जेएनयू पर चरमपंथियों का हमला : देशद्रोह या राष्ट्रवाद? .... हमारे सब्र तुम्हारे जब्र में एक जंग जारी है ये मुस्तकबिल बतायेगा... पलड़ा किसका भारी है ... राष्ट्रवाद या आतंकवाद ...

भारत में दो तरह का राष्ट्रवाद है एक राष्ट्रवाद ऐसा है जहां - हिंदुत्व है, हिन्दुत्ववादी मीडिया है, तानाशाही है सरकार है. प्रभुता है बाज़ार है, देश की हिफाजत है हथियारों की खरीदफरोख्त है, व्यापार है. आलीशान मॉल, रिहाइशी होटल, बंगले हैं, उपभोग, ऐश्वर्य के तमाम सामन बाज़ार में भरे पड़े हैं. दूसरा राष्ट्रवाद है जहां भूख है, गरीबी है, बेरोजगारी है, महंगाई है, शिक्षा, स्वास्थ्य, जन-सुविधाओं का अकाल है.

इन दो राष्ट्रवादी अस्मिताओं के बीच इन दो दुनियाओं के बीच फैला हुआ है आतंकवाद. फल-फूल रहा है आतंकवाद, दुनिया भर को अपनी चपेट में लिए हुए आतंकवाद. मजबूत से मजबूत देश से लेकर कमजोर से कमजोर देश पर आतंकवाद की नजर गड़ी हुई हैं. दहशतगर्दी का घना साया मंडरा रहा है. आम लोग राष्ट्रवाद और आतंकवाद की दहशत और खौफ में जीने को मजबूर हैं.

राष्ट्रवाद आतंकवाद की शक्ल में पैदा कहाँ होता है?

कभी सोचा नहीं भूख से क्या कोई आतंकवाद पैदा हुआ है? मजलूमों के पास आतंकवाद है क्या? क्या किसी देश की नस-नस में घुसकर राष्ट्रवाद अपने क्रूर रूप में उसके वुजूद को खत्म कर सकता है? क्या देश के हर नागरिक की सोच में आतंकवाद बसता है? अगर ऐसा नहीं है तो हमें ऐसे राष्ट्रवादी आतंकवाद और देशद्रोह की जड़ को ढूँढना होगा ताकि लोगों की जान बचाई जा सके.

आत्मघाती हमलों और विस्फोट करने से इन राष्ट्रवादियों के हमलों को रोका जा सके. क्या हिंदुत्व और राष्ट्रवाद इतना मुखर है कि राष्ट्र के लोगों को हत्या करने के लिए उकसाने में कामयाब हो सके. मजबूर कर सके? अगर ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि हम सभी आतंकवाद की दहशत में जीने को मजबूर हैं. हमें खुलकर सोचना पड़ेगा ये अराजक और हिंसक राष्ट्रवाद आतंकवाद की शक्ल में पैदा कहाँ होता है?

इस राष्ट्रवादी आतंकवाद की असली फैक्ट्री किस जगह लगाई गई है? इतना जरूर है जब राष्ट्रवाद एक अति बन जाय तो उसकी परिणति होती है आतंकवाद और राष्ट्रद्रोह.

मीडिया और सरकार

मीडिया और सरकार मानती है कि यह आतंकवाद शिक्षा संस्थानों में घुसकर देशविरोधी गतिविधियाँ कर रहा है. जिन विवि की बात आज हो रही है उनमें से चुने हुए कुछ विवि हाल ही में इस राष्ट्रवादी हमलों के शिकार बनाए गये. एक हमला तब हुआ जब आईआईएफ़टी १३ जून २०१५ को हुआ जहां विवि केम्पस में चौहान को राजनीतिक दबाव में वीसी बनाया जाना तय हुआ. यहीं से छात्रों के विरोध और आन्दोलन की शुरुआत हुई..

दूसरा हमला हैदराबाद विवि में १७ जनवरी २०१६ को हुआ इस हमले का शिकार एक दलित गरीब छात्र रोहित अपनी जान गवाँ बैठा. छात्रों और जन-संगठनों ने इसे संस्थानिक हत्या कहा.

तीसरा हमला जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि और अलीगढ़ मुस्लिम विवि को अल्पसंख्क विवि का दर्जा प्राप्त नहीं है. इस बात पर कट्टर हिंदूवादी राजनीतिक ताकतों ने राष्ट्रवादी हमला बोला.

चौथा और सबसे खतरनाक हाल ही में हमला जवाहर लाल नेहरू विवि में हुआ है जहां राष्ट्रविरोधी नारों की बात को लेकर केंद्र सरकार ने सीधे दखल दिया. और दिल्ली पुलिस ने जेएनयूएसयू प्रेसीडेंट कन्हैया को देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया.

इन संस्थानिक मामलों में राष्ट्रवादी हमलों को लेकर मीडिया और केंद्र सरकार की राय एक सी दिखाई दी. भले ही एनडीटीवी जैसे चैनलों ने पुरजोर तरीके से संस्थानिक मामलों में केंद्र का सीधे तौर पर दखल और हमलावर होने को लेकर विरोध जताया. जिसके कारण तमाम विवि में एससी, एसटी छात्रों के साथ आपराधिक और दोषपूर्ण व्यवहार का खुलासा बहुत हद तक किया गया.

हर तरह से आरक्षण के विरोधियों की साजिश और दोहरे चरित्र पर सवाल खड़े किये गये. आरक्षण के बावजूद छात्रों के साथ बद्सलूकी और बेशर्मी के साथ उन्हें फेल करने की कोशिशों का सच उजागर किया गया.

हर तहकीकात में सच को सामने लाने में एनडीटीवी ने कई महत्वपूर्ण रिपोर्ट पेश की. और इस बात की तरफ साफ़ साफ़ संकेत दिए गये कि आरक्षण की जरूरत इस देश में वंचित जनसमुदाय और राष्ट्रहित में कितनी अनिवार्य और कारगर है.

क्या राष्ट्रवाद जुनून और अंधभक्ति है?

इसके साथ ही देश के लिए जिसे सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है वह राष्ट्रद्रोह है. जिसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से जोडकर देखने की कोशिशें जारी है. इस मुश्किल से निबटने के जो भी तरीके केंद्र सरकार के जरिये अपनाए जा रहे हैं वह कितने कारगर और लोकतांत्रिक हैं? इस बात को लेकर राजनीतिक बहसें जारी हैं. क्या कट्टरपंथी सरकार का रवैया व्यवस्था से देशद्रोह खत्म कर सकता है?

क्या राष्ट्रवाद जुनून और अंधभक्ति है? क्या केंद्र के फैसलों कार्रवाई राजनीतिक दबाव से आतंकवाद की मुश्किलें हल की जा सकती हैं? हमें इसको समझना होगा.

एक तरफ हेडली है जो २६/११ का दोषी बताया जा रहा है. वह अपने कुबूलनामे में तमाम चौंकाने वाले खुलासे करता है. अमेरिका इन खुलासों को भारत में वीडियो रिकार्डिंग भेजकर उसके जुर्म भारत की सरकार के सामने रख रहा है. दूसरी तरफ इशरत जहां का किस्सा है. जिसे हेडली ने ही आतंकवादी बताया. इशरत जो अब इस दुनिया में नहीं है. दूसरी तरफ अकादमिक इंस्टिट्यूट हैं जिनके भीतर एक जंग जारी है. यह जंग किसके खिलाफ है. और किसके पक्ष में है चाहे वह आन्दोलन आईआईएफ़टी संस्थान का हो, हैदराबाद विवि में हो, एएमयू का हो, जेएनयू हो.

अकादमिक संस्थानों के भीतर चल रहे छात्रों के विरोध को उनकी मांगों को देशविरोधी और देशद्रोह कहना कितना उचित और न्यायसंगत है. सभी मामलों में अकादमिक संस्थानों पर केंद्र सरकार का सीधा हस्तक्षेप देखने को मिल रहा है.

केंद्र सरकार एक तरफ अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को दुनिया के लिए खतरा बता रही है तो दूसरी तरफ उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों की मांगों को, छात्रों के नारों को, छात्रों के जुलूस, प्रदर्शन को देशद्रोह कह रही है. राष्ट्र-विरोधी साबित करने पर तुली है. इसके लिए हमें छात्र आंदोलनों के इतिहास को भी देखने की जरूरत है.

भूखे पेट का राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद दो तरह का होता है एक – भूखे पेट का राष्ट्रवाद. भूखे पेट का राष्ट्रवाद मजदूर की रोटी है.

दलितों का राष्ट्रवाद सामाजिक सम्मान और समान अवसर का अधिकार है. आदिवासियों का राष्ट्रवाद प्राकृतिक संपदा और आदिवासी संस्कृति का संरक्षण है, अल्पसंख्यकों का राष्ट्रवाद उनका हक़ और हिफाजत है, उत्पीडित महिलाओं का राष्ट्रवाद शोषण से मुक्ति है, भूखे पेट के राष्ट्रवादी लोग रोटी की खातिर मेहनत करते हैं, देशहित में उत्पादन करते हैं. किसान का राष्ट्रवाद उसकी फसल है.

किसान इसी राष्ट्रवाद के लिए जमीन को खुशहाल करता है, जमीन की कोख में बीज बोता हैं, दिहाड़ी करके कमाने वाले समुदाय का राष्ट्रवाद उसकी दिहाड़ी हैं, दो जून की रोटी के लिए दिहाड़ी मजूर रात दिन हाड-मांस गलाता है तब उसे भूखे पेट का राष्ट्रवाद चैन से सोने देता है.

भरे पेट का राष्ट्रवाद एक राष्ट्रवाद है जो इन तमाम राष्ट्रवादी सोच से बिलकुल विपरीत है. दूसरी तरफ एक और राष्ट्रवाद है जो वंचित समुदायों की अस्मिता पर भारी है वह कौन सा राष्ट्रवाद है दूसरा राष्ट्रवाद भरे पेट का राष्ट्रवाद है.

आप सोच रहे होंगे पेट भरे का राष्ट्रवाद कैसा होता है?

अगर हम इतना समझते हैं तो यह भूखे पेट के राष्ट्रवाद का अपमान होगा. भूखा पेट राष्टवाद के लिए और क्या क्या करता है. सोचिये जरा... भरे पेट का अतिवादी राष्ट्रवाद दंगे करता हैं, हिंसा करता है, आतंकी घटनाएँ करता हैं, मंदिर-मस्जिद पर हमले करता हैं जनता अक्सर ये समझने की भूल कर बैठती है कि अगर वह कट्टरपंथी राष्ट्रवाद के साथ नहीं है उसका नारा बुलंद नहीं करते तो कट्टरपंथी राष्ट्रवादी संगठन जनता को देशद्रोही न कह दें.

आज़ाद हिन्दुस्तान का मूलभूत ढांचा कट्टरपंथी या हिन्दू राष्ट्र का हो सकता है? क्या यह जो भारत है हिन्दू संघ या गणराज्य हैं? अगर जनता इन फिरकापरस्त और हत्यारी ताकतों के साथ नहीं हैं तो ये चंद राष्ट्रवादी लम्बरदार और गुंडे राष्ट्रवाद के नाम पर हिंसा, हत्या और खौफ पिअदा करते हैं.

हिन्दू-मुसलमान का झगड़ा पैदा करते हैं. झूठी अफवाहें फैलाते हैं. निर्बल-निर्धन का कत्ल करते हैं. इन हरकतों से हत्या की राजनीत, दंगे की राजनीति, धार्मिक उन्माद की राजनीति और जनसंहार की राजनीति को ताकत मिलती है.

दो समुदायों में तनाव और हिंसा पैदा करना राष्ट्रवाद नहीं हो सकता. क्या हिंसा, हत्या और दंगे राष्ट्रवाद को पूरा कर सकते हैं? हिन्दू और मुसलमान दोनों कोमों में राष्ट्रवाद और मजहब के झगड़े में कभी गाय को मुद्दा बनाया गया. कभी हिन्दू राष्ट्र मुद्दा बना. जिसे लेकर सरेआम बहुजनों के भीतर धार्मिक उन्माद की आग भडकाई गई. कट्टरपंथी ताकतें तर्क दे और सिद्ध करे कि गाय केवल हिन्दू अस्मिता की जागीर है?

क्या भारतवासियों की शहादतों से मिला यह जो गौरवशाली राष्ट्र है इन तथाकथित कट्टरपंथी राष्ट्रवाद का राग अलापने वाले लोगों का गुलाम है? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बनने के पहले संघी जो कभी कांग्रेस की सहयोगी भूमिका में थे. ये तथाकथित मुट्ठी भर संगठन जो आज अस्तित्व में हैं. जो हर रोज हिन्दू कट्टरपंथी कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे हैं जो हिन्दू राष्ट्र की मांग उठा रहे हैं. हकीकत में यह लोग देशद्रोही हैं.

भारत कभी हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा. भारत एक सेकुलर राष्ट्र है.

यहाँ तमाम संस्कृतियाँ मिली-जुली हैं, तमाम सभ्ताएं इस मुल्क में पनपी हैं और अपनी पहचान के साथ दुनिया भर में युग-युगांतर तक फैलती रही हैं. यह वही देश है जहां ढेरों परम्पराएं जीवित हैं, जहां हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, कई धर्मों के लोग बसे हैं, जहां हर धर्म अपनी पूरी स्वतंत्रता को बनाए हुए है. हर कौम की अपनी अपनी रीति-नीति फली फूली है.

