गांधी के कातिल, जब 'गांधी' को नहीं मार पाए, तो गांधी के बच्चों को नहीं मार पाएंगे
गांधी के कातिल, जब 'गांधी' को नहीं मार पाए, तो गांधी के बच्चों को नहीं मार पाएंगे
चंचल
गांधी के कातिल, जब 'गांधी' को नहीं मार पाये, तो गांधी के बच्चों को नहीं मार पाएंगे
1. बीएचयू से डॉ. संदीप पांडे की बर्खास्तगी के खिलाफ कई छात्र संगठन मिल कर दस्तखत अभियान चला रहे हैं। उस पर हम एक दस्तखत अपनी करते हैं इस सुलेख के साथ, जालिम का कहा, न मानना ही सिविल नाफरमानी है - डॉ. लोहिया। गांधी के कातिल, जब 'गांधी' को नहीं मार पाए, तो गांधी के बच्चों को नहीं मार पाएंगे।
2. सन्दर्भ /बीएचयू के कुलपति के बारे में, जिन्होंने एक गांधीवादी प्रोफ़ेसर डॉ संदीप पांडे को बर्खास्त किया। कारण, महज वैचारिक अलगाव रहा।
हे कुलपति ! विश्वविद्यालय से कबीर को निकालो, अजीब पाठ पढ़ाता है - निंदक नियरे राखिये। वाल्तेयर को निकालिये - अभिव्यक्ति की आजादी की बात करता है। गांधी को हटाइये, आपको शिद्दत से खौफ है उस फ़कीर से।
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी, ब्रेख्त, कामू, काफ्का दस्तोवस्की, प्रेमचंद, धूमिल सबको बाहर का रास्ता दिखाइए।
आप रहिये, आपका गोत्र रहे, गुरु जी रहें। चड्ढी रहे, चड्ढी के कारनामे का दस्तावेज बनवाइए, जिसे आने वाली पीढ़ी देखे और थूके कि मालवीय जी की तपोभूमि पर ऐसा भी कुछ हुआ था।
3. अबे, सुन बे ! (भाई गया सिंह की भाषा में ) एक महीने की छुट्टी ले, तनख्वाह समेत और पूरा विश्वविद्यालय ( B.H.U.) देख ले। मालवीय भवन से शुरू कर, हवाई अड्डे तक 21 मील का फासला तय कर लो। यह कोई तबेला नहीं है विश्वविद्यालय है। यहाँ भाँति-भाँति के लोग हैं। यह खिलौनों की फैक्ट्री नहीं है। यहाँ सब के पास उनका अपना दिमाग है, मिजाज है। यहाँ भजन गाने नहीं आते लोग। लोग आते हैं देश दुनिया जानने का सूत्र खोजने। हर क्षेत्र में यहाँ के लोग निकले हैं। कुल दो लाख की आबादी है, तुम और तुम्हारे जैसे आते-जाते रहते हैं, लेकिन यह परिवार इसी तरह एकजुट खड़ा रहता है, वाल्तेयर की युक्ति के साथ कि हम तुम्हारी अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए आख़िरी दम तक लड़ेंगे।
तुम तो बहुत छोटे, बौने और कायर निकले, डर गए, खादी के अंदर खड़े एक दुबले पतले इंसान संदीप पांडे से। किसी से इस विश्वविद्यालय का इतिहास पूछ लेते। यह परिवार बहुत बड़ा है। हर जाति, हर रंग, हर धर्म, हर लिंग (कई दफे उभय लिंगी भी आ जाते हैं ) हर विचार यहाँ उन्मुक्त भाव से जीता और फलता फूलता रहा है। उसे बाधित मत करो, हासिल कुछ नहीं होगा। होगा बस इतना कि गोडसे की परम्परा में नीचे बहुत नीचे तुम्हारा भी नाम जुड़ जायगा ।
4. बीएचयू से प्रो0 डॉ. संदीप पांडे का हटाया जाना आश्चर्य की बात नहीं है। जिस मुल्क की शिक्षा मंत्री इतनी पढ़ी लिखी सुघड़ बहू हो, जिसके जमाने में काशी विश्वविद्यालय जैसे जहीन शिक्षण संस्था को शिक्षा के एक खुदरा व्यापारी के हाथ बेच दिया जाय, वहाँ डॉ संदीप पाण्डेय की क्या जरूरत? अगर आपको नमस्ते सदा आता है, चड्ढी में पैर डालना आता है, अलसुबह हाथ में डंडा लेने का सउर है ,,,,,,,,,,,, आदि-आदि। बाकी सार्वजनिक रूप से नहीं बताऊंगा, तो आप यहाँ चैन से रह सकते हैं।
क्या जरूरत है बच्चों को पढ़ाई के साथ एक बेहतर सोच का इंसान बनाने की ? बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया को जगाने की क्या जरूरत है कि डगर एक ही है गांधी। यह बताना महँगा पड़ेगा ही।
ये कमबख्त तो इतने लंपट हैं कि बात-बात में पुष्पक विमान चला देंगे। ऐसे-ऐसे अस्त्र- शस्त्र की बात बताएँगे कि अणु बम, परमाणु बम सब फेल, इससे बड़े औजार इनके पुरनियों के पास थे। ... और इनकी करतूत देखो एक दो पसली के फ़कीर का क़त्ल करने के लिए स्पेन की रिवाल्वर खोजनी पड़ी। कायर और बुजदिल जमात में डॉ संदीप पांडे को जगह कहाँ मिलेगी ?
हैरानी है तो वहाँ के छात्रों की चुप्पी पर। लेकिन मुतमइन हूँ, निजाम बदलेगा, उस मिट्टी से वाकिफ हूँ।
(गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पांडे की बीएचयू से गेस्ट फैकल्टी से बर्खास्तगी पर वरिष्ठ पत्रकार चंचल जी की फेसबुक टिप्पणियों के संपादित अंश)


