राम पुनियानी
सारे विश्व में, संबंधित समुदाय के ‘‘सम्मान’’ को, उस समुदाय की महिलाओं के शरीर से जोड़कर, संकीर्ण व सांप्रदायिक ताकतें, हिंसा और तनाव फैलाती आईं हैं। यह सांप्रदायिक राजनीति में निहित पितृसत्तात्मक मूल्यों का प्रकटीकरण है। हमें यह याद है कि किस प्रकार अलग-अलग समुदायों के दो युवकों के वाहनों की टक्कर को ‘‘हमारी लड़की’’ की इज्जत को ‘‘दूसरों’’ द्वारा लूटने का स्वरूप दे दिया गया था। पंचायतें हुईं, जिनमें खुलेआम घातक हथियार लहराये गए और मुजफ्फरनगर को हिंसा के दावानल में ढकेल दिया गया। और यह, ‘‘हमारी महिलाएं बनाम उनकी महिलाएं’’ मानसिकता और उसके दुरूपयोग का अंत नहीं था। आज भी उत्तरप्रदेश में कई ऐसी गतिविधियां जारी हैं, जिनका उद्देश्य समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत करना है।

एक मदरसा शिक्षिका ने आरोप लगाया कि उसे कुछ मुस्लिम युवकों ने अगवा किया और उसके साथ बलात्कार किया। वह अपने बयान बार-बार बदलती रही और अंत में उसने स्वीकार कर लिया कि वह अपने प्रेमी के साथ भागी थी। इस रक्षाबंधन (अगस्त 2014) पर पश्चिमी उत्तरप्रदेश में आरएसएस कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में लोगों की कलाईयों पर राखी बांधी और उनसे कहा कि उन्हें मुसलमान लड़कों द्वारा ‘लव जिहाद’ के लिए हिन्दू लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने की कोशिशों के प्रति सावधान रहना चाहिए। मुसलमान युवकों द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और उन्हें फंसाने के प्रयास, इन दिनों पश्चिमी उत्तरप्रदेश में, आरएसएस के प्रचार का मुख्य मसाला बन गए हैं। जहां प्रधानमंत्री, लालकिले की प्राचीर से, सांप्रदायिकता व जातिवाद पर दस साल के लिए रोक लगाने की बात कर रहे हैं वहीं उनकी ही पार्टी के चंद्रमोहन, जो कि उत्तरप्रदेश में भाजपा प्रवक्ता हैं, फरमाते हैं कि ‘‘मदरसा शिक्षिका के साथ जो कुछ हुआ वह ’वैश्विक लव जिहाद’ का हिस्सा है, जिसके निशाने पर भोलीभाली हिंदू नवयुवतियां हैं।’’ भाजपा के पितृसंगठन आरएसएस की शाखाओं के बाद, उसके स्वयंसेवक घर-घर जाकर लोगों को ‘लव जिहाद के खतरे’ के प्रति आगाह करते हैं और ‘हमारी लड़कियों’ की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। मुजफ्फरनगर हिंसा पर ‘अनहद’ की रपट ‘‘ईविल स्टाक्स द लैण्ड’’ इस झूठ का पर्दाफाश करती है कि ‘‘मुसलमान युवक, हिंदू लड़कियों से इसलिए बात करते हैं ताकि वे उन्हें बहला-फुसला कर उनके साथ शादी कर लें और बाद में उन्हें मुसलमान बना लें।’’ यही वह मुद्दा है जिसका इस्तेमाल दंगे भड़काने के लिए किया गया था। पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सहारानपुर में इन दिनों एक बाबा रजकदास बड़ी चर्चा में हैं। वे उन हिंदू लड़कियों का ‘इलाज’ करते हैं जो मुस्लिम लड़कों से प्रेम करती हैं!

