खाल उधेड़ने वाला गौरक्षक गिरोह ! शुरुआत गुजरात से हो चुकी है आनंदी बेन पटेल के इस्तीफे के साथ
खाल उधेड़ने वाला गौरक्षक गिरोह ! शुरुआत गुजरात से हो चुकी है आनंदी बेन पटेल के इस्तीफे के साथ
खाल उधेड़ने वाला गौरक्षक गिरोह !
शुरुआत गुजरात से हो चुकी है आनंदी बेन पटेल के इस्तीफे के साथ
अंबरीश कुमार
देश के विभिन्न हिस्सों से इस समय फर्जी गौभक्तों के आतंक की खबरें लगातार आ रही हैं. ये गाय के नाम पर किसी की भी खाल उधेड़ सकते हैं और जान भी ले सकते हैं.
गुजरात में जिस तरह चंद लंपटों ने मरी हुई गाय को ले जा रहे दलित युवकों की बर्बरता से पिटाई की वह किसी भी सभ्य समाज के लिये कलंक है.
ऐसा नहीं कि किसी खास जगह इस तरह की घटनायें हो रही हों, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से इस तरह की खबर आ रही हैं. हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक से गाय के नाम पर दलितों के दमन और उत्पीड़न की खबरे आ रहीं हैं.
गुजरात के ऊना में गाय मारने के शक में उन नौजवानों की चमड़ी उधेड़ दी गयी, जो मरी हुई गाय की खाल निकालने जा रहे थे. जिस बर्बरता से इन दलित नौजवानों को मारा गया वह सोशल मीडिया पर वायरल हुये वीडियो में सभी ने देखा.
इस मामले में गठित जांच दल ने जो रपट दी है, उसमें कहा गया है कि ऊना कस्बे के पास स्थित मोटा समधिया गांव की आबादी 3000 है, इसमें 26 -27 दलित परिवार रहते हैं. ये सभी खेत मजदूर हैं। नौजवानों का एक छोटा हिस्सा पढ़ा लिखा बेरोजगार है. इन दलित परिवारों में सिर्फ एक परिवार (बालू भाई वीरा भाई समदिया) मरे हुए घरेलू जानवरों का चमड़ा उतारने का काम करता है. यह हमला इसी परिवार के नौजवानों पर किया गया.
दलित नौजवानों की पिटाई का वीडियो भी इन फर्जी किस्म के गो भक्तों ने ही जारी किया जो अगड़ी जातियों के हैं.
साफ है कि उन्होंने कानून और सरकार को ठेंगा दिखाते हुये यह सब किया.
गुजरात में उन्होंने जिस तरह का दुस्साहस दिखाया है उससे साफ़ है कि उन्हें सरकार का कोई डर नहीं है. यह वही राज्य है जिसके विकास मॉडल की मार्केटिंग कर नरेंद्र मोदी ने देशभर में हवा बनायी थी. लगता है विकास के उनके इस मॉडल में दलित और अल्पसंख्यक शामिल नहीं है. बीते कुछ समय में इन दोनों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं.
भाजपा जो इनके पीछे थी अब आगे आ रही है.
तेलंगाना के गोशामहल (हैदराबाद) सीट से भाजपा विधायक टी राजा सिंह ने तो ऊना कांड में दलितों की पिटाई को सही बताया और उन दलितों को मारने का भी ऐलान किया जो गोमांस खाते हों. हालांकि समूचे पूर्वोत्तर भारत में बहुत से लोग गोमांस खाते हैं यह एक अलग तथ्य है .
दरअसल गाय का मुद्दा हाल में उमड़ी राष्ट्रभक्ति की भावना से जुड़ गया है.
अब राष्ट्रभक्ति, गाय, गौ रक्षा सब एक हो गये हैं. दरअसल यह सब कट्टर हिंदुत्व की अलख जलाये रखने का एक नया तरीका है.
अंध राष्ट्रभक्ति का नमूना जेएनयू की घटना के बाद कई जगह सामने आ चुका है. जो कट्टरपंथी ताकतें तब हिंसा पर उतारू थीं, वही ताकतें गाय के नाम पर आदमी की खाल खींच रही हैं. दुर्भाग्य यह है कि इन्हें न राष्ट्र से कोई लेना देना है न गाय से.
हर शहर में चौराहे-चौराहे कचरा खाती गाय नजर आ जायेगी तब कोई गौभक्त नजर नहीं आयेगा. कोई गाय मर जाये तो भी अगड़ी जातियों का कोई गौभक्त नजर नहीं आयेगा.
दलित ही इन गाय को ले जाते हैं और उसकी खाल निकालते हैं.
यह काम वे सदियों से करते आ रहे हैं. इस खाल से बने सभी उत्पादों का इस्तेमाल अगड़ी जातियों के लोग करते हैं पर मरी हुयी गाय की खाल अपने हाथ से निकालने का काम दलित करते हैं. हां, बड़ा मुनाफा देखकर मशीन से खाल निकालकर बेचने का धंधा जरूर अगड़ी जातियों के कुछ लोगों ने शुरू किया है.
गुजरात में जब मरी हुयी गाय की खाल निकालने पर दलित नौजवानों की पिटाई हुई तो दलितों ने मरी हुयी गायें इकठ्ठा कर नगर निगम दफ्तर के सामने डाल दीं. साथ यह भी कहा कि जो लोग गाय को अपनी माता मानते हैं वे इन गायों का अंतिम संस्कार करें. लेकिन कोई गोभक्त नजर नहीं आया.
यह त्रासदी है गाय की और असलियत है फर्जी किस्म के गाय भक्तों की.
गुजरात से मिली जानकारी के मुताबिक जगह जगह अगड़ी जातियों के आपराधिक किस्म के लोगों ने भी कथित गोरक्षा समितियां बनायीं है जो दलितों पर हमला कर रही हैं. परंतु अब दलितों में इन घटनाओं को लेकर आक्रोश बढ़ रहा है और वे लामबंद हो रहे हैं.
जुलाई महीने के अंतिम दिन अमदाबाद की सड़कों पर ऊना की घटना के विरोध में हजारों की संख्या में दलित सड़क पर उतरे. यह एक गैर राजनीतिक कार्यक्रम था जिसमें मुख्यधारा के किसी भी राजनैतिक दल को बुलाया नहीं गया था. फिर भी बड़ी संख्या में लोग अगर आये तो राजनैतिक दलों को दलितों के इस आक्रोश को समझना चाहिये.
वैसे भी उत्तर प्रदेश और पंजाब का चुनाव सामने हैं जहां पिछले लोकसभा चुनाव में दलितों की बड़ी आबादी ने मोदी को वोट दिया था और मायावती की बसपा का कोई भी सदस्य लोकसभा नहीं पहुंच पाया था. पर अब हालात बदल रहे हैं जिसका ज्यादा श्रेय गोभक्तों और दलित विरोधी ताकतों को भी जाता है.
शुरुआत गुजरात से हो चुकी है आनंदी बेन पटेल के इस्तीफे के साथ.
शुक्रवार


