Kairana-polarization and demonization efforts of Muslims

इस साल जून में, इलाहाबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मुस्लिम-बहुल कैराना शहर से हिन्दुओं के कथित पलायन पर चिंता व्यक्त की।

भाजपा का कहना था कि कैराना से मुस्लिम अपराधियों के आतंक और उनके द्वारा अवैध वसूली के चलते, 346 हिन्दू परिवार शहर छोड़कर चले गए हैं। इसके बाद, स्थानीय भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने इन 346 परिवारों की सूची जारी की। इससे यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर छा गया।

अमित शाह ने इलाहाबाद में एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए कहा कि केवल भाजपा ही उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी को हरा सकती है और राज्य के लोगों का आह्वान किया कि वे कैराना को हल्के में न लें।

संगीत सोम जैसे भाजपा नेताओं ने उत्तरप्रदेश की तुलना कश्मीर - जहां से पंडितों को पलायन करना पड़ा - से कर डाली।

उन्होंने कहा,

‘‘जो लोग कैराना छोड़कर जा रहे हैं हम उन्हें आश्वस्त करना चाहते हैं कि उत्तरप्रदेश में वे सुरक्षित हैं। हम उत्तरप्रदेश को कश्मीर नहीं बनने देंगे’’।

कैराना के मुद्दे पर भाजपा एक ओर पूरे मुस्लिम समुदाय को अपराधी घोषित कर रही है तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी को प्रदेश में कानून व्यवस्था न बनाए रखने के लिए दोषी ठहराने का प्रयास भी कर रही है। पार्टी का यह भी कहना है कि समाजवादी पार्टी, मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही है।

इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका भी संदिग्ध है। आयोग की एक टीम ने कथित पलायन की जांच की। हुकुम सिंह द्वारा तैयार की गई सूची में से तीन रहवासी इलाके चुने गए और इन इलाकों के छह-छह कथित पीड़ितों/विस्थापित परिवारों/व्यक्तियों को चुनकर यह पता लगाया गया कि क्या उन्होंने सचमुच पलायन किया है।

टीम ने सूची में शामिल चार विस्थापित परिवारों, जो देहरादून और सूरत जैसे दूरस्थ स्थानों में रहने चले गए थे, से टेलीफोन पर बातचीत की।
आयोग ने उन परिवारों की सूची उपलब्ध नहीं करवाई है, जिनसे उसकी टीम ने बातचीत की। वैसे भी, 346 कोई बहुत बड़ी संख्या नहीं है और आयोग की टीम आसानी से सभी परिवारों से संपर्क स्थापित कर, हुकुम सिंह के दावे की पुष्टि कर सकता था।

मुट्ठीभर परिवारों के साथ बातचीत कर किसी नतीजे पर पहुंचना उचित जान नहीं पड़ता। इससे आयोग के काम करने के तरीके और उसके निष्कर्षों की सत्यता पर प्रश्नचिन्ह लगता है।

आयोग के कुछ निष्कर्ष प्रथम दृष्टया संदिग्ध जान पड़ते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि वे मुसलमानों के संदर्भ में समाज में प्रचलित रूढ़ धारणाओं के अनुरूप हैं। ये निष्कर्ष इस प्रकार हैं :

(1) सन 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद, कैराना में लगभग 25-30 हजार मुस्लिम परिवार आकर बस गए। इससे शहर की जनसांख्यिकीय संरचना बदल गई। यह निष्कर्ष इसलिए गलत प्रतीत होता है क्योंकि सन 2011 की जनगणना के अनुसार, कैराना की कुल आबादी 89,000 थी। इतनी कम आबादी वाले शहर में 30,000 नए व्यक्तियों का बसना असंभव है क्योंकि इसके लिए अधोसंरचनात्मक सुविधाओं में बड़ा इज़ाफा ज़रूरी होगा।

(2) कैराना जिले में 24 मुस्लिम युवकों ने हिन्दू लड़कियों पर अश्लील फब्तियां कसीं और उनके साथ दुर्व्यवहार किया। मानवाधिकार आयोग को इस मुद्दे में जाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि किसी हिन्दू लड़की ने इस आशय की शिकायत आयोग से नहीं की थी। यह भी साफ नहीं है कि आयोग ने किन व्यक्तियों से बात की और वह इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा।