हिंदुओं को हिंसा करने के लिए भड़काने हेतु जिस ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसका अजीबोगरीब इतिहास है। इस शब्द के दो हिस्से हैं-लव और जिहाद। और जिसने भी इस शब्द को गढ़ा, उसे शायद यह नहीं मालूम था कि इन दोनों शब्दों के नितान्त विपरीत अर्थ हैं। 9/11/2001 के बाद से जिहाद शब्द का इस्तेमाल, मीडिया द्वारा नकारात्मक अर्थ में किया जाता रहा है और यह नकारात्मक अर्थ, धीरे-धीरे सामूहिक सामाजिक सोच का हिस्सा बन गया है। कुरान के अनुसार जिहाद का अर्थ है कोशिश या प्रयास करना। परंतु मीडिया में उसे गैर-मुसलमानों को मारने के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। लव जिहाद शब्द किसी शैतानी दिमाग की उपज है और इसका इस्तेमाल मुसलमानों के दानवीकरण के लिए किया जा रहा है। ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि कुछ मुस्लिम संगठन, मुसलमान युवकों को इसलिए धन उपलब्ध करवाते हैं ताकि वे गैर-मुस्लिम लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसायें और उनसे शादी कर मुसलमानों की आबादी में बढ़ोत्तरी करें। यह अफवाह भी फैलाई जा रही है कि मुसलमान युवकों को धन इसलिये दिया जाता है ताकि वे नई, चमकीली मोटरसाइकिलें और महंगें मोबाइल सेट खरीद सकें।

अगर गूगल पर आप यह टाईप करें कि ‘‘वाय हिन्दू गर्ल्स’’ (क्यों हिंदू लड़कियां) तो सर्च इंजन अपने आप इस वाक्य को कुछ यूं पूरा कर देता है ‘‘आर अट्रेक्टिड टू मुस्लिम बायस’’ (मुसलमान युवकों के प्रति आकर्षित होती हैं)! महाराष्ट्र में ‘‘हिन्दू रक्षा समिति’’ नामक एक संस्था ऐसे हिन्दू-मुस्लिम विवाहित जोड़ों में तलाक करवाने की मुहिम चला रही है जिनमें कि पत्नी हिन्दू है। संस्था का दावा है कि वह हिन्दू धर्म को बचाने के लिए यह कर रही है। ऐसा नहीं है कि इस तरह के दंपत्तियों की संख्या बहुत बड़ी है परंतु केवल संदेह के आधार पर ही, हिंदू धर्म के स्वनियुक्त रक्षक, संबंधित युवक पर हिंसक हमले करने से नहीं चूकते। मराठी में लव जिहाद पर प्रकाशित एक पुस्तिका में एक मुस्लिम युवक को मोटरसाईकिल चलाते हुए दिखाया गया है और उसके पीछे एक हिन्दू लड़की बैठी है। यह शब्द इतना प्रचलन में आ गया है कि संघ से जुड़े केरल के एक ईसाई संगठन ने, संघ परिवार की एक सदस्य विहिप से लव जिहाद रोकने के लिए कहा है। सच यह है कि लव जिहाद जैसी कोई चीज ही अस्तित्व में नहीं है।

भारत में इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल तटवर्ती कर्नाटक के मैंगलोर शहर व केरल के कुछ हिस्सों में शुरू हुआ। आरएसएस द्वारा प्रशिक्षित स्वयंसेवक प्रमोद मुताल्लिक द्वारा स्थापित श्री राम सेने ने हिंदू पत्नी-मुस्लिम पति दंपतियों पर हमले करने शुरू किए। इस तरह की शादियों को संदेह की निगाह से देखा जाने लगा और अगर लड़की के माता-पिता इस तरह के विवाह के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करते, तो श्रीराम सेने उन्हें मामले को अदालत में ले जाने में मदद भी करती थी। बहाना यह बनाया जाता था कि हिन्दू लड़कियों को मुस्लिम लड़कों के साथ शादी करने पर ‘मजबूर’ किया जा रहा है। सिजालराज व अजहर के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक जज ने अपने फैसले में यहां तक कह डाला कि तथ्य (लव जिहाद) ‘‘राष्ट्रव्यापी महत्व के हैं...इनका संबंध देश की सुरक्षा व महिलाओं की गैर-कानूनी तस्करी से है’’! इसलिए अदालत ने कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक व महानिरीक्षक को यह आदेश दिया कि वे ‘‘लव जिहाद’’ की विस्तृत जांच करें। जांच पूरी होने तक लड़की को उसके माता-पिता के पास ही रहने का आदेश दिया गया। मामला एक सामान्य हिन्दू-मुस्लिम विवाह का था। लड़की अपनी बात पर दृढ़ रही और सामाजिक दबाव के आगे नहीं झुकी। पुलिस जांच में यह सामने आया कि लव जिहाद जैसी कोई चीज अस्तित्व में नहीं है।

