क्या सपा-बसपा गठबंधन, यूपी में कांग्रेस को पीछे कर पाएगा ?

मसीहुद्दीन संजरी

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अलग रखकर सपा–बसपा गठबंधन की खबर है। दोनों दलों के विगत के वोट प्रतिशत को जोड़कर यह माना जा रहा है कि इस गठबंधन से अन्य दलों का सफाया हो जाएगा लेकिन ऐसा मानना उचित नहीं है। सपा के वोटबैंक ट्रांसफर का पिछला रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है। भाजपा से पीड़ित यह वोटबैंक इस बार कुछ सीख ले सकता है। बसपा का वोट हस्तांतरित होता है। लेकिन इन दोनों दलों का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है।

पिछले दो दशकों से उत्तर प्रदेश में अपनी ज़मीन तलाश रही कांग्रेस का शहरी क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव रहा है जिसे भाजपा ने छीन लिया था। भाजपा के कमज़ोर होने की स्थिति में कांग्रेस को शहरी क्षेत्रों में बढ़त मिल सकती है। अगर भाजपा के सत्ता से बाहर होने की स्थिति पैदा होती है, जैसा कि प्रतीत होता है तो सत्ता के साथ रहने का अभ्यस्त सवर्ण वर्ग भाजपा छोड़ कांग्रेस की ओर आकर्षित हो सकता है क्योंकि केंद्र में बदलाव की हालत में कांग्रेस को सत्ता मिलने की संभावना अधिक होगी। इसके अलावा कांग्रेस को शिवपाल और अन्य छोटे दलों का साथ भी मिल सकता है। इससे कांग्रेस को अधिकतम सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का अवसर मिलेगा और पार्टी के महत्वकांक्षी नेताओं को संतुष्ट करने का भी।

मुस्लिम मतदाता विगत में सपा–बसपा के साथ रहा है। लेकिन वह भाजपा के खिलाफ किसी को भी वोट कर सकता है। शहरी क्षेत्रों में कांग्रेस को इसका लाभ भी मिल सकता है लेकिन इसके लिए कांग्रेस को स्पष्ट नीति और इस समुदाय से जुड़े मुद्दों पर और अधिक खुलापन दिखाना होगा।

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