गाय माता वालों, सांड को आवारा होने से कौन बचाये ? खेती आज खतरे में हैं...
गाय माता वालों, सांड को आवारा होने से कौन बचाये ? खेती आज खतरे में हैं...
विद्या भूषण रावत
गाय हमारी माता है,
हमको कुछ नहीं आता है,
बैल हमारा बाप है,
पढ़ना लिखना पाप है।
बचपन में ये बहुत सुना था। गाय और बैल हमारे जीवन का हिस्सा थे। दो बैलों की जोड़ी कांग्रेस का प्रसिद्ध चुनाव चिन्ह था। गाय के बछड़ा होने पर लोग उतना दुखी नहीं होते थे जितना आज होते हैं क्योंकि मशीनीकरण ने बैलो की कृषि पर आधारित उपयोगिता ख़त्म कर दी और मंहगाई के इस दौर में जहां हर चीज का मोल है, किसानों के लिए असंभव है कि अनुपजाऊ बछड़ों का बोझ अपने सर ले सकें।
लगभग तीन चार वर्ष पूर्व मुझे ये लगा कि हाशिये के जिन समाजों के बीच हम काम करते हैं उनमें गाय भैंस पालन की आदत डाल दूध डेयरी बनाने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन क्योंकि हमने पहले भी ऐसा करके देखा था इसलिए प्रयोग को दूसरे तरीके से किया गया।
हमने पहले वर्ष में तीन गाय और एक भैंस खरीदी। अगले वर्ष भी हमने गायें खरीदीं। इस प्रकार 4 वर्षों में हमारे प्रयासों से हमारे प्रेरणा केंद्र में कुल गाय भैंसो की संख्या 15 तक पहुँच गयी। ये हकीकत है कि मात्रा दूध पर निर्भर होकर लाभ कमाने की उम्मीद भी नहीं हो सकती, इसलिए हम चाहते थे कि साल भर में एक दो नयी गाय भैंसें लें और एक दो बेचें भी ताकि काम अच्छे से चले।
लेकिन पिछले एक दो वर्षो में गाय के नाम पर जो गुंडागर्दी देखने के मिली है, उसने तो पूरे बाजार को ख़त्म कर दिया है। पशु हाट लगभग बंद हो चुके हैं और किसान न तो गाय खरीद पा रहा है और न ही बेच पा रहा है। उसकी हालत दिन प्रतिदिन दयनीय होते जा रही है।
भारत की आर्थिक नीतियों के कारण खेती आज खतरे में है। जानवरो के चरागाह ख़त्म हो चुके हैं। किसानों के हालत तो खेती के कारण पहले ही बुरे हैं और सरकारी तंत्र शायद चाह रहा है के वो जानवर भी न पाल पाए। क्या ये किसानों को ख़त्म करने की साजिश नहीं क्योंकि जब वो जानवर पालना और खेती करना स्वयं ही छोड़ देगा तो मुकेश भाई और अडानी भाई की देश की अर्थव्यवसथा" को बचाने और बढ़ाने का समय आएगा। अम्बानी जी, दूध, दही, फल और सब्जी सभी बेचेंगे। वैसे भी इस देश के भ्रष्ट मध्यम वर्ग को इससे कोई मतलब नहीं कि सब्जी किसान की है या अम्बानी की, उसे तो साफ़ पॉलिथीन पैक में सब्जी चाहिए।
जनवरी में मैं जब अपने सामुदायिक केंद्र में था तो गर्भवती गाय की प्रसव प्रक्रिया को देखा।
जैसे ही एक सहयोगी ने इस प्रक्रिया को पूरा किया, बच्चे के निकलते ही उसने कहा मिठाई।
मैं आश्चर्य में कि अभी तो बच्चा पूरा निकला ही नहीं और ये मिठाई मांग रहा है। थोड़ी देर में समझ आया कि बछिया हुयी है इसलिए सभी खुश थे।
अभी चार पांच दिन पहले मेरी सहयोगी का फ़ोन आया कि गाय ने बच्चा दिया है और वो बछड़ा है। उसकी आवाज थोड़ा दुखी थी, क्योंकि बछड़े का कोई करे क्या। सर, इस बछड़े का हम क्या करेंगे ? ये तो लोगो के खेत ख़राब करेगा। ज्यादातर लोग इन्हें छोड़ देते हैं।
