प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास एवं अवस्थापना
सूर्य प्रताप सिंह का मामला देश में गरमाया

देश भर के सैकड़ों आईएएस गायब,
अदालत ने खारिज किया मुद्दा मगर जनता ने स्वीकारा

लखनऊ। प्रदेश के प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास एवं अवस्थापना सूर्य प्रताप सिंह एवं अन्य गायब आईएएस अधिकारियों के विरुद्ध दायर की गयी जनहित याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। न्यायालय ने इसे भले ही खारिज कर दिया हो मगर जनमानस ने इस मुद्दे को बेहद सराहा है। मांग उठ रही है कि ऐसे आईएएस अफसर जो बिना अवकाश लिये गायब हैं, उनके खिलाफ अविलम्ब कार्रवाई की जाये। उधर इस याचिका के दायर होने के बाद बड़े अफसरों में खलबली है और इस मुद्दे को दबाने की कोशिश की जा रही है।

उल्लेखनीय है आईएएस अफसर अपने पूरे कार्यकाल में सिर्फ एक वर्ष की स्टडी लीव पर जा सकते हैं। मगर देश भर के आईएएस अफसरों के लिये यह छुट्टी मानो वरदान बनकर आती है। यह लोग एक वर्ष की स्टडी पर विदेश जाते हैं। एक वर्ष की अवधि में वहाँ प्रवासी भारतीयों और व्यवसायियों से सम्पर्क बनाते हैं। लोग भी मानते हैं कि यह लोग भारत जैसे देश के बड़े नौकरशाह हैं इसलिये इनसे सम्बंध बनाना बेहतर है। यह सम्बंध कब व्यापारिक गठबंधनों में तब्दील हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। नतीजा यह होता है कि भारत के काबिल दिमाग के लोग जिन्हें भारत में आकर सेवा करनी होती है वह विदेशों में तरह-तरह के धंधे शुरू कर देते हैं।

लखनऊ से प्रकाशित एक साप्ताहिक समाचारपत्र वीकएंड टाइम्स को यह चौंकाने वाली जानकारी तब मिली जब 1982 बैच के आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह यूपी लौटे और उन्हें लौटते ही प्रमुख सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास के पद पर तैनात करके प्रबंध निदेशक पिकप, मुख्य कार्यपालक अधिकारी लीडा, एवं अधिशासी निदेशक उद्योग बंधु का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया। मतलब साफ था ‘धंधो’ से जुड़े सारे मामले अब सूर्य प्रताप सिंह देखेंगे। सरकार के इस फैसले से प्रदेश की नौकरशाही भी अचंभित थी। बताया जाता है कि श्री सिंह लगातार यह संदेश हवा में छुड़वा रहे थे कि उन्हें मुख्यमंत्री ने खुद आमंत्रित किया है। लिहाजा किसी की हिम्मत नहीं थी कि उनके बारे में कोई टिप्पणी कर सके।

जब इनके बारे में अखबार ने जानकारी जुटायी तो सूत्रों से पता चला कि वह वर्ष 2004 में अमेरिका गये थे। वहाँ यह स्टडी लीव के लिये गये थे। मगर वहाँ जाकर इनका मन अमेरिका में रम गया। इनके ‘सूर्य’ का ही ‘प्रताप’ था कि नौ साल से यह वहाँ जमे रहे। चर्चा है कि वहाँ यह श्री श्री रविशंकर के सम्पर्क में आये और उनकी सलाहकार मंडली के सदस्य हो गये।

विगत दिनों मुख्यमंत्री भी अमेरिका गये थे। वहां श्री सिंह ने अपने सम्पर्कों का इस्तेमाल किया। यूपी में वापस आने की शर्त राकेश गर्ग की जगह मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनने की रखी। इसी आश्वासन पर वापस लौटे। मगर तब तक यह बात आम हो गयी थी कि यह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के बेहद दुलारे हैं। इसके अलावा विहिप और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े संतो से भी इनके बेहद अच्छे सम्बंध है।

भाजपा शासनकाल में सूर्य प्रताप सिंह, बदायूँ के जिलाधिकारी थे। वहाँ के तत्कालीन सांसद राम जन्म भूमि यज्ञ समिति के संयोजक स्वामी चिन्मयानंद थे। उनकी वहाँ के तत्कालीन स्थानीय विधायक और पंचायती राज मंत्री कृष्ण स्वरूप से बिल्कुल नहीं पटती थी। कलेक्टर सूर्य प्रताप सिंह ने खुले आम सांसद स्वामी चिन्मयानंद का पक्ष लिया। इसके बाद पंचायती राज मंत्री कृष्ण स्वरूप वैश्य ने लगातार शिकायतें की। पिछले दिनों अशोक सिंघल के एवं स्वामी चिन्मयानन्द के साथ मुख्यमंत्री की बैठक आयोजित करने में भी श्री सिंह की सक्रिय भूमिका रही।

श्री सिंह वापस तो मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव बनने आये थे मगर जब पता चला कि यह भाजपा और संघ तथा विहिप के इतने दुलारे अफसर हैं तो सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने भी अपने कदम वापस खींच लिये।

