काला धन पूँजीवाद की ‘जायज’ औलाद है। पूँजीवाद तक़रीबन 500 साल का बुड्ढा हो चुका है! वेंटिलेटर पर जीवित रखा गया है। अमेरिकी मिसाल है। वहां की जनता को पूँजीवादियों ने केवल दो ही विकल्प दिए थे, एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ!

दोनों का इतिहास सामने आ चुका है! अंतर्द्वंद ने कोई कसर नहीं छोड़ी उनके अतीत को उधेड़ने में!

वापस भारत में देखें। काँग्रेस को हटाना अनिवार्य हो गया था क्योंकि जनता बदहाल थी। बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार बेलगाम था! मजदूर वर्ग के विद्रोह की आशंका थी!

जन लोकपाल बिल आन्दोलन के रूप में सुनहरा मौका मिला बुर्जुआ शासकों को। जनता के आन्दोलन को अपनी मुताबिक मोड़ने का और किसी भी समाजवादी क्रांति के तरफ मुड़ने से रोकने के लिए!

इस आन्दोलन का क्या अंजाम हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं है!

फिर भी यह दोहराने में हर्ज नहीं है कि बुर्जुआ मालिकों ने अरबों रुपये लगाये, मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया, धार्मिक और राष्ट्रीय उन्माद फैलाया, व्यक्तिवाद को ‘मोदी’ के रूप में सामने लाया गया, झूठे सपनों का अम्बर लगा। साथ साथ “कंटेंट राइटर” और “जिंगल” बनाने वालों का जबरदस्त इस्तेमाल, देशी और विदेशी कंपनियों का इस्तेमाल, फोटो शौप, आई टी केंद्र का निर्माण, जहाँ से पैसे पर “समर्थक” लाये गए, जो 50 से 100 आई डी प्रति व्यक्ति बनाकर सोशल मिडिया पर दिन रात लिखते रहते और राजाओं के समय के भांडों को भी पीछे छोड़ दिया!!

चुनाव में विपक्षी उम्मीदवारों के समान नाम और समान चुनाव चिन्ह को चुनावी दंगल में लाया, जिन्होंने कभी भी चुनाव प्रचार नहीं किया, 4-5000 विपक्ष का वोट ले गए।

चुनाव के पहले रात में करोड़ों रुपये और शराब हर चुनावी चेत्र में बांटे गए, बोगस मतदान किया गया!!

और पैदा हुआ प्रधान मंत्री मोदी! आपने देखा होगा कैसे कोई भी मिडिया बिना PM जोड़े मोदी का नाम भी नहीं ले सकता!

क्या मोदी भाजपा या आरएसएस के आर्थिक, राजनितिक, सामाजिक, धार्मिक नीतियों से भिन्न है, जोकि काँग्रेस से मिलता जुलता है!

यानि पूंजीवाद का बेशर्मी से मजदूर वर्ग और किसान का दोहन करना और जुमला यह कि देश का विकास हो रहा है!

व्यक्तिवाद भयानक जहर है मजदूर वर्ग और किसानों के लिए!

08 नवम्बर, 2016 को एक और ‘धमाका’ अपने चाटुकारों और समर्थकों के लिए! 500 और 1000 के नोटों का खत्म करना!

यह घटना पहली नहीं है भारत के इतिहास में! 1978 में भी कोशिश की गयी थी काले धन को ख़त्म करने का, पर तब से आज तक यह धन 10-100 गुना बढ़ चुका है!

काले धन को सफ़ेद करने के लिए सरकार और भी भिन्न भिन्न कार्यक्रम लाती है, जैसे VDS, जहाँ आप अपने काला धन को जमा करा दें, उसपर 30-40% का कर दें और मुक्त हो जाएँ किसी भी दंडात्मक कार्यवाई से!

काला धन पूँजीवाद की ‘जायज’ औलाद है, जैसे कि बेरोजगारी, अपराध, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, युद्ध और अज्ञानता, अंध विश्वास!

