कौन है बशीर हाट हिंसा के पीछे : सांप्रदायिक हिंसा से फायदा तो भाजपा को ही होता है
कौन है बशीर हाट हिंसा के पीछे : सांप्रदायिक हिंसा से फायदा तो भाजपा को ही होता है
पश्चिम बंगाल के बशीर हाट में हिंसा के उन्माद ने इस साल 4 जुलाई को दो लोगों की जान ले ली। पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में लगातार इस आशय की बातें कही जा रही हैं कि पश्चिम बंगाल, इस्लामवादी बन रहा है और वहां हिन्दुओं की हालत लगभग वैसी ही हो गई है, जैसी की कश्मीर में पंडितों की थी। मीडिया का एक तबका यह प्रचारित कर रहा है कि पश्चिम बंगाल हिन्दुओं के लिए असुरक्षित बन गया है और वहां मुसलमानों का राज है। कई गुस्सेभरी टिप्पणियों में यह कहा जा रहा है कि ममता बेनर्जी, मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही हैं और उनकी सरकार की मदद से इस्लामिक कट्टरवाद फल-फूल रहा है।
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इस माह की हिंसा की शुरूआत फेसबुक पर एक पोस्ट से हुई। यह पोस्ट मुसलमानों का अपमान करने वाली थी। कुछ लोगों ने 17 साल के उस लड़के का घर घेर लिया जिसने फेसबुक पर यह पोस्ट लगाई थी। इसके पहले, जब तनाव बढ़ रहा था, तब सरकारी मशीनरी निष्क्रिय बनी रही। पुलिस तब हरकत में आई जब खून की प्यासी भीड़ ने उस लड़के के घर को घेर लिया। इसके बाद भी पुलिस उसे सुरक्षित बचाने में सफल रही यद्यपि इसके लिए उसे बलप्रयोग करना पड़ा।
इसके बाद भाजपा नेता अति-सक्रिय हो गए और उनके एक प्रतिनिधिमंडल ने इलाके का दौरा किया। उन्होंने एक अस्पताल में घुसने की कोशिश की, जहां कार्तिक चंद्र घोष नामक एक व्यक्ति की लाश रखी थी। उसे मुसलमान हमलावरों ने मार डाला था। भाजपा नेताओं ने इस घटना से राजनीतिक लाभ अर्जित करने के लिए यह घोषणा कर दी कि घोष उनकी पार्टी की एक इकाई का अध्यक्ष था। घोष के लड़के ने इससे इंकार किया।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केएन त्रिपाठी ने इस हिंसा के लिए ममता बेनर्जी को फटकार लगाई। ममता को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने कहा कि राज्यपाल, भाजपा के ब्लॉक स्तर के नेता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। केएन त्रिपाठी को भाजपा नेता राहुल सिन्हा ने ‘‘मोदी वाहिनी का समर्पित सैनिक’’ बताया था।
इस सांप्रदायिक हिंसा ने राजनीतिक रंग ले लिया है। भाजपा ने ममता बेनर्जी पर मुसलमानों का तुष्टिकरण करने का आरोप लगाया है जबकि शासक दल तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि भाजपा, चुनावों में लाभ के लिए सांप्रदायिकता को हवा दे रही है। यह आश्चर्यजनक है कि इस हिंसा, जिसमें दो लोग मारे गए, के आधार पर भाजपा राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने की मांग कर रही है।
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बंगाल में स्थितियां काफी जटिल हैं। मुस्लिम नेतृत्व का एक हिस्सा बार-बार ‘‘धार्मिक भावनाएं आहत होने’’ के नाम पर हिंसा कर रहा है। इसके पहले, मुसलमानों ने कालियाचक नामक स्थान पर हिंसा की थी। इसके लिए कमलेश तिवारी नामक एक व्यक्ति द्वारा इंटरनेट पर पैगम्बर मोहम्मद के बारे में कोई अपमानजनक टिप्पणी किए जाने को कारण बताया गया था। मुस्लिम नेतृत्व के एक हिस्से को सरकार द्वारा छूट दी जा रही है जिसका लाभ उठाकर हिन्दुत्व की शक्तियां समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत करने की कोशिश कर रही हैं। पश्चिम बंगाल में उन्हें गाय और राममंदिर जैसे मुद्दों की ज़रूरत नहीं है। मुस्लिम नेतृत्व का एक पथभ्रष्ट हिस्सा उन्हें स्वयं ही मुद्दा उपलब्ध करवा रहा है।
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कालियाचक और अब बशीर हाट की हिंसा को इस रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है कि राज्य में हिन्दू असुरक्षित हैं। कालियाचक में किसी की जान नहीं गई थी यद्यपि संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था।
