फ़ाँसी की सज़ा का तो आंबे़डकर ने भी विरोध किया था,
लेकिन रोहित को ऐसा करने पर देशद्रोही साबित किया गया।
सुयश सुप्रभ
ये राधिका हैं। रोहित वेमुला की माँ। कैसा है आपका लोकतंत्र जो माँओं की आँखों में आँसू लाने का काम कर रहा है? उसे तो कुछ और करना था। उसे इस माँ के बेटों के हत्यारों को सज़ा दिलाना था, लेकिन वीसी, सांसद और अन्य दोषियों को अभी तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है।

जंतर-मंतर पर न्याय माँगने आई माँ को आपके लोकतंत्र ने बहुत निराश किया है।
आपका लोकतंत्र तो अभी तक यह नहीं समझ पाया कि बेटे की पहचान हमेशा पिता की जाति से नहीं तय होती है। राधिका अनुसूचित जाति की सदस्य हैं और उन्होंने रोहित का लालन-पालन भी अपनी जाति के सामुदायिक दायरे में किया। लेकिन रोहित की आत्महत्या के बाद मनुस्मृति ईरानी ने राधिका का बार-बार अपमान करके उनके इस दावे को ग़लत बताया कि रोहित अनूसूचित जाति के सदस्य थे। इतनी क्रूरता संघियों के संगठन में ही दिख सकती है।
रोहित वेमुला का संघर्ष समाज को पितृसत्तात्मक सोच से आज़ाद करने के संघर्ष से जुड़ा हुआ है। फ़ाँसी की सज़ा का तो आंबे़डकर ने भी विरोध किया था, लेकिन रोहित को ऐसा करने पर देशद्रोही साबित किया गया। जिस विवाद का संबंध मुज़फ़्फ़रनगर बाकी है डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन से था, उसे याकूब मेनन से जोड़कर रोहित की छवि ख़राब की गई। जो पिटाई हुई ही नहीं थी, उससे रोहित का नाम जोड़ा गया। एक दलित साथी को ब्राह्मणवादी भेड़ियों ने घेरकर मारा।
आप किनके साथ हैं - घेरने वालों के या घिरने वालों के?

फ़ोटो साभार : Tashi Tobgyal (इंडियन एक्सप्रेस)
सुयश सुप्रभ की फेसबुक टाइमलाइन से साभार