कौन लोग फैला रहे हैं देश में असहिष्णुता?
कौन लोग फैला रहे हैं देश में असहिष्णुता?
जितेंद्र सिंह
देश में बीजेपी/संघ से इतर कुछ कट्टर हिन्दुत्ववादी संगठन उग गए हैं, कुछ ऐसे लोग/समूह भी उग गए हैं जिनकी पीठ पर किसी बीजेपी/संघ से जुड़े व्यक्ति का हाथ है और ये लोग अपने आप को कानून-पुलिस से ऊपर समझते हुए जहाँ तहां हुडदंग मचाये हुए हैं. देश का वातावरण ख़राब कर रहे हैं, देश को विदेशो में भी अपमानित करवा रहे हैं.
ये संगठन/व्यक्ति समूह/लोग पहले भी थे, पर नई सरकार के आगमन के पश्चात खुद को ज्यादा निर्भीकता से संचालित कर रहे हैं, इसलिए केंद्र सरकार पर प्रश्न उठ रहे हैं.
देश में बढ़ती असहिष्णुता और केंद्र सरकार की चुप्पी
केंद्र सरकार की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है. जो भी इन संगठनों का विरोध करता है, वो सीधे सीधे कम्युनिस्ट, वामपंथी, कांग्रेसी, सरकार विरोधी और देशद्रोही तक करार दे दिया जाता है. जबकि जरुरत है ऐसे लोगों/व्यक्ति समूहों/संगठनों पर कड़ी कारवाई करके सीधा एक सन्देश जनता के बीच देने की है कि देश में अमन चैन हम ख़राब नहीं होने देंगे.
कर्णाटक की "सनातन संस्था' की संलिप्तता कलबुर्गी, दाभोलकर और पानसरे हत्याकांड में सामने आई है, उसी तरह से प्रमोद मुतालिक की श्रीराम सेने भी कुख्यात संस्था है जो कर्णाटक में कई बार अपनी असहिष्णु और हिंसक गतिविधियों की वजह से सुर्ख़ियों में आती रही है, यह वही श्रीराम सेना है जिसके नेता प्रमोद मुतालिक कभी विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल की दक्षिण भारत इकाई के संयोजक थे और उन्हें तब पद से हटा दिया गया था, जब बाबा बुडनगिरी मामले में उन पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगे थे. इसके बाद उन्होंने अपने स्वतंत्र संगठन का निर्माण किया था. कर्नाटक में जब भाजपा शासन में ईसाईयों पर हमले होने लगे तो उसकी जिम्मेदारी उन्होंने खुद ली थी. इतना ही नहीं, वह इस बात को भी सार्वजनिक तौर पर स्वीकार चुके हैं कि वह लोगों को हथियारों का प्रशिक्षण देते हैं (www.rediff.com,10Nov2008http://www.rediff.com/news/2008/nov/10inter-we-are-training-youth-to-fight-terror.htm ).
दादरी अख़लाक़ हत्याकांड में किसी प्रताप सेना का नाम आया सामने और जो लोग गिरफ्तार हुए हैं, उनमे से आठ लोग बीजेपी नेताओं से सम्बद्ध घरों के हैं.
उसी तरह से हरियाणा और कई जगहों पर गौरक्षा समूह उग आये हैं, जो हाईवे पर गश्त लगाते हैं, वाहनों की चेकिंग करते हैं, और मवेशी ले जाने वालों के साथ मारपीट करते हैं.
अभी हाल में ही दिल्ली नगर निगम के मरे हुए पशुओं को ले जाने वाली गाड़ी के एक ड्राईवर शंकर को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला, इसलिए कि उसकी गाडी में मरे हुए पशु थे. मध्य प्रदेश में कोई बैल खरीद कर ले जा रहा था, भीड़ ने उसे भी पीट पीट कर मार डाला, मृतक हिन्दू था.
हिंदुत्व का अनोखा हिंसक उभार
इस तरह का हिंदुत्व का उभार अनोखा है, जो हिंसा कर रहा है, हिंसा को उचित ठहरा रहा है और उसको वैचारिक बल भी दे रहा है, इस सन्दर्भ में साध्वी प्राची और साक्षी महाराज के ताजा बयानों को भी देखना चाहिए.
इसलिए बाकी देश इन हिंसक गिरोहों, समूहों को बीजेपी/संघ/मोदी सरकार से जोड़ कर देखता है, और तभी साहित्यकार, बुद्धिजीवी, कलाकार, वैज्ञानिक वगैरह विरोध स्वरुप अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस ने ‘द सेफ्रन फ्रिंज’ नाम से एक स्टोरी (1 फरवरी 2009 को) की थी, जिसमे इन बीजेपी/संघ से वैचारिक एकता रखने वाले इतर समूहों की गतिविधियों पर एक रिपोर्ट थी.
दिल्ली में केरल हाउस बीफ रेड के मामले में पकडे गए विष्णु गुप्ता और उसकी हिन्दू सेना का भी अपना एक इतिहास है, किस ऑफ़ लव, वैलेंटाइन डे पर युवाओं की पिटाई, बीजेपी विरोधी नेताओं/व्यक्तियों के विरुद्ध हंगामा आदि कर रखा है. 2013 के अगस्त में अडवाणी के घर के बाहर हंगामा, तोड़फोड़ और प्रदर्शन इसने किया था, मोदी के समर्थन ने अडवाणी को हटने के लिए, जाहिर है यह आदमी और इसका संगठन किसी बीजेपी नेता के द्वारा परोक्ष रूप से पोषित है.
ऐसे ही एक आदमी और है जो राजधानी में नियमित रूप से हंगामा करता है, तजिंदर बग्गा, भगत सिंह क्रान्ति सेना चलाता है. इसने भी बीजेपी विरोधी लोगों/नेताओं को अपना निशाना बनाया है, कई बीजेपी नेताओं के लिए चुनाव प्रचार में भाग भी लिया है. तरीका यही है कि अनेक नेता अपने लिए इस तरह के फ्रिंज ग्रुप बना कर रखते हैं और अपने संगठन को सीधे परिदृश्य में लाये बगैर इनसे हिंसात्मक कार्यवाही करवा लेते हैं.
आज आवश्यकता इस बात की है कि इन पर कड़ी कारवाई हो, और देश में अमन चैन कायम रहे. इन फ्रिंज ग्रुप्स या व्यक्तियों का काबू से बाहर हो जाने से संघ/बीजेपी/सरकार को बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा. हिंदुत्व के स्वघोषित स्वयंभू झंडाबरदार ग्रुपों और समूहों पर जो बेलगाम हो कर हिंसा कर रहे हैं कड़ी कारवाई होनी चाहिए. नहीं तो स्थिति नियंत्रण के बाहर भी जा सकती है, और एक बार अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर चली गई तो फिर उसे संभालना बहुत मुश्किल हो जाएगा.
खुद बीजेपी/संघ/सरकार के नेताओं को इन ग्रुप्स/समूहों/व्यक्तियों से खुद को असम्बद्ध करना होगा, अपने हाथ साफ़ दिखाने होंगे. चुप रहने पर सीधा सन्देश यही जाता है कि बीजेपी/संघ/सरकार इन तत्वों के साथ है और उन्हें शह दे रही है.


