उत्तराखण्ड आपदा का दोषी कौन ? पुनर्वास व पुनर्निर्माण की चुनौतियाँ विषय पर संगोष्ठी
नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार और समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट ने इस बात पर हैरानी जतायी है कि उत्तराखण्ड में सरकार की मुख्य चिन्ता लोगों को राहत पहुँचाना नहीं बल्कि केदारनाथ मंदिर में दुबारा जल्द से जल्द पूजा शुरु करवाना है। वह बीते बुधवार को उत्तराखण्ड आपदा राहत मंच द्वारा गांधी शांति प्रतिष्ठान में “उत्तराखण्ड आपदा का दोषी कौन? पुनर्वास व पुनर्निर्माण की चुनौतियां” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोल रहे थे।

श्री बिष्ट ने ने नव-उदारवाद के दौर में कॉरपोरेट व सरकारों के बीच अपवित्र गठबंधन तथा उसके फलस्वरूप पहाड़ों की लूट व तबाही को इस तरह की आपदाओं के लिये जिम्मेदार माना। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में सरकार व शासक वर्ग द्वारा सुनियोजित तरीकों से धार्मिक यात्राओं व आयोजनों को बढ़ावा देने की नीति की आलोचना करते हुये उन्होंने इसे देश के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे व साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये खतरा बताते हुये धर्म स्थलों पर हो रही तमाम दुर्घटनाओं के लिये जिम्मेदार माना। उन्होंने धार्मिक यात्राओं पर कर लगाकर उस धन से स्थानीय स्तर पर जनता को रोजगार उपलब्ध कराने की बात की।

इस संगोष्ठी में समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट के अतिरिक्त उत्तराखण्ड के जाने-माने पत्रकार चारु तिवारी व ‘नागरिक’ पत्र के संपादक व उत्तराखण्ड आपदा राहत मंच के संयोजक मुनीष कुमार मुख्य वक्ता थे। संगोष्ठी का संचालन क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, जो कि उत्तराखण्ड आपदा राहत मंच का घटक संगठन है, के कमलेश कुमार ने किया।

गोष्ठी की शुरुआत में ‘उत्तराखण्ड आपदा राहत मंच’ के संयोजक व नागरिक पत्र के संपादक मुनीष कुमार ने उत्तराखण्ड के आपदाग्रस्त इलाकों के हालात तथा वहां की जनता के दुःखों-कष्टों की एक विस्तृत रिर्पोटिंग रखी। अपनी रिर्पोटिंग में उन्होंने बताया कि उत्तराखण्ड के गाँवों में तबाही और मौत के भीषण मंजर के बाद आज तक भी राहत सामग्री नहीं पहुँच पा रही है। राहत सामग्री सरकारी दफ्तरों में नष्ट हो रही है लेकिन उसे जरूरतमंदों तक पहुँचाने के लिये सरकार कोई विशेष उपाय नहीं कर रही है। सरकारी कर्मचारी तो उन इलाकों में जाना ही नहीं चाहते हैं। उन्होंने उत्तराखण्ड आपदा के बाद राहत व बचाव कार्यों में हीला-हवाली व देरी करने के लिए सरकार की आलोचना करते हुये कहा कि रस्सी का सम्पर्क मार्ग जो एक दिन मे बनाया जाता है उसे 12 जुलाई (लगभग 25 दिन बाद) बनाया गया। उन्होंने बताया कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया व भू-गर्भ शास्त्रियों ने उत्तराखण्ड में भविष्य में आने वाले संकटों के बारे में 1994 से ही आगाह करना शुरु कर दिया था और इस आपदा से पूर्व भी भारत मौसम विज्ञान विभाग ने सरकार से चार धाम यात्रा रोक देने का आग्रह किया था लेकिन सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने उत्तराखण्ड में व्यापक तबाही के लिये कारपोरेट पूँजी के हित में संचालित बड़े बांध परियोजनाओं, जिसके लिये अंधा-धुंध डायनामाइट का प्रयोग करने, जल विद्युत परियोजनाओं हेतु पहाड़ों के भीतर कई किलोमीटर की सुरंग बनाने, जल संग्रहण के लिए दीवार बनाकर नदियों की धारा अवरुद्ध करने तथा नदियों को इन परियोजनाओं के दौरान पैदा हुए मलवे से पाटने आदि को जिम्मेदार ठहराया। अपने अंतिम विश्लेषण में उन्होंने इस आपदा को मुनाफा केन्द्रित व्यवस्था द्वारा जनित आपदा घोषित करते हुए इसका भंडाफोड़ कर जनता के व्यापक हस्तक्षेप की जरूरत पर बल दिया।

