कश्मीर की त्रासदी है कि उसके वास्तविक मुद्दे केन्द्र में नहीं हैं
आपकी नज़र | स्तंभ | हस्तक्षेप The tragedy of Kashmir is that its real issues are not at the centre. मीडिया ने बनाया है कश्मीर का आतंकी चेहरा. मैनस्ट्रीम मीडिया आतंकवाद पर झूठ बोलता है. आज कश्मीर की मूल समस्या आतंकवाद या पृथकतावाद नहीं है बल्कि

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कश्मीर और हम
यह सच है पाक ने कश्मीर में आतंकियों की मदद की है। पाक के कश्मीर पर सभी दावे अवैध हैं। पाक अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों में लगा है। हम सब उसकी इन हरकतों की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। पाक का कश्मीर से कोई लेना-देना नहीं है, इसके बावजूद वह लगातार बेहूदगी भरे निर्णय ले रहा है और भारत-पाक संबंधों को खराब बनाने में लगा है। हम मोदी सरकार और उनके भोंपुओं को भी सावधान कर रहे हैं कि वे मोदी की कश्मीर नीति का विरोध करने वालों को पाक से न जोड़ें।
370 हटने से पहले कश्मीर का माहौल
उल्लेखनीय है 2 अगस्त 2019 को जम्मू- कश्मीर में शांति थी, लेकिन चार दिन पहले बरसात का बहाना बनाकर अचानक केन्द्र सरकार ने अमरनाथ यात्रा स्थगित कर दी। जिस समय यात्रा स्थगित की गई उस समय मैं श्रीनगर में था, जम्मू से टैक्सी से कश्मीर आया। सारे रास्ते भर कई जगह रूककर लोगों से बातें कीं, सारे रास्ते में अर्द्ध–सैन्यबल खड़े थे, जनजीवन सामान्य था। हां, एक बात जरूर थी कि आम जनता में अफवाह चल रही थी कि केन्द्र सरकार 370 या 35ए को लेकर बड़ा कदम उठा सकती है। इस तरह की अफवाहों में जम्मू से लेकर कश्मीर तक लोग व्यस्त थे। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि केन्द्र सरकार कोई भी कदम उठाने के पहले अफवाहों का बाजार गर्म करती है, आम जनता की मनोदशा तैयार करती है, लेकिन रीयल राजनीतिक संवाद, मीटिंग आदि नहीं करती।
कहने का आशय यह कि मोदी सरकार के माहौल बनाने का यह एक सुनियोजित तरीका है, कि पहले अफवाहें फैलाओ फिर फैसले लो और कहो कि आम जनता यही चाहती थी। इस समूची प्रक्रिया में आम जनता के साथ ठगई की जाती है। यह राजनीतिक ठग विद्या है।
हम जब श्रीनगर पहुंचे तो वहां एकदम शांति थी, जिस समय केन्द्र सरकार ने एडवायजरी जारी की उस समय हम सोनमर्ग के ऊपर थे, अचानक रास्ते में रोक दिए गए और कहा गया आगे नहीं जा सकते। हमने पूछा क्यों, तो कहा गया बरसात की वजह से पहाड़ के हिस्से गिर रहे हैं इनसे रास्ता अवरूद्ध हो गया। मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं था क्योंकि बरसात हो ही नहीं रही थी, आकाश खुला था। खैर हम लौट आए, बाद में घोडों पर सवार होकर एकदम ऊपर तक गए और पाया कि हमसे झूठ कहा गया। बाद में शाम को जब श्रीनगर लौटे तो पता चला अमरनाथ के तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को घाटी छोड़ने के आदेश दे दिए गए हैं। तब तक न तो पाक का हमला हुआ था, न कोई आतंकी हमला हुआ था। हां, बाद में सेना के अफसरों ने मीडिया को बताया कि अमरनाथ यात्रा के मार्ग में बारूदी सुरंग मिली, अस्त्र वगैरह मिले। दिलचस्प है यह प्रेस कॉफ्रेंस एडवायजरी जारी होने के बाद की गयी। आमतौर पर जिस समय इस तरह की चीजें मिलती हैं तो तत्काल मीडिया को बताया जाता है, लेकिन, सच्चाई यह है कि अमरनाथ यात्रा बारूदी सुरंग मिलने के पहले ही रोक दी गयी थी। यही वह प्रस्थान बिंदु है जहां से मोदी सरकार की राजनीतिक हरकतें सामने आनी शुरू हो गयीं।
जिस समय यात्रा रोकी गयी, उसके साथ अफवाहों का प्रवाह जम्मू-कश्मीर की ओर मोड़ दिया गया।
उल्लेखनीय है सुप्रीम कोर्ट में 35ए को लेकर सुनवाई इस महिने होने वाली थी, केन्द्र सरकार को लगा होगा कि सुप्रीम कोर्ट में हार सकते हैं इसलिए आनन-फानन में 35ए और 370 हटाने के बारे में बड़े फैसले की जरूरत महसूस की गई।
पीएम मोदी को शांति पसंद नहीं है। श्रीनगर शांत हो जाएगा, इसकी मोदीजी को उम्मीद नहीं थी। वहां कोई आतंकी हमला नहीं हुआ, अमरनाथ यात्रा पर भी कोई हमला नहीं हुआ। आम जनता ने कहीं पर भी जुलूस नहीं निकाले। सब कुछ नॉर्मल चल रहा था। यह स्थिति केन्द्र के सभी प्रचार अभियान को पंक्चर कर रही थी। एक ही वाक्य में कहें तो जम्मू-कश्मीर की नॉर्मल स्थिति को केन्द्र सरकार ने जान-बूझकर बिगाड़ा। सभी संवैधानिक प्रावधानों और प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर संसद का दुरूपयोग किया गया। आज स्थिति यह है कि संसद में जितने तर्क अमित शाह ने पेश किए वे सभी गलत और बोगस साबित हो चुके हैं।
कश्मीर के प्रसंग को अब एक ही झटके में मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप का विषय बना दिया है। अब मोदी की सारी कोशिश यह होगी कि प्रचार माध्यमों के जरिए कश्मीर के सच को, वहां की जनता की पीड़ाओं को एक सिरे से छिपा दिया जाए और समूचे देश को किसी और विषय में उलझा दिया जाय।
जम्मू कश्मीर की बेकारी धारा 370 खत्म करने से हल नहीं होगी, उसके राज्य के दर्जे को खत्म करने से बेकारी खत्म नहीं होगी। मोदी सरकार ने 370 खत्म करके राज्य के युवाओं को रोजगार की दौड़ में कोसों पीछे फेंक दिया है।
सवाल यह है कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के आर्थिक सवालों, बेकारी दूर करने के उपायों पर कोई पहल क्यों नहीं की ? रोजगार की कोई नई योजना लागू क्यों नहीं की ? किसने रोका था ?
मोदी सरकार ने 370 खत्म करके अपूरणीय क्षति की है, उससे बड़ी क्षति की है राज्य का दर्जा खत्म करके। राज्य का दर्जा खत्म करने की मांग तो भाजपा-जनसंघ ने कभी नहीं की थी। सन् 2019 के चुनाव घोषणापत्र में यह नहीं है। फिर राज्य का दर्जा खत्म क्यों किया?