इसके पहले, इसी तरह के मामले में दो अभिभावकों की अपील पर केरल उच्च न्यायालय ने भी ऐसा ही निर्णय दिया था। दो हिन्दू लड़कियां अपने घर से भाग गईं। उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया और उनका इरादा मुस्लिम लड़कों से शादी करने का था। केरल उच्च न्यायालय ने भी पुलिस को इस तरह की घटनाओं की जांच करने का आदेश दिया। पुलिस जांच में फिर यह सामने आया कि लव जिहाद जैसी कोई अवधारणा नहीं है। यह आरोप बेबुनियाद है कि इस तरह के विवाहों को किसी संगठन या समूह द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है। परंतु दुर्भाग्यवश ऐसी आम धारणा बन गई है कि देश में लव जिहाद चल रहा है।

श्रीराम सेने ने यह दावा किया कि लगभग 4000 हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बना लिया गया है। इस झूठ को हर संभव तरीके से फैलाया गया। इस हास्यास्पद, काल्पनिक दावे का इतना प्रचार हुआ कि हिन्दू लड़कियों के अभिभावक डर गये। कई मामलों में, जिनमें कि लड़कियां सचमुच मुसलमान लड़कों से प्रेम करती थीं और अपनी इच्छा से मुसलमान बनना चाहती थीं, उन्हें भी अपने अभिभावकों के साथ रहने पर मजबूर होना पड़ा। अभिभावकों द्वारा लड़कियों का इस हद तक भावनात्मक ब्लेकमेल किया गया कि कुछ लड़कियों ने हथियार डाल दिये और यह कह दिया कि उन्हें फंसाया गया था, जिहादी सीडी दिखाई गई थी इत्यादि।

इसी तरह का प्रचार, गुजरात कत्लेआम के बाद भी किया गया था। यह कहा जाता था कि ‘‘मुस्लिम लड़के आदिवासी लड़कियों को फंसा रहे हैं।’’ विहिप-बजरंग दल के एक कार्यकर्ता बाबू बजरंगी ने गुण्डों की एक सेना तैयार की थी जो ऐसे प्रेमी युगलों पर हमले करती थी और उन्हें डराती धमकाती थी, जिनमें लड़के और लड़की अलग-अलग धर्मों के होते थे। बाबू बजरंगी ने गुजरात कत्लेआम में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। मजे की बात यह है कि इस हिंसा और गैरकानूनी कार्यवाहियों को धर्मरक्षा का नाम दिया जाता था। तथ्य यह है कि किसी भी बहुवादी समाज में अंतर्जातीय और अंतर्धामिक विवाह होना सामान्य और स्वाभाविक है। सांप्रदायिक राजनीति के परवान चढ़ने के साथ ही, अंतर्धामिक विवाह कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गये हैं। हम सब को रिजवान-उर-रहमान और प्रियंका तोडी का त्रासद विवाह याद है। प्रियंका, कलकत्ता के एक अत्यंत धनी व प्रभावशाली व्यवसायी की पुत्री हैं। अपने अभिभावकों व रिश्तेदारों के दबाव में आकर वे पलट गईं। उसके बाद क्या और कैसे हुआ यह किसी को ज्ञात नहीं है परंतु जो ज्ञात है वह यह है कि रिजवान-उर-रहमान को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा। इस तरह के सभी मामलों में पुलिस और राज्यतंत्र का व्यवहार, कानूनी प्रावधानों व कानून की आत्मा के विरूद्ध ही रहा है। जिन्हें कानून की रक्षा करनी चाहिए वे गैर-कानूनी कार्यवाहियां करने वालों का साथ देते नजर आते हैं।