जब भी कोई शासक कष्ट में होता है, खास कदम उठाता है! जरूरत पड़ने पर कुछ पूँजीपतियों के खिलाफ कार्रवाई और यहाँ तक कि सैनिक शासन तक लागू कर सकता है!

आज, जो हम देख रहे हैं वह बुर्जुआ तानाशाही का ही रूप है!

श्रम कानून को खत्म करना, जमीनें हड़पने के हर उपाय, जहाँ कानून से नहीं, वहां पुलिस के द्वारा, जैसे झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में हो रहा है!

इस सब के बावजूद भाजपा की बिहार में करारी हार हुई, क्योंकि बुर्जुआ वर्ग के दूसरे धड़े आपस में मिल गए! यूपी में इसके पुनरावृति की संभावना है!
जातीय समीकरण भारी पड़ रहा है, धार्मिक, देशवाद के उन्माद पर!
चुनाव सर्वहारा वर्ग और पूंजीपति वर्ग के बीच नहीं हो रहा है, बल्कि पूंजीपति वर्ग के बीच ही है!

ऐसे में जरूरत है ‘कुछ’ खास करने की ताकि जनता इन्हें वोट दे, हालाँकि उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति और बदतर हुई है। राजनीतिक दलों के चुनावी वादों के बावजूद!
500 और 1000 के नोटों के प्रचलन को बंद करना भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है!
बड़े पूंजीपति, सटोरिये, दल्ले घर में बोरियों में पैसे नहीं रखते बल्कि बैंक में रखते हैं, देशी या विदेशी! सोने और जमीन में शामिल है उनका पूंजी!

वैसे भी यदि कुछ ने रखा है तो उन्हें पहले ही भनक मिल गयी होगी और अब भी देर नहीं है, वह अपना पैसा भंजा लेंगे! कुछ मध्यम वर्गीय दलाल और व्यापारियों को जरूर कष्ट होगा पर काला धन का खात्मा??

भद्दा मजाक है! आरएसएस के आई टी केंद्र से यह दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है कि 2000 के नए नोट में स्मार्ट चिप है और जहाँ छुपाओगे वहां उपग्रह से उसका पता किया जायेगा!

व्यक्तिवाद को बनाने और भुनाने में पूंजीवाद अव्वल है, जो समाजवाद में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, काला धन के साथ खत्म हो जायेगा!

एक और पक्ष है इस 500 और 1000 के नोटों का खत्म करने के पीछे!
फासीवाद भारतीय जनता की सहनशीलता का टोह ले रही है!
मध्य प्रदेश के एनकाउन्टर की तरह यह भी एक जाल है! जनता के विद्रोह को तो कुंद किया ही जा रहा है, कितना शोषण किया जाये, किस हद तक उनको दबाया जा सके, इसका अध्ययन किया जा रहा है! फासीवाद का पुराना निम्न स्तरीय काम!! पर भयानक और खतरनाक! इसमें विदेशी ताकत भी शामिल हैं!

समय है, पूंजीवाद को समझाना, और उसके मालिक और नौकरों के हर चाल की बारीकी से अन्वेषण करना! मजदूर वर्ग को सचेत करना और समाजवाद के क्रांतिकारी कार्यक्रमों से लैश करना! एकताबद्ध होना और बुर्जुआ को सत्ता से बेदखल करना!

फासीवाद को हराकर वापस बुर्जुआ प्रजातंत्र नहीं चाहिए, जो कि कुछ 100 या 1000 के लिए और उसके नौकरों के लिए है बल्कि हमेशा-हमेशा के लिए सर्वहारा शासन स्थापना करना, जहाँ से अगला कदम वर्गविहीन समाज ही होगा! वही एकमात्र रास्ता है 100% रोजगार के लिए, काला धन से मुक्ति के लिए, जाति और धर्म विहीन समाज के लिए, शोषण विहीन समाज के लिए, भ्रष्टाचार और अपराध से पूर्ण मुक्ति के लिए!

व्यक्तिवाद मुर्दाबाद! पूंजीवाद मुर्दाबाद!

मजदूर एकता जिंदाबाद! भगत सिंह ज़िन्दवाद!

कैप्टन के के सिंह