भाजपा और विहिप से उनके घनिष्ठ सम्बंधों के चलते ही दुर्गा सक्ति नागपाल के मसले पर आसमान सिर पर उठा लेने वाली भाजपा को भी सूर्यप्रताप सिंह के मसले पर तनिक भी कष्ट न हुआ। चुनावी साल में यह सम्बंध उजागर होने पर सरकार मुसीबत में पड़ सकती थी। लिहाजा उन्हें मुख्यमंत्री के पंचम तल पर तैनात ना करके चतुर्थ तल पर तैनात करके इण्डस्ट्री से जुड़े सभी मामलों का प्रमुख सचिव बना दिया गया। सालों से इस पद पर किसी की तैनाती नहीं होती थी। औद्योगिक विकास आयुक्त पर ही यह चार्ज रहता था। मगर सूर्य प्रताप सिंह को अपनी श्रेष्ठता जाहिर करनी थी लिहाजा उन्हें इस पद पर तैनात कर दिया गया।

वीकएंड टाइम्स के संपादक संजय शर्मा के मुताबिक जब पड़ताल की तो पता चला कि ऐसे प्रतापी सूर्य प्रताप सिंह अकेले नहीं है। देश भर में सैकड़ों अफसर ऐसे हैं जो गायब हैं। यूपी के भी कई अफसर गायब हैं। 1980 बैच के शिशिर पिछले सोलह सालों से गायब हैं। 1980 बैच के ही संजीव विश्व बैंक में बतौर कंसलटेंट 2005 में सूडान गये थे। तब से उनका कुछ अता-पता नहीं है। संजय भाटिया पिछले सात सालों से गायब हैं। यह वह नाम हैं जिनके बारे में पता चल गया।

संजय कहते हैं कि जब बाकी स्थानों से भी पता किया तो जानकारी मिली कि देश भर में सैकड़ों आईएएस अफसर गायब हैं। सूर्य प्रताप सिंह किसी और ‘खेल’ के चक्कर में वापस आ गये। मगर बाकी का कुछ अता-पता नहीं है। आईएएस अफसरों को मालूम है कि इस देश का कानून उनके लिये नहीं बना है। उनकी जगह कोई साधारण कर्मचारी होता तो कब का नौकरी से बर्खास्त हो गया होता। मगर इन आईएएस अफसरों का कुछ नहीं बिगड़ता।

यूपी के ही एक आईएएस अफसर 16 सालों तक गायब रहे। रिटायरमेंट से एक महीना पहले लौटे अपनी सर्विस रेग्यूलराइज करवाई। पेंशन शुरू करवाई और फिर विदेश चले गये। हालाँकि इस बारे में स्पष्ट नियम यह है कि अगर आईएएस अफसर बिना अवकाश स्वीकृत कराये निर्धारित अवधि से अवकाश पर रहते हैं तो एक पक्षीय निलम्बन और बर्खास्तगी की कार्रवाई शुरू कर दी जायेगी। मगर यह नियम तो बाकी लोगों पर ही लागू होते हैं।

इस सम्बंध में उत्तर प्रदेश के नियुक्ति विभाग से भी सूचना के अधिकार के तहत पूछा गया कि सूर्य प्रताप सिंह ने अवकाश कब लिया था। किसने यह अवकाश स्वीकृत किया तथा वर्तमान में श्री सिंह कहाँ तैनात थे। नियुक्ति विभाग से वही उत्तर आया जिसकी अपेक्षा थी। कहा गया कि यह सूचनायें सृजित करनी पड़ेंगी इसलिये नहीं दी जा सकती।

इसके बाद वीकएंड टाइम्स के संपादक संजय शर्मा ने जनहित याचिका दायर कर दी। इस याचिका को दायर करते ही प्रशासनिक अमले में हड़कम्प मच गया। श्री शर्मा के पैतृक निवास बदायूँ में एलआईयू के इंस्पेक्टरों ने उनके बारे में पूछताछ शुरू कर दी। जिसके जवाब में श्री शर्मा ने भी डीजीपी, प्रमुख सचिव गृह को पत्र लिखकर जानना चाहा कि क्या जो व्यक्ति जनहित याचिका दायर करता है उन सबकी एलआईयू जाँच करती है या फिर सिर्फ उन्हें किसी साजिश में फँसाने की कोशिशें की जा रही हैं। संजय शर्मा बताते हैं कि अगले कई दिन तक उनको धमकी और प्रलोभन दोनों दिये जाते रहे। मगर कामयाबी नहीं मिली।

दिनांक 20 अगस्त को माननीय उच्च न्यायालय ने यह जनहित याचिका खारिज करते हुये कहा कि यह सेवा का मामला है और सेवा के मामले में जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकती। इस फैसले के आने के तुरंत बाद उद्योग बन्धु के एक अधिकारी की तरफ से सारी मीडिया को मेल किया गया जिसमें अदालत की टिप्पणियों के विषय में गलत जानकारी दी गयी। इसके जवाब में भी श्री शर्मा ने प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास को तत्काल इस अधिकारी के विरूद्ध कार्रवाई करने और न करने की स्थिति में मानहानि का मुकदमा दर्ज करने की बात पत्र में लिखी। फिलहाल सूर्य प्रताप सिंह का मामला पूरी नौकरशाही के साथ देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है।