गोष्ठी को संबोधित करते हुए उत्तराखण्ड के जाने-माने पत्रकार चारु तिवारी ने इस आपदा के लिये उत्तराखण्ड राज्य व देश के नीति नियंताओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कारपोरेट लूट व सरकारी संरक्षण में पनप रहे भू माफिया, वन माफिया व खनन माफियाओं के कारनामों तथा पहाड़ की जरूरत के बजाय कारपोरेट जगत के हितों को ध्यान मे रखकर किये जा रहे तथाकथित विकास कार्यों को भी इस तरह की आपदाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने हिमालय के हितों को ध्यान में रखकर हिमालय के लिए नीति बनाने की वकालत की।

उत्तराखण्ड आपदा राहत मंच की ओर से लगाये गये मेडिकल कैम्प में सेवायें देने वाले प्रोग्रेसिव मेडिकोज फोरम के डॉ. आशुतोष ने सरकारी राहत कार्यों की आलोचना करते हुये बताया कि दूर-दराज के पहाड़ी गांवों में जनसंपर्क मार्ग बंद होने की वजह से लोगों को खतरनाक वैकल्पिक मार्गों द्वारा जान की बाजी लगाकर राहत सामग्री पाने के लिये पहुँचना पड़ रहा है तथा बीमारी की अवस्था में इन्हीं दिक्कतों के कारण वे चुपचाप कष्ट झेलने के लिए मजबूर हैं। सरकार द्वारा सम्पर्क मार्गों को आज तक भी दुरुस्त नहीं किया गया है। उन्होंने खुद यह स्वीकार किया कि सम्पर्क मार्गों के क्षतिग्रस्त होने के चलते वे व्यापक स्तर पर जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच सके।

पर्यावरणविद नागराज ने कारपोरेट पूंजीपतियों द्वारा पर्यावरण मानकों को धता बता कर तथा मुनाफे को केन्द्र में रखकर प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन व बड़े पैमाने पर उत्पादक कार्रवाइयों के दौरान पैदा हो रहे प्रदूषण और इन सबके फलस्वरूप हो रही ग्लोबल वार्मिंग को भी प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया तथा इस आपदा के दौरान हुई व्यापक तबाही व हजारों मौतों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

गोष्ठी के अंत में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें इस घटना की न्यायिक जांच करने, इस आपदा के दौरान सरकार की लापरवाही के चलते हजारों की संख्या में हुई मौतों व तबाही के लिए जिम्मेदार राज्य सरकार को बर्खास्त करने, घटना के दोषी लोगों को कड़ी सजा देने, घटना से प्रभावित प्रत्येक व्यक्ति को समुचित मुआवजा देने तथा इस आपदा के चलते हुई तबाही में अपने रोजगार का साधन खो चुके लोगों को एक-एक लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की गई।

संगोष्ठी में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, प्रोग्रेसिव मेडिकोज फोरम, विप्लव सांस्कृतिक मंच, पहाड़ बचाओ अभियान, उत्तराखण्ड पीपुल्स फोरम, ए. आई. एफ. टी. यू (न्यू), जन ज्वार डाॅट काॅम, आर. डी. एफ के प्रतिनिधियों व कार्यकताओं के अलावा दिल्ली के अनेक बुद्धिजीवी, पत्रकार व जे. एन. यू के छात्र उपस्थित थे।

संगोष्ठी का समापन करते हुए संचालक कमलेश कुमार ने दिल्ली के अन्य सामाजिक व जनपक्षधर संगठनों को साथ लेकर उत्तराखण्ड आपदा राहत अभियान को आगे बढ़ाने व इस आपदा के दौरान सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार, लापरवाही व अनियमितताओं को उजागर करने की बात की। गोष्ठी का समापन उत्तराखण्ड के जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ के प्रसिद्ध गीत “जतां एक दिनौ तो आलौ, उ दिन यौ दुनी में” से हुआ।

संगोष्ठी में एक पारित भी प्रस्ताव किया गया जो इस प्रकार है

15-17 जून को उत्तराखण्ड आपदा में हजारों की संख्या में लोग मारे गये तथा बेघर हो गये हैं। सरकार ने 14 जून को मौसम विभाग द्वारा दी गई चेतावनी के बावजूद भी चार धाम यात्रा पर रोक नहीं लगाई तथा राहत व बचाव कार्य भी काफी देरी से शुरु किये गये। सरकार यदि समय पर चार धाम यात्रा पर रोक लगा देती तथा बचाव कार्य समय पर प्रारम्भ कर देती तो हजारों जाने बचायी जा सकती थीं।

आपदा के 5 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी केदार व कालीमठ के दर्जनों गांवों का सम्पर्क टूटा हुआ है। जनता के घरों तक न तो कोई प्रशासनिक अधिकारी पहुंचा है और न ही कोई जनप्रतिनिधि। सरकारी राहत कार्य ऊखीमठ तथा गुप्तकाशी तक ही सिमट कर रह गये हैं। जो लोग केदारनाथ से वापस नहीं आये हैं, उनके परिजनों की मानसिक स्थिति काफी खराब है। गांवों में न तो डाॅक्टर हैं और न ही बिजली। सरकार द्वारा एक माह तक अनाज इत्यादि निःशुल्क तथा जान-माल के नुकसान का मुआवजा देने की घोषणा की गई है। सरकारी घोषणा जनता के वास्तविक नुकसान के मुकाबले में काफी कम है। एक लाख के खच्चर का मुआवजा मात्र 20 हजार ही घोषित किया गया है। डोली उठाने वाले मेहनतकश साथियों के लिए किसी भी प्रकार के मुआवजे की घोषणा नहीं की गई है।

सरकार के कुछ बुद्धिजीवी इस आपदा को दैवीय/प्राकृतिक आपदा बताकर अपनी जवाबदेही व जिम्मेदारी से बच रहे हैं। पूंजीपतियों के मुनाफे की हवस व उत्तराखण्ड की परिस्थितियों का आंकलन किये बगैर यहां पर लगाई गई जल विद्युत परियोजनाओं ने पर्वतों व नदियों को तहस-नहस कर दिया है।

गोष्ठी सरकार द्वारा उत्तराखण्ड आपदा को लेकर की जा रही राहत व बचाव कार्य की नीति की निंदा करती है तथा इसके लिए सरकार व पूर्व सरकारों को जिम्मेदार मानती है तथा मांग करती है कि प्रत्येक गांव तक सड़क मार्ग व विद्युत आपूर्ति तत्काल दुरुस्त की जाये। डम्प पड़ी राहत सामग्री तत्काल जनता में वितरित की जाये। सभी गांवों में जनता को चिकित्सा सुविधायें मुहैया कराई जायें। जब तक रोजगार का इंतजाम नहीं हो जाता सभी बेरोजगारों व विधवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिया जाये। घाटी में लगाई जा रहीं जल विद्युत परियोजनाओं पर रोक लगाई जाये। एक लाख तक के ऋणों को माफ किया जाये। संवेदनशील गांवों व आवासों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित किया जाये। सभी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाये। क्षतिग्रस्त मकानों, झोंपडि़यों, घोड़ों-खच्चरों, खेतों इत्यादि का मुआवजा उनके बाजार मूल्य पर दिया जाये। डोली उठाने वाले व अन्य श्रमिक जो कि आपदा के समय केदारनाथ, गौरीकुण्ड, रामबाड़ा इत्यादि मे थे, सभी को एक-एक लाख रुपये का मुआवजा दिया जाये।