कारपोरेट द्वारा, कारपोरेट के लिए, कारपोरेट का बजट

कारपोरेट राज की राजधानी में भी सफेद टोपियों की बहार

अर्थशास्त्र धन पैदा करने का मुनाफे का शास्त्र है।

जो धन पैदा कर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जाहिर हैं, वे अर्थशास्त्र बेहतर समझते होंगे।

यह अर्थशास्त्र न जनता का है और न हमारा है। यह बजट न जनता का है और न हमारा है।

#कारपोरेट द्वारा #कारपोरेट के लिए# कारपोरेट का बजट है।

नैनीताल समाचार का होली अंक आ गया है।

हमारे फिल्मकार मित्र जोशी जोसेफ ने अपनी ताजा फिल्मों की सीडी भेज दी है।

समांतर और समकालीन तीसरी दुनिया के अंक आ चुके हैं।

पढ़ने देखने का वक्त निकालना मुश्किल हो रहा है।

पहाड़ों में हामेर तमाम मित्र अभी से छलड़ी के मूड में हैं। नैनीताल में राजीवदाज्यू ने अपना होलियार प्रोफाइल जारी कर दिया है। एक से बढ़कर होली के गीत शेयर हो रहे हैं।

सफेद टोपी और सफेद कुर्ता पाजामा में रंग के छींटे और मालरोड होकर तल्ली मल्ली तक गिरदा के हुड़के की थाप पर मस्त होलियारों के जुलूस का वह नजारा फिर आंखों में दर्ज हो रहा है।

वृंदावन में लट्ठमार होली की तस्वीरें अखबारों में छपने लगी हैं।

वसंत बहार है। जंगल जंगल खिले पलाश, बुरांश हैं।

धनबाद में हम होली के दिन भंग छानने वाले मित्रों की सोहबत में रहे हैं तो मेरठ में तो बाकायदा भंग छानकर अखबार तब तक निकालते रहे हैं, जब तक न एक होली ऐसी आय़ी कि मशीनमैन रातभर हंसता रहा और रोता रहा। बाहर से किसी को बुलाकर अखबार छापना पड़ा।

बिन होली भंग का मजा बनारस के घाटों में हिंदी के दिग्गज कवि ज्ञानेंद्रपति और उनकी टोली के साथ गंगाघाट पर गंगा आरती के मध्य बीच गंगा में उन्हीं के तब ताजा गंगाघाट की कविताओं को उनकी जुबानी सुनकर लिया है।

अब सारा देश होली के मोड में है।

हकीकत यह है कि असली होली तो विदेशी निवेशकों की है। होली से पहले होली और दिवाली से पहले होली। होली बाजार के तेज सरपट दौड़ते सांढ़ों की है या अश्वमेधी घोड़ों की है। बुलरन से भंग का रंग निराला है। भारत जागा है आठ की विकास दर पर। मेकिंग इन टनाटन है। रस्सी जिनकी हो गयी, वे इस टनटनाहट को साझा कर लें तो ययाति कायाकल्प हो जाये शर्तिया।

बहरहाल अर्थशास्त्र बाजार का है। हम बाजार से बाहर खड़े लोग हैं।

अर्थशास्त्र धन पैदा करने का मुनाफे का शास्त्र है।

जो धन पैदा कर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जाहिर हैं, वे अर्थशास्त्र बेहतर समझते होंगे।

यह अर्थशास्त्र न जनता का है और न हमारा है। यह बजट न जनता का है और न हमारा है।

#कारपोरेट द्वारा #कारपोरेट के लिए# कारपोरेट का बजट है।

आज सुबह सुबह वित्त विधेयक और डाउ कैमिक्लस का बहले से लीक हो गया बजट भाषण पाठ किया।

इस डाउ कैमिकल्स बजट और मनसेंटो अर्थव्यवस्था से देश निर्माण का जो कार्निवाल विविध भाषाओं में प्रिंट मीडिया में दर्ज है, उसकी झांकियां अपने ब्लागों पर जारी करता रहा दिन भर ताकि सनद रहे कि हमउ बजट पढ़त रहे।

बीबीसी ने एक सर्वे कराया है, जिसमें सारे आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों ने इस बजट के सर्जक को दस में से नौ से लेकर सात अंक दिये हैं। इतनी कवायद के बावजूद दस में दस क्यों नहीं है, इस पर ताज्जुब हुआ।

दिन में रवीश कुमार का एक ट्वीट शेयर हुआ फेसबुक पर कि कारपोरेट के कंधे कमजोर हैं, इसलिए उनको कारपोरेट टैक्स में एक मुश्त पांच फीसद छूट है। कि कारपोरेट पर बोझ भारी है, इसलिए वेल्थ टैक्स की जगह एक करोड़ की आय पर दो फीसद सरचार्ज। मध्य वर्ग की रीढ़ मजबूत है, इसलिए इनकम टैक्स में छूट है।

