कैसी यशोधरा, ग्वालियर व्यापार मेला को न बचा सकीं?
कैसी यशोधरा, ग्वालियर व्यापार मेला को न बचा सकीं?
राकेश अचल
ग्वालियर। ग्वालियर को जिस सिंधिया घराने ने देश भर में अपनी उदारता और दूरदृष्टि के जरिये पहचान दी, उसी ग्वालियर की एक ऐतिहासिक पहचान 'ग्वालियर व्यापार मेला' को सिंधिया घराने की ही श्रीमती यशोधरा राजे ने धूल में मिला दिया। श्रीमती यशोधरा राजे सिंधियान प्रदेश की उद्योग मंत्री होतीं और न ये मेला धूल में मिलता। श्रीमती सिंधिया के हठ के आगे पार्टी के लौह पुरुष केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह भी बौने साबित हुए और पूरा शहर मेले को बर्बाद होते देख आहें भरते देखता रह गया।
ग्वालियर का कोई अखबार इतने सख्त लहजे में ये कड़वी सच्चाई जनता के सामने नहीं रखेगा। कल वर्ष 2015 का आखरी दिन था और ग्वालियर व्यापार मेला उजाड़ पड़ा हुआ था। हमने इस मेले को नुमाइश से व्यापार मेले में तब्दील होते देखा है और आज जनमानस इस व्यापार मेले को दोबारा नुमाइश में तब्दील होते देख कर आहत अनुभव कर रहा है।
ग्वालियर मेले को व्यापार मेले में तब्दील करने का सपना सिंधिया घराने के माधवराव सिंधिया ने तब देखा था जब वे पहली बार ग्वालियर से सांसद चुने गए। उन्होंने सपना देखा ही नहीं बल्कि उसको आकार भी दिया और वे ही दिल्ली के व्यापार मेले के अध्यक्ष मोहम्मद यूनुस को लेकर ग्वालियर आये थे। एक जमाना था जब इस मेले में केंद्रीय और राज्य स्तरीय प्रदर्शनियां आकर्षण का मुख्य केंद्र होतीं थीं। एक जमाना ये है कि अब इस मेले में स्थानीय स्तर की प्रदर्शनियों का भी टोटा है।
सिंधिया माधवराव के प्रयास से ग्वालियर व्यापार मेला परिसर में स्थायी शिल्पबाजार बना। तीन करोड़ की लागत की इस परियोजना का एक ही भाग पूरा हो सका, बाद के सांसद और मंत्री इसे पूरा नहीं करा पाये। शिल्प बाजार ग्वालियर व्यापार मेला की जान होता था, लेकिन इस बार अभी तक इसका कोई आता-पता नहीं है।
स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के प्रयास से इस मेले को कर छूट का तोहफा भी मिला, लेकिन बाद में इसे कांग्रेस की ही सिंधिया विरोधी सरकार ने वापस ले लिया। भाजपा की सरकार तो इस मेले को अपनी और से कुछ देने को राजी ही नहीं हुई।
मेला परिसर में फेसिलिटेशन सेंटर भी माधव राव सिंधिया के प्रयास से बना, बाल रेल वे ही लेकर आये। ऑटो मोबाइल सेक्टर, इलेक्ट्रानिक सेक्टर हाथ जोड़ कर आग्रह पूर्वक लाये गए, लेकिन अब यहां कुछ भी नहीं है।
आयोजकों की हठधर्मिता और सरकार की बेरुखी ग्वालियर व्यापार मेला को चौपट करने पर जैसे आमादा है। नौकरशाही उद्योग मंत्री के आगे हाथ बांधे खडी है। मंत्री जी मेले का उद्घाटन 16 दिसंबर को करवाना चाहतीं थीं जो नामुमकिन था। आज भी मेले का उद्घाटन करना मजाक उड़ाने जैसा ही है। मेले की पारम्परिक खान-पान की दुकानें नदारद हैं, इलेक्ट्रानिक सेक्टर के न आने के बारे में जब इस संवाददाता ने दिल्ली में उद्योग मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया को इत्तला दी थी, उन्होंने अपने प्रमुख सचिव बीएल कांताराव को इलेक्ट्रानिक सेक्टर के व्यापारियों से बात करने को कहा भी था लेकिन कुछ नहीं हुआ, अंतत:मेला वीरान हो गया।
आज वीरान ग्वालियर व्यापार मेला में केवल बिजली की रौशनी भर है, चहल-पहल नदारद है जो कि नववर्ष की पूर्व संध्या पर होती ही थी, इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? स्थानीय सांसद नरेंद्र सिंह तोमर दूसरों की तो कहें क्या अपने ही विभाग की प्रदर्शनी मेले में नहीं लगवा सके, खुद उद्योग विभाग की प्रदर्शनी का कोई आता पता नहीं है। संघस्थ की प्रदर्शनी भी अभी तक आई नहीं है। इससे साफ़ जाहिर है की सरकार मिलकर इस मेले को समाप्त करना चाहती है।
यदि सरकार बारह साल में लगने वाले सिंहस्थ पर करोड़ों रूपये वार सकती है तो साल -दर साल लगने वाले ग्वालियर व्यापार मेले को दस-पचास करोड़ का अनुदान क्यों नहीं दे सकती?
ग्वालियर व्यापार मेला - अपना प्राधिकरण है लेकिन अध्यक्ष नहीं
ग्वालियर व्यापार मेले के पास अपना प्राधिकरण है लेकिन अध्यक्ष नहीं है। दो साल से नहीं है, क्योंकि चर्चा है कि उद्योग मंत्री की पसंद का अध्यक्ष भाजपा में दिया लेकर खोजने से नहीं मिल रहा और स्थानीय सांसद जिसे प्राधिकरण का अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं उसके लिए राजे साहिबा राजी नहीं हैं। ऐसे में नौकरशाह मेला चला रहे हैं, जिन्हें जनाकांक्षाओं से कोई लेना देना नहीं है। दुर्भाग्य ये है कि शहर ही नहीं बल्कि अंचल की इस सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा। विपक्ष में भी ऐसे लोग बैठे हैं जो सीधे यशोधरा राजे से नहीं टकरा सकते और जनता की तो जैसे अब कोई हैसियत रही नहीं।
मेला भ्रमण करते हुए अहसास हुआ जैसे कहीं आसपास स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की आत्मा बदहवास सी भटक रही है और अपने एक सपने को अकाल मौत मरते देख विलाप कर रही है, कह रही है कि -दुष्टों अपनी विरासत को बचा लो, बचा लो।


