क्या डॉ. अंबेडकर कम्युनिस्ट पार्टी में जाने को तैयार थे?
आपकी नज़र | हस्तक्षेप Was Dr. Ambedkar ready to join the Communist Party? डॉ. भीमराव अंबेडकर अपने अंतिम समय में कम्युनिस्ट पार्टी में जाने और कम्युनिस्ट दर्शन के समर्थक हो गये थे...
डॉ. भीमराव अंबेडकर अपने अंतिम समय में कम्युनिस्ट पार्टी में जाने और कम्युनिस्ट दर्शन के समर्थक हो गये थे...
देश और दुनिया के बहुत सारे लोग डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के बारे में बहुत सारी बातें (Many things about Dr. Bhimrao Ambedkar) करते हैं, उनके समता और समानता पर आधारित समाज बनाने की बात करते हैं, उनकी जनकल्याण की बातें करते हैं, मगर वे उन अहम् तथ्यों और बातों को जनता से छिपाते हैं जिनके बाबा साहब अपने जीवन के अंतिम समय में समर्थक हो गए थे। वे अपने जीवन के अंतिम समय में कम्युनिस्ट पार्टी में जाने और कम्युनिस्ट दर्शन के समर्थक हो गए थे और और उनका मानना था कि "एक ठोस योजना, कार्यक्रम और संगठन के तहत "कम्युनिस्ट सिस्टम" ही इस जन विरोधी व्यवस्था का विकल्प हो सकता है।"
भारत के संविधान के शिल्पकार डॉ. भीमराव अंबेडकर की अंतिम इच्छा (Last wish of Dr. Bhimrao Ambedkar) थी कि "एससी एसटी के कल्याण के लिए मुझे कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो जाना चाहिए।" यह बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य चार पांच साल पहले लोक लहर में प्रकाशित हुआ था।
कुछ समय पहले हमने बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू को सुना, जिसमें वे बहुत बेबाकी से कहते हैं कि "गरीबों के कल्याण के लिए ठोस योजना हो, कार्यक्रम हो, संगठन हो और इस जनविरोधी व्यवस्था का विकल्प कम्युनिस्ट सिस्टम ही हो सकता है।"
अंबेडकर को मानने वाले हमारे अम्बेडकरवादी भाई या तो इन अहम तथ्यों से परिचित नहीं हैं या वे इस तथ्यों को हमसे छुपाते हैं, सारी दुनिया से छुपाते हैं, इन अहम तथ्यों को दुनिया के सामने नहीं लाते और यही वे महत्वपूर्ण तथ्य हैं जो सही भी है और जिसके बल पर ही एसी-एसटी, ओबीसी, किसानों और मजदूरों और तमाम मेहनतकशों का कल्याण किया जा सकता है, उन्हें रोजी-रोटी शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा मकान मुहैया कराए जा सकते हैं। यह एक जरूरी काम है कि हम इस अहम् तथ्य को अपनी जनता के, देश के तमाम किसानों मजदूरों के सामने लाएं और पूरे प्रयास के साथ जनता के सामने लाए, जनता को बताएं, तभी जाकर जनता, बाबा अंबेडकर की असली हकीकत को और उनके आखिरी सपने को जान सकेगी।
बाबा साहेब अंबेडकर ने बहुत सारे जुल्म सहे, अत्याचार सहे, बहिष्कार सहे, और एससी एसटी के साथ हो रहे जुल्मों सितम को अपनी आंखों से देखा और सहा। लोगों ने उनके बाल नहीं काटे, नल से उनको पानी नहीं पीने दिया, कुएं से पानी नहीं पीने दिया, गाड़ी वालों ने गाड़ी पर नहीं बिठाया, स्कूल में मास्टर ने दुर्व्यवहार किया। इन सब बातों से और दुर्व्यवहार अंबेडकर हतोत्साहित नहीं हुए। उन्होंने अपने पढ़ने का मिशन जारी रखा और बहुत ऊंची ऊंची डिग्रियां प्राप्त कीं। उनकी डिग्रियों को देखकर लगता है कि उस समय उनसे ज्यादा पढ़ा लिखा आदमी संविधान सभा में नहीं था।
अंबेडकर भारत के संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष थे। संविधान में उन्होंने मौलिक अधिकार (fundamental rights) और नीति निर्देशक तत्व के अलग-अलग चैप्टर रखें। पता नहीं क्यों उन्होंने नीति निर्देशक तत्वों को दूसरे स्थान पर रखा या उन्हें इन जरूरी नीति निर्देशक तत्वों को दूसरे स्थान पर रखने के लिए मजबूर किया गया और क्यों उन्होंने रोजगार के अधिकार को बुनियादी अधिकार नहीं बनाया? काश, इन नीति निर्देशक तत्वों को फंडामेंटल राइट्स के साथ बुनियादी अधिकार बनाया जाता!
आज हम देख रहे हैं कि भारत में अपराध बढ़ रहे हैं, अन्याय बढ़ रहा है, जुल्मों सितम बढ़ रहा है, दलितों की आवाज नहीं सुनी जा रही है, sc-st को उनके जंगलों से बेदखल किया जा रहा है, सरकार उनकी सुन नहीं रही है और इन खनिज संपदा से परिपूर्ण वनों और जंगलों को लुटेरे पूंजीपतियों को दिया जा रहा है ताकि इन लुटेरे पूंजीपतियों की लूट जारी है।
हमारी सरकार को किसानों मजदूरों और sc-st के साथ हो रहे अन्याय, जुल्म ओ सितम, भेदभाव, शोषण से कुछ लेना देना नहीं है, वह सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों के लिए काम कर रही है, उनकी धन संपदा बढ़ाने का काम कर रही है, उनके लिए सारे कानून बना रही है, उनके लिए किसानों को गुलाम बनाने जैसी स्थिति में ला दिया गया है और पूंजीपतियों के मुनाफे बेरोकटोक बढ़ाने के लिए, हमारे देश के सारे श्रम कानूनों को रद्द करके चार श्रम संहिताएं बनाई गई है जो पूर्ण रूप से पूंजीपतियों के मुनाफे बढ़ाने पर जोर देती हैं और जिन्होंने भारत के सारे मजदूरों को आधुनिक गुलाम बना कर रख दिया है, उनसे सारी श्रम सुविधाएं छीन ली हैं।
डॉ अंबेडकर कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों शामिल होना चाहते थे?
यहीं पर हमारा कर्तव्य है कि हम अंबेडकर के बताए रास्ते पर चलें और अंबेडकर के जो आखिरी सपना था कि "अब मैं कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो जाऊं", और "कम्युनिस्ट सिस्टम इसका विकल्प हो सकता है" हमें इस सपने को पूर्ण करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए और हमें यह जानना चाहिए कि आखिर वे कम्युनिस्ट क्यों बनना चाहते थे, आखिर वे कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों शामिल होना चाहते थे और वे क्यों कम्युनिस्ट सिस्टम के विकल्प होने की बात करने लगे थे?
आखिर कम्युनिस्ट क्या चाहते हैं?
यहां पर हम सबको अपनी बताना चाहते हैं कि कम्युनिस्ट इस देश के प्रत्येक आदमी को रोजी-रोटी चाहते हैं, शिक्षा चाहते हैं, रोजगार चाहते हैं, दवाई का इंतजाम करना चाहते हैं, उसकी सुरक्षा का इंतजाम करना चाहते हैं, उसके रोजगार को अनिवार्य बनाना चाहते हैं, उन्हें वैज्ञानिक, अनिवार्य और आधुनिकतम शिक्षा दिलाना चाहते हैं, उन्हें मुफ़्त और आधुनिकतम इलाज मुहैया कराना चाहते हैं, यहां पर सब नौजवानों को रोजगार मुहैया कराना चाहते हैं। वे यहां की असमानता को दूर करना चाहते हैं, इस असमानता को कम करना चाहते हैं, सबको आर्थिक आजादी देने की बात करते हैं, सब की आर्थिक समानता की बात करते हैं और इस देश में लगातार बढ़ती जा रही आर्थिक असमानता की सबसे ज्यादा मुखालफत करते हैं।
संक्षेप में कम्युनिस्ट यही चाहते हैं और यही कारण था कि कम्युनिस्टों का जो प्रोग्राम था, वह सारी जनता के कल्याण का प्रोग्राम था। वह किसान को लाभकारी मूल्य देना चाहता था, खेतिहर मजदूरों को, भूमिहीन मजदूरों को, सीलिंग के बाद बची हुई सारी जमीन को भूमिहीनों और किसानों को बांटना चाहता था, जो जमीन सरकार के अधीन थी और जो सीलिंग के बाहर जमीन थी, उसको भी बांटना चाहते थे, आज भी बांटना चाहते हैं।
और कम्युनिस्टों के इस महान काम को भी हमें जनता के सामने ले जाना चाहिए कि जब-जब कम्युनिस्टों को सरकार बनाकर काम करने का मौका मिला, तो उन्होंने जन कल्याणकारी मुद्दों को जमीन पर उतारा। किसानों, मजदूरों, sc.st.obc के कल्याण के लिए कानून बनाएं, नीतियां बनाई और पश्चिमी बंगाल, केरल और त्रिपुरा में सीलिंग के बाद बची हुई जमीन को किसानों, मजदूरों और खेतिहर मजदूरों में बांट दिया। उन्होंने जनता को रोटी रोजी शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार देने की हरचंद कोशिश की और अंबेडकर के सपनों को जमीन पर उतारा। आज केरल इसी कम्युनिस्ट सरकार के जन समर्थक कार्यक्रम को लागू करने की वजह से भारत का सर्वश्रेष्ठ राज बना हुआ है।
हमें इस सब को जानना चाहिए। उस समय तक अंबेडकर रूस के कम्युनिस्ट शासन के बारे में सारी जानकारी हासिल कर चुके थे और वह रूस में समाजवादी व्यवस्था की महान उपलब्धियां देख चुके थे। यही सब कारण थे, नीतियां थीं, यही सब कम्युनिस्टों का जनता के कल्याण का प्रोग्राम था, जिसकी वजह से बाबा साहब भीमराव अंबेडकर कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होना चाहते थे।
हमारा यह शत-प्रतिशत मानना है कि जब तक हम कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यक्रम और लक्ष्यों को जनता के बीच नहीं ले जाएंगे, उसके अनुसार समाज व्यवस्था कायम नहीं करेंगे, तब तक इस देश के मेहनतकशों का सम्पूर्ण विकास और कल्याण नहीं हो सकता, तब तक इस देश के गरीबों, किसानों, खेतिहर मजदूरों, ओबीसी, एससी एसटी और नौजवानों का कल्याण नहीं हो सकता।
आज हम सबको, जो अंबेडकर से मोहब्बत करते हैं, उनके विचारों को प्यार करते हैं, उनकी ड्यूटी है कि उन्हें कम्युनिज्म और कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में जानना चाहिए और अंबेडकर के आखिरी सपने को पूर्ण करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और जनता को उनके सपने और कम्युनिस्ट व्यवस्था और कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों व विचारधारा से अवगत कराना चाहिए और ऐसा ही समाज स्थापित करने के अभियान में शामिल होना चाहिए। यही अंबेडकर के प्रति सबसे सच्ची और अनुकूल श्रद्धांजलि होगी।
मुनेश त्यागी
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व अधिवक्ता हैं।