आयोग के निष्कर्ष इसलिए भी संदिग्ध हैं क्योंकि आयोग द्वारा की गई जांच के पहले ‘द हिन्दू’ और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ जैसे प्रतिष्ठित समाचारपत्रों ने इस इलाके में विस्तृत तथ्यान्वेषण किया था और उनके निष्कर्ष, आयोग के निष्कर्षों से सर्वथा भिन्न थे।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की एक टीम ने भी इलाके का दौरा किया और पाया कि मानवाधिकार आयोग के अधिकांश निष्कर्ष आधारहीन थे।

अल्पसंख्यक आयोग का कहना है कि इस आशय के कोई आधिकारिक रिकार्ड उपलब्ध नहीं हैं कि 30,000 दंगा पीड़ित मुसलमान कैराना में बस गए हैं।

कुछ स्थानीय एनजीओ ऐसे मुसलमानों की संख्या 200 बताते हैं।

दो नागरिक समाज समूहों ने भी इलाके का दौरा किया। इनमें से एक टीम में कुछ वकील, जेएनयू के शिक्षक और सद्भाव मिशन, हिन्द मजदूर सभा, संयोजक शान्ति दल व नेशनल मूवमेंट फ्रंट के प्रतिनिधि शामिल थे। दूसरी तथ्यान्वेषण टीम का नेतृत्व अफकार इंडिया फाउण्डेशन ने किया था।

इन दोनों तथ्यान्वेषण टीमों के निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

जीविका की तलाश में हो रहा है पलायन

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ जैसे कई अखबारों ने इस मामले की जांच की। शामली के जिला मजिस्ट्रेट व पुलिस के अनुसार, कथित पलायनकर्ताओं की सूची में शामिल 119 परिवारों में से पांच का कोई भी सदस्य जीवित नहीं था, 12 अभी भी कैराना में रह रहे थे, 46 ने 2011 के बाद कैराना छोड़ा था और 68, दस से पंन्द्रह वर्ष पहले शहर को छोड़ चुके थे। इलाके में उद्योग न के बराबर हैं और इसलिए बेहतर आजीविका की तलाश में वहां के लोगों का पानीपत, सोनीपत व अन्य बड़े शहरों में पलायन आम है। पलायन को मुस्लिम अपराधियों के आंतक से जोड़ना अनुचित जान पड़ता है।

अपराध का संबंध किसी धार्मिक समुदाय से नहीं

भाजपा का यह दावा कि समाजवादी पार्टी, मुसलमानों के प्रति नरम रूख अपनाती है और वह प्रदेश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में असफल सिद्ध हुई है, पर प्रश्नचिन्ह लगाए जा सकते हैं।

यह आरोप लगाने से पहले भाजपा को अपने गिरेबान में भी झांकना था।

केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से, गोरक्षक दलों की हिम्मत बहुत बढ़ गई है और उनके द्वारा खुलेआम हिंसा की जा रही है। इन दलों के सदस्यों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।

भाजपा ने अपने उन सांसदों और मंत्रियों के खिलाफ भी कोई कार्यवाही नहीं की जिन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण और वक्तव्य दिए।

सन 2015 के उत्तरार्ध में, उत्तरप्रदेश में साम्प्रदायिक हिंसा की 68 घटनाएं हुईं, जिनमें से अधिकांश में मुसलमान हिंसा का शिकार हुए। इसके पहले, 2014 में 129 ऐसी घटनाएं हुई थीं।

समाजवादी पार्टी, मुसलमानों को सिर्फ एक वोट बैंक मानती रही है। उसने न तो दंगाईयों के खिलाफ कोई कार्यवाही की और ना ही मुस्लिम समुदाय को सुरक्षा उपलब्ध करवाई।

यह सही है कि इस इलाके में कई आपराधिक गिरोह सक्रिय हैं जो व्यापारियों को डरा धमका कर उनसे वसूली करते रहते हैं। परंतु इस मुद्दे को साम्प्रदायिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। इस आरोप की भी पुष्टि करने का प्रयास किया गया कि अधिकांश आपराधिक गिरोह मुसलमानों के हैं और वे हिन्दुओं को निशाना बना रहे हैं।

ऐसा पता चला कि इलाके में सक्रिय कई आपराधिक गिरोहों में मुसलमान और हिन्दू दोनों हैं और कई ऐसे गिरोह भी हैं जिनमें केवल हिन्दू शामिल हैं।

इन हिन्दू आपराधिक गिरोहों के खिलाफ लूट और हत्या के कई प्रकरण दर्ज हैं।

खंदरावली गांव का अमित ऐसे ही एक हिन्दू आपराधिक गिरोह का मुखिया है। उसकी गैंग पर अवैध वसूली और लोगों को जान से मारने की धमकी देने के आरोप हैं।