जो लोग काश्मीर का मुद्दा उठाते हैं कश्मीर के बहाने मुसलमानों पर हमला करते हैं, जो लोग हिन्दू राष्ट्र की मांग करते हैं जो इस देश को केवल हिन्दू राष्ट्र बनाने पर तुले हैं वे लोग हिन्दू तो कतई नहीं हो सकते.

हिन्दू होने का मतलब है सिन्धु सभ्यता में समाई हुई हर संस्कृति को जीने वाले लोग. जो केवल कट्टर हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं वे राष्ट्रद्रोह का बीज बो रहे हैं, वे आतंकवादी सोच रोप रहे हैं, वे साम्प्रदायिक फसलें उगाना चाहते हैं ऐसे देशद्रोहियों ने एक गणराज्य को नस्तोनाबूत करने का, बहुल संस्कृतियों वाले मुल्क को तोड़ने का, तमाम परम्पराओं में आनान्दित जीवन जीने वाले लोगों को कत्ल करने का सिर्फ एक ही नुस्खा सीखा है ‘भारत माता की जय के नारे लगाना’ और वन्दे मातरम का जयघोष करना. जबकि इसके पीछे छिपी हुई है इनकी क्रूर भावना, अराजक विचार, साम्प्रदायिक अभ्यास.

यही लोग भारत माँ के नारे लगाते हुए देश में दंगे कराते हैं, दंगों में भारत माँ की बेटी-बहनों का बलात्कार करते हैं, और हिन्दू राष्ट्र की मांग करते हैं.

क्या भारत माता सिर्फ इन चंद बलात्कार करने वाले हिंसक लोगों की माँ हो सकती है?

क्या भारत माता दलितों की नहीं है जिन्हें हर दिन नंगा घुमाया जाता है? क्या भारत माता आदिवासियों की नहीं है जिनकी योनि में पत्थर भरकर उन्हें लात-घूंसों से पीटा जाता है? जिनके स्तनों को निचोड़ने की छूट सरकार के पास है? जिन्हें नक्सली कहकर गोली मार दी जाती है?

क्या भारत माता अल्पसंख्यकों की नहीं है? क्या भारत माता उन बेटियों-महिलाओं की नहीं है जिन्हें दंगों में सरेआम नंगा करके कत्ल कर दिया गया?

क्या भारत माता कट्टरपंथी सियासी संगठनों के हत्यारों की गुलाम है?

अगर भारत माता किसान की नहीं हो सकती, मजदूर की नहीं हो सकती, सर्वहारा जनों की नहीं हो सकती तो क्या भारत माता दरिंदों और दंगाइयों की हो सकती है?

किस हिन्दू धर्मग्रन्थ में लिखा हुआ है कि राष्ट्रवाद के नाम पर दलितों और मुसलमानों का कत्ल करो?

किस वेद-पुराण में लिखा हुआ है दंगों में अपने राष्ट्र की महिलाओं का बलात्कार करो? किस ईश्वरीय प्रार्थना में लिखा हुआ है मुसलमानों को कत्ल करो. फिर ये कैसे मुमकिन है कि जो राष्ट्रवाद जोर जोर से चिल्लाते हैं वो इसी मुल्क की औरतों की इस्मत को रौंद देते हैं वो इसी मुल्क के मजलूमों की हत्या करने का हक़ रखते हैं.

“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि में कहाँ लिखा है बहुजन की हत्या ईश्वर का सन्देश है. कुरआन में कहाँ लिखा है जेहाद से अपने मुल्क की गरीब कौमों का कत्ल करो.

ये मुट्ठी भर साम्प्रदायिक लोग भारत माँ के नारे लगाते हैं, वन्दे मातरम का जयघोष करते हुए अपने ही मुल्क में नौजवानों को बरगलाते हैं. दलित, अल्पसंख्यक, औरतों, की हत्या करके वन्दे मातरम को जलील करते हैं. मातृभूमि की हिफाजत करने वाले, मातृभूमि से मुहब्बत करने वाले कब से मातृभूमि की संतानों के साथ बलात्कार करने लगे.

क्या महिलाओं का बलात्कार माँ का बलात्कार नहीं है?