अंतर्जातीय व अंतर्धामिक विवाहों के खिलाफ इस तरह के अभियान न केवल राष्ट्रीय एकता को कमजोर करते हैं वरन् वे पितृसत्तात्मकता के सिद्धांतों के अनुरूप, लड़कियों के जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश भी हैं। महिलाओं के शरीर को संबंधित समुदाय के सम्मान से जोड़ दिया जाता है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ भावनाएं भड़काई जाती हैं और समाज को विभाजित किया जाता है। इससे संप्रदायवादी राजनीति कई तरह से लाभांवित होती है। चूंकि पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं को पुरूषों की संपत्ति समझा जाता है और उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे पुरूषों द्वारा निर्धारित सीमाओं में रहें, अतः इस तरह के मुद्दों पर भावनाएं भड़काना आसान होता है। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना, सांप्रदायिक राजनीति के एजेण्डे का हिस्सा है। जाहिर है कि काल्पनिक ‘लव जिहाद’ के खिलाफ अभियान से एक तरफ मुसलमान घृणा के पात्र बनते हैं तो दूसरी ओर पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मजबूती मिलती है।

कुछ समय पूर्व तक यह सब कुछ हिन्दू लड़कियों के जीवन को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था-यह सुनिश्चित करने के लिए कि लड़कियां अपनी पसंद का जीवनसाथी न चुन सकें। परंतु अब इससे एक कदम और आगे बढ़कर, लव जिहाद का इस्तेमाल सांप्रदायिक दंगे करवाने के लिए किया जा रहा है जैसा कि हमने मुजफ्फरनगर में देखा। लगभग हमेशा ही सांप्रदायिक दंगे, झूठी अफवाहें फैलाकर भड़काए जाते हैं। यही लव जिहाद के मामले में भी हो रहा है। वाट्सएप और फेसबुक पर यह आरोप लगाया जाना आम है कि लव जिहाद, मुसलमानों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रचे गए षडयंत्र का हिस्सा है। यहां तक कि जोधा और अकबर के विवाह को भी इस तरह के षडयंत्र का हिस्सा बताया जा रहा है। हम सब जानते हैं कि राजा और बादशाह, राजनैतिक गठबंधन बनाने के लिए इस तरह के वैवाहिक संबंध बनाया करते थे परंतु जोधा अकबर की कथा का भी सांप्रदायिक ताकतें अपने निहित स्वार्थ पूरा करने के लिए निहायत कुटिलतापूर्वक इस्तेमाल कर रही हैं।

जहां तक महिलाओं के अधिकारों को कुचलने का प्रश्न है, इस मामले में भारत में संघ परिवार, अफगानिस्तान में तालिबान, पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथी तत्व और पूरी दुनिया के ईसाई कट्टरपंथी एकमत हैं। वे सभी महिलाओं को पुरूषों का गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं। चाहे श्रीराम सेने हो या बाबू बजरंगी या मुजफ्फरनगर में हिंसा भड़काने वाले तत्व- सभी यह मानकर चलते हैं कि महिलाएं, पुरूषों की संपत्ति हैं और उनके जीवन पर नियंत्रण रखना पुरूषों का जन्मसिद्ध अधिकार है। इस तरह के मामलों में इस बात का कोई महत्व नहीं होता कि सच क्या है। मिथकों को लोगों के दिमाग में बैठा दिया जाता है। आरएसएस और उससे जुड़े संगठन, लव जिहाद के नाम पर सांप्रदायिकता का जहर घर-घर और मोहल्ले-मोहल्ले फैला रहे हैं। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay, and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved with human rights activities from last two decades.He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD.