत की पूर्ववर्ती सरकार के खिलाफ अमेरिकी महाभियोग की अंतर्कथा यही है। राष्ट्रभक्तों की सरकार ने रक्षा एफडीआई स्वदेशीकरण के बहाने भारत अमेरिकी परमाणु संधि का सही मायने में कार्यान्वन करते हुए भारतीय रक्षा बाजार के लिए अमेरिकी कंपनियों के प्रवेश हेतु सभा दरवाजे और खिड़कियां खोल दिये हैं।
इसी सिलसिले में गौरतलब है कि अमेरिका-भारत व्यापार परिषद <यूएसआईबीसी> ने भारत सरकार द्वारा पेश आम बजट 14-15 की सराहना की है। साथ हीं बीमा और रक्षा दो प्रमुख क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्वागत किया है, जो कि अमेरिकी व्यापार समुदाय की लंबे समय से मांग थी। इसके साथ ही इसे भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद वाला बजट बताया है।
संजोग है कि तेल गैस के निजीकरण से अंबानी समूह सबसे फायदे में है। तीन चार साल में बैंकों के निजीकरण से किसे फायदा होगा, यह वक्त ही बतायेगा। अब रक्षा क्षेत्र में विनिवेश का सबसे फायदा भी संजोग से टाटा समूह को हो रहा है। समाचार क्रांति का फायदा बटोरने में संजोग से दोनों कंपनियां अग्रणी हैं। निर्माण विनिर्माण रेलवे विमानन बंदरगाह ऊर्जा शिक्षा चिकित्सा के निजीकरण से भी अलग अलग कंपनियों को फायदा हो रहा है।
देश को कितना फायदा होता है, यह मालूम नहीं है। मुक्त बाजार में उपभोक्ता हैसियत वाले नागरिकों पर दिनोंदिन बोझ जरूर बढ़ जाता है।
इन सुधारों को गरीबी उन्मूलन से जोड़ा गया है और रोजगार से भी। लेकिन निवेशकों की अटल आस्था फिर वही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजीकरण की रफ्तार में ही है।
रोजगार सृजन के लिए विदेशी निवेश और निजीकरण, उत्पादन के बदले सेवाक्षेत्र को प्राथमिकता देकर कृषि को खत्म कर देने के आक्रामक कार्यक्रम से रोजगार, विकास और गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य हासिल हो सकते हैं, ऐसा उत्तर आधुनिक मुक्तबाजारी अर्थशास्त्र और एटीएम राजनीति है।
विनिवेश और रोजगार से रोजगार किस तेजी से बढ़ रहे हैं, उत्पादन के आंकड़ों, विश्वबैंक आईएमएफ की रपटों, बदलती हुई परिभाषाओं और विदेशी एजंसियों की रेटिंग के साथ शेयर बाजार की सांढ़ संस्कृति से ही इसका हिसाब किताब बनता है, जिसका हकीकत से कोई नाता होता नहीं है।
कल कारखानों, खेतों, चायबागानों, पहाड़ों, समुंदर और नदियों के किनारे, वनक्षेत्रों से निकलने वाले मृत्युजुलूसों को देखने की उपभोक्ता आंखें जाहिर है कि नहीं होती और औद्योगीकरण के बहाने अंधाधुंध महानगर, नगर और उपनगर, जो कि दरअसल मुक्तबाजार के मुक्त निरंकुश आखेटगाह हैं, के निर्माण के आइने में न चीखें गूंजती हैं और न विलाप और शोकगाथा के लिए वहां कोई स्पेस है।
विनियंत्रित विनियमित बाजार अब रक्षा क्षेत्र भी है और इसका स्वदेशीकरण हो रहा है। इस पर तुर्रा यह कि रक्षा एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन धारणाओं को गलत बताया कि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा होगा।
गौरतलब है कि अब तक तमाम रक्षा घोटाले सेना के आधुनिकीकरण के बहाने ही हुए। बजट घोषणा चाहे कुछ हो दरअसल सरकारी फैसला रक्षा जगत में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर शत प्रतिशत करने की है, जिसे सार्वजनिक उपक्रमों के स्ट्रेटेजिक सेलआउट की आजमायी विधि के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता अमेरिका को सेल आफ करना है। लेकिन भरोसा रखें क्योंकि राममंदिर बनाने की घोषणा की तर्ज पर राष्ट्र की सुरक्षा की गारंटी भी दी जा रही है।
पूरी युवापीढ़ी तकनीक दक्ष अतिदक्ष सेल्स एजेंट और तकनीशियन हैं। कंपयूटर केंद्रित इस तकनीक का अब रोबोटिक रूपांतरण भी तेज है, जिसका मकसद अधिकतम आटोमेशन है जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनिवार्य शर्त है। इस सिलसिले में कुछ ही समय पहले हमने सबसे तेज विकसित आईटी सेक्टर की छानबीन की है। अब उसे दोहराने की जरूरत नहीं है।
रक्षा क्षेत्र के इस प्रत्यक्ष विनिवेश से राष्ट्र की एकता और अखंडता के क्या हश्र संभव है, आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी युद्ध के नतीजतन रोज दुनिया के बदल रहे,लहूलुहान हो रहे भूगोल और इतिहास से जग जाहिर है। यूरोप, मध्य एशिया और अफ्रीका से जाहिर है कि हम राष्ट्रवादी कोई सबक सीखने को तैयार नहीं हैं।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा और सबसे गरीब भूगोल अफ्रीका महादेश है। इससे भी जाहिर है कि हमारा कोई लेना देना नहीं है।
बुनियादी सवाल लेकिन यह है कि राष्ट्र के अंधाधुंध सैन्यीकरण अविराम छायायुद्ध जारी रहने के मध्य लाभ दरअसल किसे होता है।
बुनियादी सवाल लेकिन यह है कि राष्ट्र के अंधाधुंध सैन्यीकरण किस शत्रु के खिलाफ है।
बुनियादी सवाल लेकिन यह है कि राष्ट्र के अंधाधुंध सैन्यीकरण के मध्य, आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में साझेदारी और भारत अमेरिकी परमाणु सधि का फायदा दरअसल किसे हो रहा है।
फायदा चाहे जिस किसी को हो हकीकत तो यह है कि बहुसंख्य जनता के उत्थान के लिए, उनकी क्रयशक्ति में बढ़ोतरी के जरिये मुक्त बाजार में उनके वजूद के लिए कोई फायदा पिछले तेईस सालों में नही हुआ है।
फायदा चाहे जिस किसी को हो हकीकत तो यह है कि स्वतंत्रतता के बाद जिस समूहों पर रक्षा सौदों में घोटाला और भ्रष्टाचार का आरोप है, जनादेश हमेशा उन्हीं के पक्ष में बनता है और सत्ता में चाहे कोई हो, उस समूह के निरंकुश वर्चस्व पर किसी किस्म का अंकुश नहीं लगता।
बहुसंख्य जनता के उत्थान के लिए, उनकी क्रयशक्ति में बढ़ोतरी के जरिये मुक्त बाजार में उनके वजूद के लिए कोई फायदा पिछले तेईस सालों में नही हुआ है। लेकिन इसके विपरीत लोकतंत्र का हाल यह हो गया है कि पंचायत से लेकर संसद तक मालामाल लाटरी खुल गयी है राजनीतिक तबके के लिए।
जनप्रतिनिधि तमाम या तो अरबपति हॆ या कम से कम करोड़पति।
चुनावों में लाखों करोड़ रुपये के न्यारा वारा का स्रोत पिछले सात दशकों की स्वतंत्रता की सबसे बड़ी उपलब्धि है और गरीबी हटाओ के नारे लग जाने के बाद 1969 से अब तक गरीबों के सफाये के अलावा कुछ हुआ नहीं है।
जय जवान जय किसान नारा अब दरअसल मरो जवान मरो किसान है और रक्षाक्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का यही स्वदेशीकरण है।
संजोग से अमेरिकी अर्थव्यवस्था का अभिमुख भी यही है जो कि सारी दुनिया जानती है कि मुकम्मल युद्धक अर्थव्यवस्था है। अमेरिकी कंपनियां दुनिया भर में युद्ध और गृहयुद्ध का कारोबार करती हैं। जाहिर है कि इसका नतीजा भी सामने है। 2008 की महामंदी इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं के फंस जाने सकी वजह से अमेरिका का वजूद ही मिटाने चली थी और युद्धक अर्थव्यवस्था के इस अमेरिका संकट को वैश्विक वित्तीय संस्थानों के जरिये अमेरिका ने समूची दुनिया पर थोप दिया था।
खास बात तो यह है कि अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था की जमानत के लिए ही इराक में मानवताविरोधी युद्धअपराधी अचानक भारतप्रेमी हो गये और उनके इस भारत प्रेम की वजह से भारत अमेरिकी सैन्य संधि हो गयी, जिसके बदले में भारत को अमेरिका और इजराइल की अगुवाई में आतंक के विरुद्ध अमेरिका के युद्ध में साझेदार भी बनना पड़ा। नतीजतन भारतीय राजनय और विदेश नीति इतनी गूंगी हो चुकी है कि गाजा पर इजरायली हमले के विरुद्ध एक शब्द तक कहने की हैसियत भी नहीं है। अमेरिका से भारत इस तरह नत्थी हो गया कि अमेरिकी हित भारत के हित हो गये। हर भारतीय नागरिक की मुकम्मल निगरानी के सबूत मिलने पर भी यूरोप और लातिन अमेरिक संप्रभु देशों की तरह भारत प्रतिवाद भी नहीं कर सका। संप्रभुता के विसर्जन के बाद अब डिजिटल देश बन रहा है, जहां नागरिकता बायोमेट्रिक है, जैसा अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी में भी नहीं है।
भारतीय जनता भारत अमेरिकी परमाणु संधि का जनादेश दिया नहीं था, न नमो सुनामी के लिए सत्तादल के चुनाव घोषणापत्र में देश को एफडीआई हिंदू राष्ट्र बनाने की कोई घोषणा हुई थी।
सब को मालूम है कि रक्षा, बीमा और खुदरा कारोबार में अमेरिकी कंपनियों का सबसे ज्यादा दांव है। लेकिन एकमुश्त वित्त प्रतिरक्षा मंत्री कारपोरेट वकील जेटली ने लोकसभा में बजट पर चर्चा का उत्तर देते हुए कहा, ‘हम आज भी 70 प्रतिशत रक्षा सामान विदेशों से आयात कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि जो लोग रक्षा क्षेत्र में 49 प्रतिशत एफडीआई का विरोध कर रहे हैं, आप विदेशों से 100 प्रतिशत तैयार सामान खरीद सकते हैं लेकिन अपने देश में बनने पर इसका विरोध करेंगे। मेरा मानना है कि 49 प्रतिशत सीमा रखना देश के व्यापक हित में है।’
सवाल है कि कौन ये हथियार बनायेगा और उन कंपनियों का ब्यौरा किसी ने संसद में अभी तक पूछा नहीं है। मीडिया में टाटा समूह के फायदे की चर्चा तो फिर भी होने लगी है लेकिन उन अमेरिकी कंपनियों के बारे में सन्नाटा है, जिनके नाम मालामाल लाटरी है।
गौरतलब है कि दुनिया भर में तेल क्षेत्र पर कब्जा कर लेने वाले युद्धक अर्थव्यवस्था के डालर वर्चस्व के लिए देश को अमेरिका बनाने और भारतीय कंपनियों को अमेरिकी युद्धक कंपनियां बनाने का कार्यक्रम सर्जिकल प्रिसिजन और कंप्लीट धर्मोन्मादी मांइड कंट्रोल के मार्फत लागू कर रही है देशभक्तों की यह केसरिया कारपोरेट सरकार।


