कर्नाटक : आरएसएस से जुड़े लोग हिंदी विरोध की ध्वजा संभाले हुए हैं, वहां संघ को हिंदी नहीं कन्नड़ चाहिए
कर्नाटक : आरएसएस से जुड़े लोग हिंदी विरोध की ध्वजा संभाले हुए हैं, वहां संघ को हिंदी नहीं कन्नड़ चाहिए
भारत को भाषायी समानता की जरूरत है, न कि भाषायी प्रधानता की। जो लोग मेरी भाषा प्रधान, मेरी भाषा महान् का नारा लगा रहे हैं, वे देश में असमानता के पक्षधर हैं। देश में सामाजिक समानता के साथ भाषाओं और बोलियों के बीच में समानता की जरूरत है।
हिंदी से लेकर कन्नड़ तक इस तरह के फंडामेंटलिस्ट फैले हुए हैं, जो हाय हिंदी, हाय हिंदी, हाय कन्नड़, हाय कन्नड़ के नारे लगा रहे हैं।
हमें भाषाओं और बोलियों के बीच में समानता और प्रेम के नजरिए का प्रचार करना चाहिए। भाषायी हाय - हाय को बाय - बाय करनी चाहिए।
कर्नाटक में समाज घृणा की ओर लौट चुका है, हिंदी का विरोध मूलतः वे ही कर रहे हैं जो हिंदीभाषी राज्यों में हिंदी बचाना चाहते हैं। आरएसएस से जुड़े लोग हिंदी विरोध की ध्वजा संभाले हुए हैं।
कर्नाटक में संघ को हिंदी नहीं कन्नड़ चाहिए और हिंदी प्रांतों में हिंदी चाहिए लेकिन भोजपुरी, मैथिली, राजस्थानी की कीमत पर। आरएसएस के इस भाषायी मॉडल को समझने की जरूरत है। आरएसएस कहीं गऊ के नाम पर, कहीं भाषा के नाम पर, कहीं धर्म के नाम पर और कहीं कांग्रेस-नेहरू परिवार के नाम पर घृणा अभियान छेड़े हुए है।
सवाल यह है आरएसएस को घृणा इतनी पसंद क्यों है?
क्या घृणा से देश को महान बनाया जा सकता है?
घृणा से देश महान नहीं बनता, देश महान बनता है प्रेम और समानता के आधार पर।
मोदीजी का किताब के प्रति ढोंग देखो! गृह मंत्रालय ने आदेश दिया है पीएम को गुलदस्ते की बजाय किताब भेंट करो। सवाल यह है कोई मंत्रालय पहले से किताबें पीएम को भेंट क्यों नहीं कर रहा था?
वहीं दूसरी किताबों पर जीएसटी लागू हो गया है वह भी बीस प्रतिशत, ऐसा एक मित्र ने फेसबुक पर सूचना दी है। पहले से किताब संकट में है उसे कम लोग पढ रहे हैं ऐसे में किताब की लागत महंगी हो जाएगी और किताबें कम पढी जाएंगी।
भारत सरकार की विज्ञापन नीति से भाषायी असमानता में वृद्धि होगी और हिंदीवादी उन्माद को बढ़ावा मिलेगा। मोदी सरकार ने जो विज्ञापन नीति स्वीकार की है वह भविष्य में और भी गहरे संकट को जन्म देगी।