हिंसा के इन दोनों मामलों में सरकार की भूमिका संदिग्ध और अंसतोषजनक रही है। सरकार के पास स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए समय और मौका था परंतु उसने ऐसा नहीं किया। कानून और व्यवस्था की मशीनरी को हिंसा होने के पहले ही सक्रिय हो जाना चाहिए। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यदि सरकार चाहे तो वह सुनिश्चित कर सकती है कि किसी प्रकार की साम्प्रदायिक हिंसा न हो और ऐसा करने की कोशिश करने वालों को सख्ती से कुचल दिया जाए। ऐसे मामलों में सरकार को इस बात पर विचार नहीं करना चाहिए कि उपद्रवी तत्व किस धर्म या जाति के हैं। किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए।
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यह कहा जा रहा है कि ममता, मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही हैं। इस आरोप में कितना दम है यह कहना मुश्किल है परंतु इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस तथाकथित तुष्टिकरण से मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। वहां के मुसलमानों की आर्थिक दशा, देश में शायद सबसे खराब है। पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों के लिए बजट की राशि सभी राज्यों में सबसे कम है।
परंतु भाजपा राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में जुटी हुई है। जिस राज्य में कभी रामनवमी नहीं मनाई जाती थी वहां इस साल रामनवमी पर जुलूस निकाले गए जिनमें लोग हाथों में नंगी तलवारें लिए हुए थे। राज्य में गणेशोत्सव को भी बढ़ावा दिया जा रहा है जबकि वहां इसके पहले तक मां दुर्गा ही मुख्य देवी थीं।
इस हिंसा से किसे फायदा होता है? भारत में सांप्रदायिक हिंसा का अध्ययन करने वाले विद्वानों जैसे पॉल ब्रास का कहना है कि भारत में एक संस्थागत दंगा तंत्र है।
येल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह सामने आया है कि सांप्रदायिक हिंसा से अंततः भाजपा को फायदा होता है। जो लोग कट्टरपंथी मुसलमानों को प्रसन्न करने में लगे हुए हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि अगर वे ऐसा करेंगे तो इससे केवल और केवल भाजपा फायदा उठाएगी। सरकारों का यह संवैधानिक दायित्व है कि वे समाज में शांति बनाए रखें और हिंसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करें चाहे वे लोग किसी भी धर्म के क्यों न हों।
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बशीर हाट के घटनाक्रम के चार चरण थे। पहले चरण में फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। इसके बाद, मुसलमानों के एक तबके ने हिंसा की। राज्य सरकार, हिंसा रोकने में असफल रही। इसके बाद भाजपा ने मोर्चा संभाल लिया और वातावरण को विषाक्त करने के लिए ऐसे वीडियो बड़ी संख्या में प्रसारित किए जिनमें यह दिखाया गया था कि मुसलमान, हिन्दुओं को मार रहे हैं। बाद में यह पता चला कि ये वीडियो बशीर हाट के थे ही नहीं। वे गुजरात के 2002 के दंगों के वीडियो थे।
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इसके अलावा, भोजपुरी फिल्मों के क्लिप्स भी प्रसारित किए गए जिनमें यह दिखाया गया कि हिन्दू महिलाओं के साथ जोर-जबरदस्ती की जा रही है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने यह दावा किया कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं। हम केवल यह आशा कर सकते हैं कि बंगाल जैसा राज्य, जो अब तक सांप्रदायिक हिंसा के वायरस से लगभग मुक्त रहा है, सांप्रदायिकता के दलदल में नहीं फंसेगा। इसमें सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है।
(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
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