काँग्रेस का अंतर्द्वंद्व-उबरना ही होगा इससे
काँग्रेस का अंतर्द्वंद्व-उबरना ही होगा इससे
उत्तर प्रदेश में राजबब्बर भर सकते हैँ काँग्रेस में नयी उर्जा
लखनऊ। काँग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इस वक्त छुट्टी पर हैं। उनकी अनुपस्थिति में काँग्रेस का पुराना घाघ खेमा उन्हें निपटा देना चाहता है। सत्तालोलुप हो चुका यह घाघ खेमा लोकसभा चुनाव में हार का ठीकरा तो राहुल के सिर फोड़ना चाहता है लेकिन जब राहुल काँग्रेस को बदलना चाहते हैं, तो इसे परेशानी होती है।
राहुल गाँधी की अनुपस्थिति में कई राज्यों में काँग्रेस अध्यक्षों की नियुक्ति का ऐलान हो गया है। उत्तर प्रदेश में भी बदलाव की संभावना जताई जा रही है। इसी बदलाव के बीच काँग्रेस के पूर्व सांसद राज बब्बर का नाम नए नेतृत्व के रूप में उभर रहा है।
लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व महासचिव व ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष रहे रामेंद्र जनवार इस विश्लेषण में काँग्रेस की अंदरूनी राजनीति व काँग्रेस का अंतर्द्वंद्व पर प्रकाश डाल रहे हैं।
काँग्रेस के भीतर नयी और पुरानी पीढ़ी का अंतर्द्वंद्व आज जगजाहिर है। एक तरफ नये नेतृत्व में काँग्रेस को अपने ढँग से पुनर्गठित कर आगे ले जाने की इच्छा साफ़ परिलक्षित हो रही है, वहीं पुरानी पीढ़ी अभी तक काँग्रेस जैसे चलती आई है, उसी ढर्रे पर आगे बढ़ाना चाहती है और पार्टी के इस अंतर्द्वंद्व में आज पुरानी पीढ़ी का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है।
बज़ट सत्र के ठीक पहले नाराजगी में राहुल का अवकाश पर चले जाने को भी काँग्रेस का अंतर्द्वंद्व के नतीजे के रूप में देखा जा रहा है।
राहुल के नेतृत्व सँभालने की दिशा में अग्रसर होने के बाद भी निर्णय लेने का अधिकार पुरानी पीढ़ी का नेतृत्व अपने हाथ में रखना चाहता है यही कारण है कि अपनी लाख कोशिशों के बाद भी राहुल गाँधी महाराष्ट्र और गुजरात में अपने मन मुताबिक बदलाव न करवा पाने से नाराज होकर अवकाश पर चले गए हैं।
उधर पुराना नेतृत्व राहुल गाँधी की गैरमौजूदगी का भी फायदा उठाकर इस बीच ही प्रदेशों में बदलाव करवा लेना चाहता है, तेलंगाना और गुजरात का परिवर्तन इसका उदाहरण हैं। अभी दिल्ली, पँजाब, महाराष्ट्र, जम्मू काश्मीर सहित उत्तर प्रदेश में भी बदलाव संभावित है।
यहाँ पर बात हम उत्तर प्रदेश की करना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश में काँग्रेस निर्जीव अवस्था में दिखाई दे रही है, जबकि इसी प्रदेश से चुनाव लड़कर सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी दोनों लोग संसद् तक पहुँचते आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है, जो एक लंबे अर्से से देश की राजनीति की दिशा तय करता रहा है, आज जिसका ज्वलन्त उदाहरण है कि प्रधानमंत्री नरेँद्र मोदी गुजरात के होने के बावजूद लोकसभा का चुनाव उत्तर प्रदेश आकर बनारस से लड़े हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि उत्तर प्रदेश में काँग्रेस लंबे अरसे से सत्ता से बेदखल रही है और 2017 में ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहाँ समाजवादी पार्टी सत्ता में है और भाजपा सत्ता पर काबिज होने के लिए अपनी पूरी ताकत झोँकने की तैयारी में है।
उत्तर प्रदेश में भी काँग्रेस में नई और पुरानी पीढ़ी की जंग दिखाई दे रही है, लेकिन यहाँ काँग्रेस की बड़ी त्रासदी यह है कि जहाँ पुरानी पीढ़ी लगभग पच्चीस सालों से काँग्रेस की सत्ता में वापसी करवा पाने में नाकाम रही है, वहीं नई पीढ़ी तो सिरे से ही बेदम दिखाई दे रही है।
यहाँ काँग्रेस के सामने दो हजार सत्तरह की चुनौती से जूझने के लिए अगर एक नाम सोचा जाए, तो उसे तय कर पाना मुश्किल दिख रहा है।
इधर सोशल मीडिया में समाजवादी खेमा छोड़कर काँग्रेस में आए सिने अभिनेता एवं पूर्व सांसद राजबब्बर का नाम तेजी से उछला है और यह नाम उछालने वाले भी परंपरागत काँग्रेसी ना होकर ऎसे लोग हैँ जो राजनीति से अलग स्वतंत्र लेखन, पत्रकारिता, ट्रेड यूनियन व अन्य सामाजिक साँस्कृतिक क्षेत्रोँ से जुड़े हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिकता और जातिवाद के चँगुल से मुक्त देखना चाहते हैं।
राजबब्बर के पक्ष में तर्क
राजबब्बर के पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं, वह भी गौरतलब हैं। कहा जा रहा है कि राजबब्बर पिछड़े समाज के सामान्य परिवार से आए हैं, लेकिन अपनी मेहनत के बलबूते उन्होंने सिने जगत से लेकर राजनीति तक में अपना मुकाम बनाया है। दूसरे समाजवादी पार्टी छोडकर काँग्रेस में आए हैं, इसलिए प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के निशाने पर होंगे और काँग्रेस ऎसे में खुद सामने दिखाई देगी। उनके आने से असंतुष्ट काँग्रेसी और छिटके हुए वामपंथी भी काँग्रेस से जुड़ेंगे। काँग्रेस को प्रदेश में खानदानी काँग्रेसवाद के आरोप से मुक्ति मिलेगी।
राजबब्बर का 2007 का दादरी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष का अनुभव प्रदेश में मौजूदा भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ काँग्रेस के साथ किसानों को लामबंद करने में काम आएगा। मुलायम की मोदी से बढ़ती नजदीकियोँ से नाराज अल्पसँख्यक भी राजबब्बर के नेतृत्व में काँग्रेस को विकल्प के रूप में पसंद करेगा, आदि-आदि।
अब देखना यह है कि उत्तर प्रदेश से सांसद होने के नाते और प्रदेश में पूरी तरह डूब चुकी काँग्रेस को पुर्नजीवित करने के लिए उत्तर प्रदेश पर कोई फैसला लेने से पहले राहुल की वापसी का इंतजार किया जाएगा या आपसी द्वंद्व में हावी पुरानी पीढ़ी राहुल गाँधी की वापसी से पहले ही उत्तर प्रदेश में काँग्रेस का भविष्य तय कर देगी।
रामेन्द्र जनवार, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। वे लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महामंत्री व ऑल इण्डिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की उप्र इकाई के अध्यक्ष रहे हैं।