अगर है तो इन बलात्कारियों के राष्ट्रवाद का सच “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमी कैसे हो सकता है? ये गुजरात दंगों में भारत माँ की कोख में त्रिशूल भोंकर कैसे माँ की कोख को लहूलुहान कर सकते हैं? यह कैसी हिन्दू राष्ट्रीयता है? ये कैसे भारत मां को अपनी जुबान पर ला सकते हैं. इन काफिरों की असलियत हमें पहचाननी होगी. इन्हें सरेआम हमें सजा देनी होगी. इन्हें ऐसे मुल्क से बाहर खदेड़ना होगा जहां सभी धर्म समान हैं. जहां हर हर धर्म के लोग आपस में मिलजुलकर हंसी खुशी रहते हैं, त्यौहार मनाते हैं, धर्मनिरपेक्ष देश में इन अपराधियों के लिए सज़ा तय करनी ही होगी.

यह केवल और केवल साम्प्रदायिक लोग हैं जो देश की धार्मिक अखंडता और एकता को तोड़ना चाहते हैं. देश में अमन शान्ति नहीं चाहते सिर्फ गरीब हिन्दू-दलितों और गरीब मुसलमानों की हत्या चाहते हैं. ये इस मुल्क के गद्दार हैं, गरीबों के दुश्मन हैं. ये गरीबी पैदा करने वाले जेहादी हैं.

क्या हमें ऐसे ही राष्ट्रवाद की जरूरत है?

क्या अब भी हम यही राष्ट्रवाद चाहते हैं? अरे, भूखे लोगों का संविधान रोटी है, और हिन्दू राष्ट्र का जयघोष करने वालों का संविधान रोटी पैदा करने वालों की हत्या है. इस मुल्क में जब तक ऐसे देशद्रोहियों को पहचान कर इनकी असलियत जगजाहिर नहीं की जायेगी तब तक इस देश से कभी भी न साम्प्रदायिकता खत्म होगी, न दंगे बंद होंगे, न भारत माँ की आबरू बचाई जा सकती है, न किसानों के सरकारी दमन और आत्महत्याओं को रोका जा सकता है. आत्महत्या खासकर किसान और छात्रों के मामले में जोकि राजनीतिक हत्यायें हैं. इन्हें रोकना हमारी जिम्मेदारी है.

क्या हमें ऐसे ही राष्ट्र की जरूरत है? जहां भारत माँ की छाती को कट्टरपंथी राष्ट्रवादी जब चाहे मसल दें

हमें यकीन है इस देश के संविधान पर, हमें यकीन है इस देश की अदालतों पर, हमें यकीन है इस देश की जनता पर, हमें यकीन हैं मेहनतकशों पर, हमें जनतंत्र पर पूरा यकीन है.

इस देश से दंगों की राजनीति और मेहनतकश लोगों की हत्या को तब तक रोका नहीं जा सकता जब तक ऐसे राजनीति में शामिल दंगाइयों और देशद्रोहियों को अदालतें जनसुनवाई के तहत फास्ट ट्रैक बना ले. उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा न दे. ये गद्दार और देशद्रोही हिन्दू राष्ट्रवाद का नकाब ओढकर हम सबके बीच भीड़ में शामिल हैं. जिन्हें हमें पहचानने की जरूरत हैं.

जब तक भारत माँ की जयगान के पीछे छिपे हत्यारों और देश के गद्दारों के चेहरे से नकाब नहीं नोचा जायेगा, बेनकाब न किया जा पायेगा. तब तक देश सुरक्षित नहीं है.

इस देश के किसी भी जन-समुदाय को हत्या का संविधान नहीं चाहिए. भूखे लोगों का राष्ट्रवाद मेहनत करके अपना और देश का पेट भरना है. जबकि इन पेट भरे हुए कट्टरपंथी हिन्दू राष्ट्र का दंभ भरने वालों का राष्ट्रवाद मेहनतकश जनसमुदाय की हत्या है. और जो लोग काश्मीर के अलग राष्ट्र की मांग करते हैं वो लोग इस्लामिक कट्टरपंथी लोग हैं जिन्हें एक संघ नहीं चाहिए जिन्हें एक गणराज्य नहीं चाहिए .

क्या हमें हिन्दू अलगाववादी ताकतों की तरह ही हिन्दू राष्ट्र चाहिए? क्या हमें अलग राष्ट्र कश्मीर चाहिए? हरगिज नहीं. देश का कोई भी आदमी जो संविधान को मानता है. जिसे संविधान पर भरोसा है. जो धर्मनिरपेक्ष है. वह ऐसा हरगिज नहीं चाहता.

देश की बड़ी आबादी अमन और चैन चाहती है. रोजगार चाहती है, सबको शिक्षा सबको सम्मान मिले यही चाहती है. अंत में सिर्फ इतना ही, जिस तरह हिटलर मरा उसी तरह अतिवादी और निरंकुश राष्ट्रवादी ताकतों का मरना तय है.

डॉ. अनिल पुष्कर