भाई रवीश दो टूक मंतव्य और सीधे सवाल करने के विशेषज्ञ है और हमें हैरत हुई नहीं।

शाम तलक एक रवीश हितैशी ने सूचना दी है कि यह ट्वीट फर्जी है और रवीश के नाम का एकाउंट भी फर्जी है।

अर्थशास्त्र धन पैदा करने का मुनाफे का शास्त्र है।

जो धन पैदा कर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जाहिर हैं, वे अर्थशास्त्र बेहतर समझते होंगे।

यह अर्थशास्त्र न जनता का है और न हमारा है। यह बजट न जनता का है और न हमारा है।

#कारपोरेट द्वारा #कारपोरेट के लिए # कारपोरेट का बजट है।

सुबह सुबह नींद खुली मुंबई से कर्नल साहेब के फोन पर। वे बोले कि बजट कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

हमने कहा, समझने की क्या बात है, इंफ्रास्ट्रकक्चर बूम-बूम है। साढ़े आठ फीसद विकास दर है। राजस्व घाटा वित्तीयघाटा कम है। मंहगाई शून्य है। उत्पादन के आंकड़े बढ़त पर है। गरीबी हटा दी गयी है। अब बजट सोच है। अफसोस नहीं है कि विकास के हीरक राजमार्ग पर दनादन चल निकला है देश।

हमने उनसे पूछा कि कर्नल साहेब, हमने हाई स्कूल के बाद कभी हिसाब किया नहीं है। जोड़- तोड़ घटत बढ़त में समझिये, कच्चे हैं। अब हमें आप समझाइये कि ट्रिलियन डालर की इकोनामी में यह जो च्रिलियन डालर है, वह किस किस बंदे के एकाउंट में है, बाकी जो आधी जनता है, उनका तो खाता ही मोदी महाराजज्यू ने खुलवाया है। बाकी जो मध्यवर्ग के लोग हैं, निम्न मध्य वर्ग के कर्मचारी कारोबारी किसान इत्यादि हैं, जो सब्सिडी खातिर निराधार से आधार बनने को बेताब कतारबद्ध हैं, उनका कितना फीसद हिस्सा है इस ट्रिलियन डालर में।

हमने उनसे पूछा कि विदेशी निवेशक जो होशियार हैं, जिनका पिछला सारा टैक्स एक झटके से वोडाफोन हो गया, जिनके लिए हांगकांग और मारीशस अब गुजरात में है, जिन्हें अब स्विस खातों की जरुरत भी नहीं है, जिनका सारा कालाधन सफेद है और जनता के हर खाते में पंद्रह लाख जमा करने का वादा एक मजाकिया जुमला है, कल फिर न कह दें कि बजट में कालाधन लाने का वादा भी मजरको ठैरा, वैसे जो पकड़े जाएंगे, वे कड़ी सजा के हकदार होंगे, उन होलियारों की जो निरंकुश विदेशी पूंजी अबाध प्रवाह है, जिसपर नाचै है सेनसैक्स साढ़ों तमाम और अश्वमेधी घोड़ों का दानापानी भी उनके जिम्मे है, उनन को कितना टैक्स लगा है।

हमने पूछा कि गार जो खत्म हो गया, लाखों करोड़ की जो लंबित परियोजनाओं की हरी झंडी है, जो मेकिंग इन अमेरिका है, जो मनसेंटो डाउकैमिक्लस कायाकल्प है, जो डीटीसी खत्म है, जीएसटी लागू है, उसमें राजस्व प्रबंधन और संशोधित कर ढांचे के देश निर्माण प्रकल्प के तहत बिलियनर मिलियनर तबके पर किताना कितना टैक्स लगा है और टैक्स छूट कितना है।

अरबों की जिनकी परियोजनाएं हैं, तमाम संसाधन, जल जंगल जमीन जिनके हवाले हैं और जो हर घर को रोजगार देंगे, रोटी देंगे, पांच फीसद कारपोरेट टैक्स में उनके खाते में जो बचत और मुनाफा है और बाकी जो टैक्स छूट है, वह सारी रकम राष्ट्रनिर्माण में कहां कहां लगेगी।

कर्मचारियों का जिनका वेतन औसत चालीस हजार है, वे आखिर कितना रकम बचा सकते हैं और बचत माध्यमे कितना जमा करके वे करमुक्त बचत योजना का लाभ कमा सकते हैं। यह सवाल लेकिन अपने चैनल में लाइव कर विशेषज्ञों से रवीश कुमार ने ही पूछा था। न चैनल फर्जी था और रवीश फर्जी थे और न सवाल फर्जी है।