जिन लोगों ने 1989-90 से शुरू हुई तहरीक को देखा है वे जानते हैं आखिरकार कश्मीर में अशांति कैसे आई। वे यह भी जानते हैं कश्मीर की अशांति की जड़ें कहां हैं। कश्मीर पर बातें होती हैं तो सारी बहस आतंकवाद-पृथकतावाद और पाकिस्तान के रेगिस्तान में भटक जाती है। कोई कश्मीर की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अर्थशास्त्र पर बातें नहीं करता। भाजपा-पीडीपी सरकार ने भी चर्चा नहीं की।
कश्मीर की समस्या की मूल जड़ है बहस के केन्द्र से अर्थव्यवस्था और बेकारी के सवालों का गायब हो जाना। जितने लोग फेसबुक पर कश्मीर के सुनहरे अतीत और आतंकी वर्तमान पर लिख रहे हैं वे यदि गंभीरता से एक-एक लेख जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर भी लिख दिए होते तो बहुत बड़ा उपकार कर दिए होते।
मीडिया ने बनाया है कश्मीर का आतंकी चेहरा
कश्मीर की त्रासदी है कि उसके वास्तव मुद्दे केन्द्र में नहीं हैं। आज भी कश्मीर पर बात होती है तो आतंकवादी ही प्रमुख रूप से चर्चा के केन्द्र में रहता है, कायदे से हमें कश्मीर विमर्श का मूलाधार वहां की अर्थव्यवस्था की समस्याओं को बनाना चाहिए। वहां पर प्राकृतिक असंतुलन के जो संभावित खतरे हैं उनको बनाना चाहिए। मैंने कश्मीर को बहुत करीब से देखने-जानने और समझने की कोशिश की है। मुझे यही लगा कश्मीर वह नहीं है जो मीडिया में नजर आता है। कश्मीर का आतंकी चेहरा मीडिया ने बनाया है, इसमें हिन्दुत्ववादी ताकतों की बहुत बड़ी भूमिका है।आश्चर्य की बात है मैं वर्षों से नियमित टीवी टॉक शो देखता रहा हूँ लेकिन एक भी चैनल याद नहीं पड़ता जिसने कश्मीर की अर्थव्यवस्था की समस्याओं पर कभी बातें की हों।
कश्मीर में आतंकियों की समस्या से ज्यादा बड़ी बेकारी की समस्या है, लाखों युवाओं के पास कोई काम नहीं है। मीडिया कवरेज की आज परिणति यह हुई है कि हर कश्मीरी को कश्मीर के बाहर संदेह की नजर से देखा जाता है, यदि कश्मीर के बाहर कोई कश्मीरी नौकरी कर रहा है तो लोग आतंकी घटना का कारण उस कश्मीरी से पूछते हैं, जबकि सच्चाई यह है उसे वास्तविकता में मालूम ही नहीं है कि आतंकी घटना क्यों और कैसे हुई। मसलन्, जिस व्यक्ति को अभी पुलिसबलों ने मारा वह आतंकवादी था, लेकिन पुलिस बलों की पकड़ से कई सालों से बाहर था। उसका कोई कवरेज नहीं मिलेगा, अचानक पता चला वो बहुत बड़ा आतंकवादी था।
मैनस्ट्रीम मीडिया आतंकवाद पर झूठ बोलता है
मीडिया की सूचनाओं को हम इस कदर पवित्र मानकर चल रहे हैं कि संदेह तक नहीं करते। सारी खबरें वही हैं जो पुलिस बल या सेना बता रही है। मैनस्ट्रीम मीडिया के जरिए कोई भी रिपोर्टर जमीनी हकीकत बताने की कोशिश नहीं कर रहा।
आतंकवाद पर मैनस्ट्रीम मीडिया अमूमन झूठ बोलता है कम से कम यह विकीलीक के दस्तावेजों को देखकर तो हम लोगों को समझ लेना चाहिए।
कहने का अर्थ है कश्मीर के बारे में बातें करें तो वहां के बुनियादी आर्थिक सवालों पर बातें करें। आम कश्मीरी अपने को आतंकियों से बहुत पहले दूर कर चुका है। मीडिया के कवरेज से राय न बनाएं।
कश्मीर पर मीडिया बहुत घटिया काम कर रहा है वह प्रत्येक कश्मीरी को आतंकवाद समर्थक बता रहा है। आम कश्मीरी और आतंकी के बीच में अंतर करना मीडिया, नेता और भोंपुओं ने बंद कर दिया है।
आज कश्मीर की मूल समस्या आतंकवाद या पृथकतावाद नहीं है बल्कि राज्य के रुप में उसकी पहचान, उसके अनुरुप विशेष कानून या 370की वापसी और विकास की आर्थिक समस्याएं हैं जिन पर बातें होनी चाहिए।
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी


