कोई ‘रामजादे’ नहीं 'हरामजादे' ने ही तोड़ी होगी मस्जिद
कोई ‘रामजादे’ नहीं 'हरामजादे' ने ही तोड़ी होगी मस्जिद
6 दिसंबर तो एक चौर्य-दिवस है। इसे शौर्य-दिवस ना बनायें।
आज चार तारीख है। परसों डॉ. आंबेडकर की पुण्यतिथि है। वह तिथि समता- दिवस के रूप में भी ख्यात है। बजरंगियों को बाबरी से बड़ी चिंता बाबा साहेब की थी। गुस्सा मंडल से था। कमंडल का कहर बरपना स्वाभाविक ही था। कमंडल को समता के मूल्यों से क्या लेना देना ? बाबरी तो केवल बहाना था। तोड़ना था भारत की सामासिक- संस्कृति को। 5 दिसंबर और 7 दिसंबर को भी वह हरमजदगी हो सकती थी, पर बाबा साहेब की पुण्यतिथि 6 दिसंबर ही मुक़र्रर हुई और बाबरी मस्जिद ध्वस्त हो गई।
इस बीच सरयू का पानी बहुत बह गया। भाजपा ने पुनः राम को वनवास दे दिया। मंदिर वहीं नहीं, हमी बनायेंगे। पर अब कोई नहीं बना रहा है। राम लला सर्दी में ठिठुर रहे हैं। कल बहुमत का बहाना था। पर अब तो प्रचंड है सब कुछ। फिर अब कौन रोक रहा है मंदिर बनाने से ? इतना मायावी व्यवहार तो रावण के गुर्गे ने भी नहीं किया था, जितना कि भाजपाई गुर्गे ने किया है। घोषणापत्र से ही पता चल गया था कि ई लोग राम को धकिया देंगे। इनके घोषणा-पत्र में राम मंदिर को बहुत ही उपेक्षित जगह मिली ? कैकयी और मंथरा भी मात खा गईं भाजपा के इन भाईजानों से।
भाजपा ने कहा कि वो राम के नाम पर नहीं बल्कि विकास के नाम पर वोट लेंगे। यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या राम विकास विरोधी थे ? क्या रामराज्य ढकोसला है ? क्या रामराज्य एक बेईमान संकल्प है ? अगर ऐसा नहीं तो विकास के साथ-साथ भाजपा ने राम को क्यों नहीं पुकारा ? क्यों राम को छोड़कर विश्वनाथ के पास आ गए। क्यों भगवान का ब्राण्ड बदल गया ? हे राम ! हे राम !! राम राम !
लक्षण पहले से ही दिख रहा था जब भाजपा ने राम का 'तीर' छोड़ नीतीश का तीर थाम लिया था। वह भी 'तीर' निशाने पर नहीं लगा और रास्ता अलग हो गया। सत्ता की चाहत 'तीर ' से 'त्रिशूल' तक आ गयी। भाजपा के लोग रघुनाथ को छोड़ विश्वनाथ को पकड़ लिए। अनार्यों के शिव की तो अपनी ही महिमा है न ? आर्यपुत्र राम की जगह अनार्य 'रामों ' यथा रामदास, रामराज, रामविलास और रामकृपाल को पकड़ लाये ! आज इन रामों की दुर्गति उस हनुमान से भी बदतर है, जिस वनवासी हनुमान ने दशरथ की बहू को खोजने में अपनी जवानी झोंक दी थी। कन्धे पर रघुनाथ को लेकर इधर-उधर फुर्र-फुर्र करते रहे उन्हें आदमी तक का दर्जा नहीं मिल पाया। आज तक हनुमान वानर बने हुए हैं। वही स्थिति इनकी है।
रामदास नाराज हैं और रामराज यानि उदितराज मुंह लटकाए घूम रहे हैं। वैसे नहीं मुस्कुराना तो उदितराज के लिए अभिशाप है। केवट ने राम का पैर धोया था। अब रामभक्त भाजपा निरंजन ज्योति जो उसी केवट और निषाद विरादरी से हैं, उनका पैर और मुंह पोंछने में लगी है। निरंजन अभी मंत्री हैं। दिल्ली को रामजादे और हरामजादे में बांटने में लगी है। हम हे ! रामजादे हैं, हरामजादे नहीं। क़ानून को हाथ में लेना और मस्जिद तोड़ने का काम तो हरामजादे ही कर सकते है, रामजादे नहीं।
असली रामभक्त इस प्रकार की हिंसा और अराजकता में विश्वास नहीं करते। सत्ता की भूख इतनी कि तोगड़िया और सिंघल जैसे हुडदंगी भी शांत कर दिए गए हैं। इनके लिए सत्ता-माता ही तो सीता-माता है। सत्ता मिल गयी और सीता भुला दी गयी। साध्वी निरंजन को साधा जा रहा है। एक दलित साध्वी अपने ही समाज को हरामजादा कह रही है। मोहन बाबा तो ब्राह्मण हैं। संघ प्रमुख हैं। निरंजन की तरह बेवकूफ थोड़े ही हैं जो वोट न देने वाले को हरामजादा कहेंगे। भागवत जी ने इन लोगों को ऐसे ही फूहड़ कार्य करने के लिए रखा है। लोध उमा का भी यही काम है। दलित कामेश्वर चौपाल कहाँ हैं पता नहीं। पहली राम शिला का पूजन इसी दलित से कराया गया था।
6 दिसंबर को ( निरंजन की नज़रों में ) हरामजादों के प्रति मेरा गहरा लगाव है। यह गाली बाबा साहेब और बाबरी दोनों के लिए है। फिर से ढांचा तोड़ने की तैयारी है। यह भाजपा एक प्रतीकवादी पार्टी है।
संघ के लोग जिन्ना के बचपन के गाँव गोधरा का चयन करेंगे ? बुद्ध जयंती पर बम फोड़ेंगे ? गांधी को झाड़ू में उलझायेंगे ? बाबा को सजा देने के लिए उन्हें अरुण शौरी को सौंप देंगे। शौरी खलनायक की पूजा जैसी (worshiping false god ) किताब लिख देंगे। यहाँ सब कुछ होगा। यह हराम राज्य है। बापू होते तो राम की इस दुर्दशा को देख फिर हे ! राम कहते।
आओ बाबरी की उपेक्षा के साथ-साथ राम की उपेक्षा का भी शोक मनाएं। दोनों का दर्द एक है। निरंजन ज्योति मुखौटा भर है। मुख अलग है। इस दशानन को आप जान पहचान लें। 6 दिसंबर तो एक चौर्य-दिवस है। इसे शौर्य-दिवस ना बनायें।"
O- बाबा विजयेंद्र
6 दिसंबर तो एक चौर्य-दिवस है। इसे शौर्य-दिवस ना बनायें।"