मीडिया वालों को अभी अभी आधा अधूरा मजीठिया मिला है। एरीयर मिला नहीं है। दो-दो प्रमोशन भी नहीं मिला है। कैटेगरी मालिकान की मर्जी मुताबिक है। चंद महीने में पुराना कर्जा निबटाकर हमारे गुरुजी जो कुंवारे हैं, वे भी टैक्स बचाने के लिए काफी बचत नहीं कर पा रहे हैं।

हम तो अलग पागल हैं जो मानते हैं कि बचत से हम जो बचाते हैं, मुद्रास्फीति से वह बचत जब बाजार की सुनामी के पार हमारे खाते में आय़ेगी, तब उसका मूल्याज से कम ही होगा। फिर जो बचत का शारदा फर्जीवाड़ा है, जो बीमा, पेंशन पीएफ तक बाजार में झोंकने की तैयारी है, बेहतर है कि हम टैक्स का नकद भुगतान कर दें।

हमने कर्नल साहेब से पूछा कि जब सब कुछ निजीकरण है, जब सब कुछ एफडीआई है, जब सारा खेल विनिवेश और नीलामी का है, सारा विकास पीपीपी और विदेशी पूंजी की बहार है, जब सब कुछ विनियंत्रित है, जब सब कुछ क्रयशक्ति निर्भर है और निरंकुश बाजार है, तब आयकर जस का तस, सीमाशुल्क में कटौती और सर्विस टैक्स में इजाफा, जीएसटी के तहत बिक्रीकर में इजाफा, उपभोक्ता बाजार में आग है और जनपद देहात श्मशान है, ऐसे में लीक हुए बजट पर कारपोरेट जश्न के बावजूद हमें समझना पड़ेगा कि यह देश की आम जनता का कल्याणकारी बजट है।

पांच फीसद कारपोरेट टैक्स में छूट और वेल्थ टैक्स के बदले दो फीसद सरचार्ज और सालाना चैक्स फोरगन का कोई हिसाब न बजट भाषण में है और न वित्त विधेयक में।

किन्हीं अर्थ विशेषज्ञ जोशी जी ने हमारे लिखे पर मंतव्य किया हैः अबे मूरख, इकोनामिक्स पढ़ा भी है जो बकवास किये जा रहा है।

इकोनामिक्स जो पढ़े हैं, वे बाग-बाग हैं। कि देश का कायाकल्प हो गया और देश को पहला रियल बजट डाउ कैमिक्लस और मनसैंटो का मिल गया है।

बंगाल और बिहार को स्पेशल पैकेज से साफ है कि डील हो चुकी है संसदीय सहमति की, साझा तस्वीरें हुलियार हैं और घाटी पर जम्मू से केसरिया राजकाज है। प्रधानमंत्री विपक्ष का सम्मान करते हुए संशोधन को तैयार हैं। सारे अध्यादेश अब कानून बनकर लहलहायेंगे। फिर विकास ही विकास।

संसद में सारे फैसले होते नहीं हैं। सारा राजकाज कानून मुताबिक होता नहीं है। सारा कानून संविधान के दायरे में भी होता नहीं है। कानून का राज सीबीआई तिलिस्म है।

बजट में जो हुआ नहीं है, जिसकी शिकायत की वजह से किसी अर्थ विशेषज्ञ ने डाउ कैमिकल्स के मनसैंटो बजट को दस में पूरे दस नंबर दिये नहीं हैं, वह गुंजाइश बाकी है।

बहरहाल अर्थशास्त्र बाजार का है। हम बाजार से बाहर खड़े लोग हैं।

अर्थशास्त्र धन पैदा करने का मुनाफे का शास्त्र है।

जो धन पैदा कर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जाहिर हैं, वे अर्थशास्त्र बेहतर समझते होंगे।

यह अर्थशास्त्र न जनता का है और न हमारा है। यह बजट न जनता का है और न हमारा है।

कारपोरेट द्वारा, कारपोरेट के लिए, कारपोरेट का यह बजट है। बाकी कुछ हम समझ नहीं रहे हैं।

जैसे पहाड़ों में छलड़ी के मूड में सफेद टोपी झकाझक हैं, वैसे ही कारपोरेट राज की राजधानी में भी सफेद टोपियों की बहार है। बहरहाल कारपोरेट राज के मामले में कारपोरेट घरानों के खिलाफ इन टोपियों के मोर्चे पर सन्नाटा बटा दो है। बजट पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी मिली नहीं है। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अन्ना के सत्याग्रह के मोर्चे में शामिल चेहरे न सांप्रदायिकता के खिलाफ बोल रहे हैं, न बोल रहे हैं जनसंहारी नीतियों और आर्थिक मुद्दों पर। हिंदू साम्राज्यावद का यही विकल्प है बहरहाल।
पलाश विश्वास