कुछ बातें बेमतलब / निर्वहन कुमार का निर्वहन
कुछ बातें बेमतलब / निर्वहन कुमार का निर्वहन

निर्वहन का मतलब यह नहीं होता है कि निभाते जाओ । निर्वहन का असली मतलब होता है ठेंगा।
लेकिन बिहार में अभी निर्वहन का दौर चल रहा है । हालांकि अधिकांश निर्वहन घोषणा है । घोषणा सिर्फ घोषणा के लिए होती है , उनका निर्वहन करना कठिन काम होता है । अधिकांश निर्वहन में माल खर्च होता है । इसी के लिए पुरानी कहावत है , न नौ मन तेल होगी , न राधा नाचेगी । नाचना और नचवाना भी सरकारी निर्वहन की एक प्रक्रिया होती है । निर्वहन धर्म पालन के लिए सरकार – मंत्री – अधिकारी लोगों को नचाते और नचवाते रहते हैं । ऐसे अवसरों के लिए भी हमारे पास कहावत है कि नाच आवे तो आंगन टेढ़ा ।
इस वक्त बिहार में निर्वहन नृत्य चल रहा है।
गुरु निर्वहन महराज के बोलों पर बिहार के मंत्री कथक नाच रहे हैं । अभी तक किसी को जानकारी नहीं मिली है कि मंत्री नाच रहे हैं या नचवा रहे हैं ।
एक प्रश्न यह भी है कि मंत्री किसे नचवा सकता है । हमारे यहां ऐसी भी परंपरा रही है कि मंत्री मुख्य मंत्री को नचवाता है। विश्वास नहीं होता तो आंध्र प्रदेश में देख लीजिए। लेकिन इन दिनों मंत्री नाच रहा है मुख्य मंत्री के बोल पर : पग निर्वहन बांध कर मंतरी नाचा रे ।
आम तौर पर यह माना जाता है कि मंत्री को अधिकारी नचवाते भी हैं । मंत्री को नचवाने के पहले खुद भी नाचते हैं । इसके पीछे का कारण यह होता है कि नाच विरोधी दोनों कहावतों – न नौ मन तेल होगा ,न राधा नाचेगी । इसी से बचने के लिए कहावत बना दी गई कि नाच आवे तो आंगन टेढ़ा । निर्वहन कुमार इस पर एक आयोग बैठा देते कि नाचना नहीं आता तो नहीं आता पर किसने आंगन को टेढ़ा बनाया ।
आयोग को यह पता होता है कि निर्वहन कुमार को बैठक विलास बहुत पसंद है । बैठक विलास से ही संचिका समागम होता है । निर्वहन के लिए संचिका अनिवार्य है । आयोग को खोजना ही था कि आंगन टेढ़ा क्यों हुआ । इस खोज में पता चला कि सरकार के निर्माण कार्य की बुनियादी शर्तों में से एक शर्त आंगन ही नहीं हर निर्माण को टेढ़ा बनाना है ।
आयोग ने पाया कि एक ही नहीं अनेक आंगन टेढ़ा है । आखिर ऐसा क्यों हुआ कि सारे के सारे आंगन टेढ़े ही हैं । बड़ी खोज बीन की गई । आजकल खोज का आसान तरीका हो गया है कि जिस पर शक हो उसकी बातचीत टेप कराई जाए । टेप पर टेप के बाद पता चला कि सारे के सारे आंगन टेढ़े इसलिए हैं कि आंगन बनाने का डिजायन ही टेढ़ा बनाया गया था ।
नतीजा यह निकला कि आंगन का टेढ़ा होना एक संस्थागत निर्णय है जो भूल से भरा है । निर्वहन कुमार ने तय किया कि इस भूल को ही मिटा दिया जाए । भूल मिटा दी गई ।
अब बिहार के विधान सभा सदस्य और विधान परिषद सदस्य करोड़ रुपए का आंगन टेढ़ा का निर्वहन नहीं कर पाएंगे । लेकिन एक नया लोकतांत्रिक निर्वहन सिर पर सवार हो रहा है । यह निर्वहन है ग्रामपंचायत और मुखिया का अधिकार । निर्वहन कुमार से बच कर कहां जाओगे सरकार । एक दिन ऐसा आएगा , बल्कि शुरु हो चुका है मुखिया के निर्वहन अधिकार टेढ़ा आंगन । कब तक बचोगे निर्वहन कुमार के निर्वहन से ।
जुगनू शारदेय
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं, फिलहाल दानिश बुक्स के सम्पादकीय सलाहकार


