कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान देने से भाजपा भयमुक्त हो गई

राकेश अचल

कांग्रेस के नए समीकरणों पर लिखने में थोड़ी देर हो गई है, लेकिन ज्यादा भी नहीं हुई है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिहाज से कांग्रेस ने मध्यप्रदेश को जो नई टीम दी है, वो इंगित करती है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अभी भी नए नेतृत्व पर दावं लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। कांग्रेस में अभी उम्रदराज नेताओं को उस तरह नहीं धकियाया जा रहा है जैसा भाजपा में पांच साल पहले हो चुका है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बनी राजीव गांधी की टीम में शामिल रहे श्री कमलनाथ 34 साल बाद कांग्रेस को कंधा देने के लिए चुने गए हैं। इन साढ़े तीन दशकों में देश की राजनीति में तमाम पानी बह गया है, लेकिन कमलनाथ कांग्रेस में आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं।


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कमलनाथ ने कभी प्रदेश की राजनीति नहीं की, किन्तु उनका प्रदेश कांग्रेस में एक धड़ा जरूर वजूद में रहा। वे प्रदेश के उन अजेय कांग्रेस नेताओं में से हैं, जिन्होंने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कभी पराजय का मुंह नहीं देखा।

जाहिर है कि पंद्रह साल से सत्ता से दूर मध्यप्रदेश कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने के लिए नए और ऊर्जावान नेतृत्व की जरूररत थी, लेकिन पार्टी हाईकमान ने नौजवान नेतृत्व को मौक़ा नहीं दिया। लगता है कांग्रेस अभी भी नया नेतृत्व तैयार करने में भाजपा से बहुत पीछे है।

कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान देने से भाजपा भयमुक्त हो गई है। भाजपा को आशंका थी कि यदि कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा नेतृत्व को आगे किया गया तो भाजपा के लिए समस्या पैदा हो सकती है।

मध्य प्रदेश में भाजपा का संगठनात्मक ढांचा इस समय चरमराया हुआ है। कांग्रेस के कार्यकर्ता बिखरे हुए हैं, गुटों में बंटे हुए हैं, लेकिन इन कार्यकर्ताओं और नेताओं की शीत निद्रा से बाहर निकाला जाए तो ये पार्टी के काम आ सकते हैं, सवाल ये है कि क्या कमलनाथ में इतनी ऊर्जा और संगठनात्मक क्षमता है कि वे इतना दुरूह काम कर सकें। युवाओं में अकेले ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति आकर्षण था, लेकिन उनके हाथ में चुनाव प्रचार की कमान दे दी गई।

पंद्रह साल से प्रदेश में कमल की खेती कर रही भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व ने आखिर कमलनाथ को ही चुना, इसके पीछे क्या तर्क है ये कोई नहीं जानता। जाने भी कैसे इसके पहले कमलनाथ ने कभी प्रदेश के चुनाव में रेखांकित करने वाली भूमिका का निर्वाह किया ही नहीं। कमलनाथ की मदद के लिए चार कार्यवाहक अध्यक्षों की तैनाती से भी लगता है कि पार्टी को अपने पुराने अनुभव याद हैं। कांग्रेस के हाथों से अनेक अवसरों पर परोसी हुई थाली गँवा देने का आरोप है। मप्र इसका अपवाद है।

मुझे लगता है कि यदि कांग्रेस अपनी नई टीम के जरिए प्रदेश के चारों कोनों को दबा लेती है तो परिणामों पर फर्क पड़ सकता है। कमलनाथ के पास हाथ का पंजा तो पहले से ही है, अब उन्हें केवल कमल पकड़ना है वे ऐसा कर भी सकते हैं, क्योंकि हालात उनके अनुकूल है, हवा उनके अनुकूल है। केवल सिंधिया और दिग्विजय सिंह भी यदि सबके अनुकूल हो जाएँ तो बाजी पलट भी सकती है, लेकिन लड़ाई उतनी आसान नहीं है, दांतों चने तो सबको चबाने होंगे।

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