भबिसा का विपुल उर्फ खूनी भी एक बड़े आपराधिक गिरोह का मुखिया है और वह कामदला पुलिस स्टेशन क्षेत्र के पांच सबसे बड़े निगरानीशुदा बदमाशों में से एक है।

यह दिलचस्प है कि हुकुम सिंह के दावों के विपरीत, क्षेत्र के पांच सबसे बड़े अपराधियों में से चार हिन्दू हैं। राहुल खट्टर नाम के एक अपराधी पर पुलिस ने 50 हजार रूपए का इनाम घोषित किया था। बाद में कांधला के एक व्यापारी चमन सिद्दीकि से अवैध वसूली करने का प्रयास करते समय उसे पुलिस ने मार गिराया।

उत्तरप्रदेश में कई ऐसे आपराधिक गिरोह सक्रिय हैं जिन्हें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त हैं और इन गिरोहों के सदस्य हिन्दू और मुसलमान दोनों हैं।

कैराना क्षेत्र में तीन हिन्दू व्यापारियों के कत्ल हुए परंतु उसी अवधि में 11 मुसलमानों की भी हत्याएं हुईं।

कई मामलों में गुंडागर्दी और वसूली के खिलाफ हिन्दुओं और मुसलमानों ने मिलकर विरोध प्रदर्शन और बंद आयोजित किए परंतु आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई।

इससे स्पष्ट है कि इन आपराधिक गिरोहों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है और यह भी कि अपराधियों का किसी धर्म से कोई लेनादेना नहीं है।

सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों की अनदेखी

भाजपा द्वारा इस तरह के झूठ फैलाने और मुसलमानों को निशाना बनाने के पीछे क्या कारण हैं? इसका उत्तर है राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव।

इस तरह का झूठ फैलाकर भाजपा, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहती है।

शामली के नजदीक मुज़फ्फरनगर में सन 2013 के सितंबर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। वहां से बड़ी संख्या में मुसलमानों का पलायन हुआ था। इन दंगों से सबसे अधिक फायदा भाजपा को हुआ, जिसने 2014 के आम चुनाव में उत्तरप्रदेश में 80 में से 71 लोकसभा सीटें जीतीं।

भाजपा, मुसलमानों के बारे में हिन्दुओं में भय फैलाकर और उनके प्रति अविश्वास का भाव पैदा कर वोट कबाड़ना चाहती है।

बीफ और लव जिहाद के मुद्दों पर जुनून पैदा किया जा रहा है और समाजवादी पार्टी पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही है।

भाजपा द्वारा किए जा रहे इस ज़हरीली दुष्प्रचार के गंभीर नतीजे हो सकते हैं। कैराना मुद्दे को उठाकर भाजपा, मुस्लिम समुदाय को प्रताड़ित करना चाहती है।

भाजपा ने उत्तरप्रदेश के सामाजिक तानेबाने को छिन्नभिन्न कर दिया है और वहां भय और अविश्वास का माहौल पैदा कर दिया है।

मुज़फ्फरनगर के दंगों के कारण करीब 75,000 लोगों को अपने घरबार छोड़कर भागना पड़ा था।

भाजपा का यह दावा कि मुस्लिम अपराधियों के कारण हिन्दुओं को पलायन करना पड़ रहा है, दंगा पीड़ितों के घावों पर नमक छिड़कना है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि 2013 के दंगों के पहले भी भाजपा नेताओं द्वारा अपने भाषणों में यह आरोप लगाया जाता था कि मुसलमान हिन्दू लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार करते हैं। मुसलमानों को अपराधी बताना और उन पर तरह-तरह के आरोप लगाना आम है।

यह भी आश्चर्यजनक है कि भाजपा को केवल कश्मीरी पंडितों और कैराना के हिन्दुओं की फिक्र क्यों है। वह कभी गुजरात के 2002 के दंगों या कंधमाल हिंसा के पीड़ितों के पुनर्वास की बात क्यों नहीं करती। सांप्रदायिक दंगों के पीड़ित आज तक अपने घरों को नहीं लौट सके हैं और भय और असुरक्षा के भाव में जी रहे हैं। क्या सभी राजनीतिक दलों को उनकी फिक्र नहीं करनी चाहिए? क्या वोट हमारी राजनैतिक पार्टियों का एकमात्र भगवान बन गया है?

-नेहा दाभाड़े

(मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)

(लेखिका सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज्म, मुंबई की उपनिदेशक हैं)