विसंगतियों को तोड़ते नये जीवन सूत्र की तलाश हैं उत्तिमा केसरी की कवितायें
- प्रेम काव्य की प्रेरणा का एक मौलिक आधार है
- अकेला पड़ता जा रहा है व्यक्ति...
- मन की सीमाओं के संकुचन में नहीं विस्तार में आस्था रखने की राह दिखाती है कविता...
बीते रविवार को पटना प्रलेस (प्रगतिशील लेखक संघ) द्वारा कवयित्री उत्तिमा केशरी के सद्यः प्रकाशित कविता संग्रह ‘तभी तो प्रेम ईश्वर के करीब है’ पर विमर्श का आयोजन स्थानीय केदार भवन में किया गया। कार्यक्रम में स्त्री लेखन में बिहार की उपस्थिति की संक्षिप्त चर्चा के पश्चात् कवि राजकिशोर राजन ने कहा कि - संग्रह में कुछ कवितायें जीवन और प्रकृति की राग में उन सम्वेदनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं जहाँ हम चुके नजर आते हैं। कविता - धान की बाली, महुआ के फूल, पारो मामी, अघनिया आदि पठनीय हैं। उत्तिमा जी जीवन अनुभवों से गुजरती हुई समाज और रिश्ते के हकीकत को बयाँ करती हैं। अपनी कविताओं के बिम्ब की बदौलत ही वे जीवन के नये सूत्र की तलाश करती हैं। इस दृष्टि से ‘इमरोज के बिना’, ‘कला के अधिनायक हुसैन’ और ‘जब मैं महक उठी थी’ पर गौर किया जा सकता है।

कवि शहंशाह आलम ने कहा कि - उत्तिमा कोमल अनुभूतियों की कवयित्री हैं। प्रेम में पगी इनकी कवितायें सिर्फ ऐन्द्रिय आकर्षण नहीं बल्कि अन्तःसमर्पण का भाव भी पैदा करती है जहाँ हदतक जी लेने की इच्छा होती है। इन कैनवास पर इनकी कवितायें ‘ईश्वर के करीब’, प्रेम, तुम्हारा होना, जो मैंने कहा था, वह खुशनुमा सुबह, खिड़की जब खुलती है, तुम्हारी तस्वीर, व मेरा प्रेम उल्लेखनीय है।

शायर विभूति कुमार ने कहा कि संग्रह की कवितायें भाषा और शिल्प के स्तर पर सरलीकृत संरचना करते हुये भी गम्भीर तथ्यों से टकराती हैं। संग्रह की कुछ कवितायें कवयित्री की स्वयम् के बचपन से लेकर अपने जीवन के ढेरों रचनात्मक पक्ष को उजागर करती हैं। देखें एक बानगी - कौस्तुभ! काश मैं रच सकती/कोई ऐसा शास्त्र, जिसमें/ सिर्फ मेरे तुम्हारे संबन्धों की/ मीमांसा होती/ और/ पीड़ा में भी महसूसती/अलौकिक मिठास/ मेरे कौस्तुभ!

कथाकार एवम् समीक्षक अरुण अभिषेक ने संग्रह ‘तभी तो प्रेम ईश्वर के करीब है’ के सन्दर्भ में कहा कि उत्तिमा केशरी की कवितायें प्रेम के सारस्वत स्वरूप को ढूँढती व प्रेम के मानकों के साथ ही उपभोक्तावादी संस्कृति में अपने खोते अस्तित्व को भी चिन्हित करती हैं। उन्होंने कवयित्री की पूर्व प्रकाशित संग्रह ‘बौर की गंध’ की भी चर्चा की।

डॉ. रानी श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कहा कि उत्तिमा केशरी की कवितायें प्रेम का मर्म एवम् उनका आत्मविश्वास, आत्मशक्ति बनती हैं वहीं वे प्रेम के साथ-साथ प्रतिरोध व संघर्ष की वकालत भी करती हैं...।

पटना प्रलेस द्वारा आयोजित इस पुस्तक विमर्श का संचालन अरविन्द श्रीवास्तव एवं धन्यवाद ज्ञापन राकेश प्रियदर्शी ने किया।