खतरे की घंटी है किरण बेदी की यह बदहवासी
खतरे की घंटी है किरण बेदी की यह बदहवासी
भाजपा के बड़े वाले बहुत से नेता पहले ही बेदी से बिदक चुके हैं
नई दिल्ली। दिल्ली के चुनाव की मनोवैज्ञानिक लड़ाई में अब किरण बेदी के पैर उखड़ते नजर आ रहे हैं। यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। इसकी मुख्य वजह किरण बेदी की राजनैतिक अपरिपक्वता और पुलिसिया अंदाज ज्यादा है। बाक़ी काम भक्त जनों ने कर डाला है। पहले ही दौर में उन्होंने हमेशा की तरह बेदी के राजनैतिक गुब्बारे में इतनी ज्यादा हवा भर दी की वह अब पार्टी के कंधो पर बोझ बन गया है।
उलजलूल कहानियां ठीक गणेश जी को दूध पिलाने के अंदाज में। मसलन किरण बेदी ने तो इंदिरा गाँधी की कार टंगवा दी थी और इंदिरा जी उनसे इतनी प्रभावित हुई कि दूसरे दिन नाश्ते पर बुलाया।
फेसबुक की चक्कलस और तथाकथित वेब पत्रकारिता जहां किसी तथ्य की पुष्टि की जरूरत ही न हो, वहां यह सब चल जाता है। पर मुख्यधारा की मीडिया में जब किसी तथ्य की चीरफाड़ होती है तो यही सब समस्या बन जाती है।
कुछ साल पहले ऐसे ही लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस की एक मोहतरमा ने एक बच्चे की टिप्पणी पर लिख मारा था कि तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम तो नासा के टेस्ट में फेल हो गए थे और वह इतना काबिल कि उस टेस्ट को पास का लिया। बाद में जब सच्चाई सामने आई तो इन्डियन एक्सप्रेस को माफ़ी मांगनी पड़ी थी क्योंकि राष्टपति कभी ऐसे किसी टेस्ट में बैठे ही नहीं थे।
ठीक उसी तर्ज पर भक्त जनों ने फैला दिया किरण बेदी यानी करें बेदी ने इंदिरा गाधी की कार उठवा दी थी। एनडीटीवी के रवीश कुमार ने जब इस बारे में किरण बेदी से सवाल किया तो उनकी भाव भंगिमा ऐसी थी मानो कोई चोरी पकड़ी गई हो। पहले वे कुछ झिझकीं। पर रवीश ने जब फिर दोहराया- नहीं, ये तो आप बताइए कि इंदिरा गाँधी की कार आपने उठवाई थी या नहीं तो वे अटकते हुए बोलीं, नहीं। उन्होंने बताया कि एक दूसरे पुलिस अफसर ने यह काम किया था। उनका चेहरा देखने वाला था। यह चेहरा बता रहा था कि वे बदहवास हैं।
कई और सवाल, कई और चैनलों पर। बार-बार मुख्य सवालों से भागना। जवाब ऐसा मानो दिल्ली के पुलिस कमिश्नर का चुनाव लड़ रही हों किसी मुख्यमंत्री का नहीं। भाजपा के बड़े वाले बहुत से नेता पहले ही बेदी से बिदक चुके हैं। बाकी रहा सहा माहौल चुनावी सर्वे ने बना दिया है। अब संकट गहराता देख भाजपा मोदी समेत सारे दिग्गजों को मैदान में उतारने जा रही है।
नतीजे चाहे जो हों, पर प्रचार के पहले दूसरे दौर में किरण बेदी के पैर उखड़ते नजर आ रहे हैं। पार्टी पिछड़ रही है। सर्वे में भी और समाज में भी। इसकी जिम्मेदार किरण बेदी हैं, जिन्हें पार्टी ने मास्टर स्ट्रोक मानकर दांव पर लगा दिया था। वे अरविंद केजरीवाल से ही नहीं, टीम अन्ना से भी भिड़ रही हैं। उधर तो समूची टीम है तो इधर खाली भक्त जन। नेता अलग-थलग हैं और प्रवक्ता सिर्फ टीवी का मोर्चा संभाल सकते हैं, बूथ नहीं। अंतिम अस्त्र खुद मोदी है जो एक बड़ी मुनिस्पैलिटी के चुनाव में उतरने जा रहे हैं।
कहां ओबामा, कहां क्योटो और कहां मंडावली और सीलमपुर। पर इस सबके बावजूद अगर मोदी इसे संभाल नहीं पाए तो पहला बड़ा झटका भाजपा को दिल्ली में लग सकता है।
अंबरीश कुमार
जनादेश


