कश्मीर को अलगाव में डालने की संघी साजिश
कश्मीर को अलगाव में डालने की संघी साजिश

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने मौजूदा शैक्षणिक सत्र से कश्मीरी मुस्लिम छात्रों के एडमिशन पर रोक लगा कर एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत माता एक है’ का उसका नारा सिर्फ दीवारों को गंदा करने और लोगों को भ्रमित करने का उपक्रम है। उसे उसके ‘फेस वैल्यू’ पर नहीं लिया जाना चाहिये। क्योंकि उसके ‘भारत माता’ का अपना एक विचारधारात्मक खाका है। जिसका भौगोलिक स्वरूप भले आम भारतीय के ‘कश्मीर से कन्याकुमारी’ तक के भूखण्ड के भारत होने की धारणा से मेल खाता हो लेकिन उसका जनसांख्यिकीय दायरा मुसलमानों और ईसाईयों को इससे बाहर रखता है।
कश्मीरी विस्थापितों के लिए शिक्षण संस्थानों में कोटा
गौरतलब है कि कश्मीरी विस्थापितों जिनमें हिंदू और मुसलमान दोनों आते हैं, के लिए जम्मू कश्मीर के बाहर अन्य राज्यों के शिक्षण संस्थानों में कोटा का प्रावधान अटल बिहारी बाजपेयी की राजग सरकार ने ही लागू किया था। जिसका घोषित उद्देश्य कश्मीर की अराजक स्थितियों के चलते शिक्षा से महरूम हो रहे युवाओं को पढाई का मौका दे कर उन्हें रोजगार पाने और भारतीय मुख्यधारा में शामिल होने को प्रेरित करना था। इसके पीछे तत्कालीन राजग सरकार जिसमें भाजपा राम मंदिर, कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहिता जैसे हिंदुत्ववादी मुद्दों को छोड कर शामिल हुई थी। और जिसमें सेक्यूलर कही जाने वाली पार्टियों पर ही वाजपेयी की कुर्सी टिकी थी, कि यह समझदारी थी कि ऐसा करके कश्मीरी आवाम को अलगाववादी आंदोलनों के प्रभाव से मुक्त रखा जा सकता है।
इस लिहाज से देखें तो कुछ लोगों को प्रथम दृष्टया ऐसा लग सकता है कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार अपनी ही पूर्ववर्ती केंद्र सरकार की नीति के खिलाफ जा रही है। लेकिन इस समझदारी में एक संकट है। वो ये कि ऐसा करने से जहां एक ओर राजग सरकार की कश्मीर नीति को क्लीन चिट मिल जाएगा। वहीं कथनी और करनी में एक सौ अस्सी डिग्री का फर्क रखने वाली भाजपा की कथनी को ही सच मान बैठने की भूल हो जाएगी।
दरअसल, कश्मीर का मुद्दा संघ और भाजपा के अस्तित्व को टिकाए रखने वाले सबसे प्रमुख खम्भों में से एक है। इसीलिए देखा जाता है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाने वाले लोक सभा चुनावों में ही नहीं बल्कि विधान सभा चुनावों में भी भाजपा कश्मीरी मुसलमानों को जेहादी और आतंकवादी बता कर स्थानीय स्तर पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराने की कोशिश करती रही है। जाहिर है, इस मुद्दे पर पलटना भाजपा के लिए आत्म हत्या करने जैसा होगा।
इसीलिए, राजग सरकार के दौर में भी जब वाजपेयी सरकार ने मजबूरीवश एक तरफ कश्मीरी विस्थापितों के लिए दूसरे राज्यों के शिक्षा संसथानों में कोटा नियम घोषित किया, तब उसी के साथ दूसरी ओर कश्मीर मुद्दे के हल के नाम पर जो प्रस्ताव रखा उसमें कश्मीर को तीन हिस्सों- हिंदु बहुल जम्मू, बौद्ध बहुल लद्दाख और मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी, में विभाजित करने का सुझाव था। संघ परिवार और भाजपा का इसके पीछे यह तर्क था कि ऐसे विभाजन से आतंकवाद प्रभावित कश्मीर का हिस्सा जम्मू और लद्दाख से अलग हो जाएगा और आतंकवाद की पूरी समस्या सिर्फ घाटी तक ही सिमट जाएगी।
दूसरे शब्दों में भाजपा कश्मीर का धार्मिक विभाजन करा कर मुस्लिम बहुल घाटी को आतंकवादी सरगर्मियों का केंद्र साबित करते हुए उसे पूरे देश से बहिष्कृत करना चाहती थी। जिस पर विपक्ष ही नहीं सरकार में शामिल पार्टियों का भी उसे विरोध झेलना पडा। लेकिन भाजपा यहां मुंह की खाने के बावजूद चुप नहीं बैठी। और मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी को देश से अलग-थलग काटने के लिए उसने दुबारा ’सिंधु दर्शन’ नाम से नया अभियान शुरू कर दिया। जिसके तहत जब तक सरकार रही विश्व हिंदू परिषद के नेताओं का जमावडा सिंधु नदी के किनारे लगवाया गया। जहां देश के इतिहास में पहली बार सेना, जिसकी कश्मीर घाटी में निभाई गयी भूमिका कश्मीरियों के गुस्से की मुख्य वजह है, को खुलेआम हिंदुत्व की दीक्षा दी गयी। इसलिए आज अगर गुजरात के बाद हिंदुत्व की सबसे उन्नत प्रयोगशाला बन चुके मध्य प्रदेश में कश्मीरी मुसलमानों के एडमिशन पर पाबंदी लगती है तो उसे सिर्फ एक घटना के बजाए हिंदुत्व की फासिस्ट विचारधारा के अमलीकरण के बतौर ही देखना होगा।
दरअसल, संघ या भाजपा की भारतीय समाज में मजबूत आधार बना लेने के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी रहा है कि उसने अपने लिए एक ऐसा रणनीतिक डिक्श्नरी ईजाद किया है जिसमें एक ही बात के दो अलग-अलग अर्थ होते हैं। एक दिखाने के लिए, दूसरा अमल करने के लिए। जिसके चलते समाज का एक बड़ा हिस्सा जो उसकी विचारधारा से बिल्कुल असहमत होता है, वह भी उसके पीछे खडा हो जाता है। मसलन, संघ और भाजपा सार्वजनिक तौर पर हमेशा इस बात को कहते हैं कि वो भारत विभाजन के खिलाफ रहे हैं और वो भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश का महासंघ बनाना चाहते हैं। लेकिन अंदरखाने, दंगों में उनका सबसे प्रिय मुस्लिम विरोधी नारा ’’मुसलमानों का एक स्थान, पाकिस्तान या कब्रिस्तान’’ होता है। इसी तरह ‘दंगा पीड़ित’ का मतलब उनके लिए सिर्फ दंगा में पीड़ित इंसान नहीं होता। इसीलिए गुजरात की घटनाओं के बाद मोदी ने जब मुआवजों की घोषणा की तो उसमें हिंदुओं को दो लाख और मुसलमानों को एक लाख देने की बात कही। जिस पर चौतरफा आलोचना के बाद उन्हें दोनों का मुआवजा बराबर करना पड़ा।
ऐसे में जाहिर है, मध्य प्रदेश में भाजपा जो कर रही है उसका मुकाबला विचारधारात्मक स्तर पर ही करना होगा। लेकिन संसदीय राजनीति में ‘विचारधाराओं के अंत’ के इस दौर में ऐसा करने के लिए कौन तैयार होगा?
शाहनवाज आलम
लेखक स्वतंत्र पत्रकार व हस्तक्षेप के लेखक हैं।


