कम्युनिस्टों से 'भारत माता' के जरिए लड़ेगी भाजपा !
कम्युनिस्टों से 'भारत माता' के जरिए लड़ेगी भाजपा !
जब जातीय गोलबंदी तेज हो चुकी हो तो यह हथियार कितना कारगर होगा यह कह पाना बहुत मुश्किल है।
अंबरीश कुमार
नई दिल्ली। भारत माता की जय के मुद्दे से भारतीय जनता पार्टी बंगाल में कम्युनिस्टों से निपटने की तैयारी में है। यह मुद्दा उस धार्मिक राष्ट्रवाद से लिया गया है जिसका इस्तेमाल उन्नीसवीं सदी के अंत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए किया गया था। तब भी यह धार्मिक राष्ट्रवाद कुछ हद तक मुस्लिम विरोधी था और आज तो खुलकर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदुत्व का नया और आधुनिक चेहरा बन कर उभरे हैं और उनके नेतृत्व को मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा पसंद करता है। लोकसभा चुनाव में वे चरम पर थे भी पर सिर्फ शाब्दिक लफ्फाजी से काम नहीं चलता और वही हुआ भी। दिल्ली से लेकर बिहार की हार से
यह साबित भी हुआ। ऐसे में पार्टी फिर एक बार उग्र हिंदुत्व की राह पकड़ रही है। दादरी में बीफ का मामला हो या फिर जेएनयू को देश विरोधी तत्वों का अड्डा बनाने की मुहिम। इसे लेकर पार्टी को तकर भी मिली है। मध्य वर्ग जो इस तरह के मुद्दों पर जल्दी फिसलता है वह फिर फिसला है। चाहे कोई शिक्षक हो इंजीनियर हो या वैज्ञानिक इस मामले में कट्टर धर्मांध नजर आता है। और तो और बड़े ध्यान से देखे मंदिर आंदोलन पर उग्र हिंदुत्व का मुकाबला करने वाले मुलायम सिंह यादव भी देशभक्ति की राह पर हैं तो कांग्रेस भी। कन्हैया के मुद्दे पर तो मुलायम सिंह ने भी राष्ट्रवाद का खुला समर्थन किया। राजनैतिक रणनीति के लिहाज से यह ठीक कदम भी था वर्ना उत्तर प्रदेश में पहले मोर्चा खुलता और मुलायम अगर इस उग्र राष्ट्रवाद के आगे घुटने टेक देते तो मायावती भी न बचतीं और लोकसभा फिर विधान सभा में भी दोहरा दी जा सकती थी। भाजपा इसी ताक में भी थी, पर वह भिड़ी कम्युनिस्टों से, जिनका उत्तर भारत में कोई अर्थ नहीं है। हाँ बंगाल में वह अगर इस धार्मिक राष्ट्रवाद के चंगुल में फंसी तो दिक्कत बढ़ जाएगी।
ये भारत माता की जय का मुद्दा उसी बंगाल के लिए उभारा जा रहा है जहां भारत माता उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में प्रतीक बनी थी। एक इतिहासकार ने नाम न देने की शर्त पर कहा, बंकिम चंद ने जब वंदे मातरम् और आनंद मठ लिखा तभी से भारत माता को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ने का प्रतीक बनाया गया। यही वह दौर था जब राजा रवि वर्मा के पेंटिंग में भी राष्ट्रवाद झलक रहा था और जंजीरों में जकड़ी भारत माता को एक प्रतीक के रूप में रख कर आजादी की लड़ाई लड़ी गई। वर्ष 1902 में अनुशीलन और 1907 में युगांतर जैसे मंच से यह और आगे बढ़ा, तब भी इस धार्मिक राष्ट्रवाद में मुस्लिम के लिए कोई जगह नहीं थी।
पिछले कुछ वर्षों में आजादी की लड़ाई के प्रतीक से लेकर वंदे मातरम् और तिरंगे तक का इस्तेमाल नौजवानों को आंदोलन से जोड़ने के लिए किया गया और कामयाब भी हुआ। अन्ना आन्दोलन इसका उदाहरण है। भाजपा भी उन प्रतीकों का इस्तेमाल कर रही है। यह बात अलग है कि आजादी की लड़ाई का संघ परिवार का कोई ऐसा गर्व करने वाला इतिहास नहीं है, जिसे वह नौजवानों के सामने रख सके। न ही उसका झंडा कोई अपील करता है। इसलिए आजादी की लड़ाई के समय के राष्ट्रवादी प्रतीकों के सहारे वह अपना आधार बढ़ाना चाहती है। भारत माता की जय भी उसी प्रतीक का एक औजार है। पर जब जातीय गोलबंदी तेज हो चुकी हो तो यह हथियार कितना कारगर होगा यह कह पाना बहुत मुश्किल है।