बहुत मतलबी है इंसान
मैंने देखा, इंसान बहुत मतलबी है। अपने घर में अगर लड़की हो तो दुखी और जानवरो में लड़का हो तो दुखी क्योंकि माल से मतलब है। लेकिन किसान की बात समझनी पड़ेगी क्योंकि आज गाय भैंस पालना बहुत मुश्किल कार्य हो गया है।
पहले किसान के लिए गाय और बैल दोनों उपयोगी थे, लेकिन आज जब हर चीज पैसों में खरीदी जाती है तो चारे की कीमत भी सर के ऊपर चली गयी है। हम लोगों ने चारे खर्च से बचने के लिए गांव के लोगों को अधिया पे गाय और भैंस दी।
मतलब ये कि गाय के बच्चा होने तक वो उसके खान पान का ध्यान रखे और जब वो बच्चा देने वाली हो या दे चुकी हो तो उसका बाजार मूल्य लगाकर आधा आधा बाँट लिया जाता है।
छोटे किसान या भूमिहीन समुदायों में ये लोकप्रिय हो रहा था क्योंकि साल के आखिर में उन्हें एकमुश्त एक अच्छी रकम मिल जाती थी जिसका उपयोग वे अपने विशेष कार्यो में करते थे।
इस बार तो हद हो गयी।
योगी जी की सरकार आने पर गौ सेवकों के सड़कों पर उतरने के बाद और सरकार की शंकित चुप्पी से किसानों की हालत तो और भी खस्ता हो गयी। क्योंकि पशुओ का व्यापार बंद हो चुका है और पशु हाट जो किसानों की बहुत बड़ी मंडी हुआ करती थी अब ठप्प पड़ी है। इसलिए किसान अब गाय भैंस न तो बेच पा रहा और न ही खरीद पा रहा।
हमारी जिस गाय को हमने एक मुसहर परिवार को अधिया पे दिया था बच्चा होने के बाद उसे उम्मीद थी कि उसे करीब 15-20 हज़ार रुपये मिल जायेंगे क्योंकि दुधारू गाय का बाजार मूल्य निश्चय ही 30000 से चालीस हज़ार से नीचे नहीं होना चाहिए, लेकिन जब उन्होंने गाँव में लोगों को बुलाकर उसकी कीमत आंकी तो दुधारू गाय की कीमत मात्र 12 हज़ार रुपया से 20 हज़ार तक आंकी गयी।
मतलब ये कि वो परिवार जो साल भर तक गाय या भैंस की सेवा किया, अब मात्र 8-10 हज़ार रूपया में ही संतोष करे।
हम व्यक्तिगत तौर पर ऐसा नहीं होने देंगे लेकिन मैं आपके सामने जो बीमारी है उसको रख रहा हूँ।
अब गाय भैंसो की कोई कीमत नहीं है। किसान हर वर्ष अपनी कुछ गाय-भैंसों को बेचते हैं और कुछ नयी लेते हैं। ये लेन-देन स्थानीय हाटो में होता था। पुरानी परंपरा थी और सब अच्छे से चल रहा था।
गाय का बछड़ा हुआ तो किस काम का। इसलिए जब तक वो दूध देते हैं तब तक लोग रखते हैं और फिर छोड़ देते हैं क्योंकि किसी के पास इतना पैसा नहीं के वो इनकी सेवा कर सके।
तो ऐसे बछड़े जब बड़े होंगे तो आवारा सांड बनेंगे और फिर सड़कों से लेकर खेतों में अपनी आवारगी दिखाएंगे।
अभी खबर आ रही है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वो गायों के लिए भी आधार कार्ड की व्यवस्था करेगी।
हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि सरकार किसानों के हालत सुधारने के लिए क्या कर रही है? क्या गाय पालने वालों को कोई विशेष सुविधा मिलेगी? क्या उनकी बूढी गायो की देखभाल करने के लिए सरकार कुछ विशेष विभाग खोलने जा रही है? बछड़ा पैदा होने पर किसान क्या करे ? यदि गाय मर गयी तो क्या करे ? क्या सरकार पशु बीमा और पशु चिकित्सा के लिए कुछ करेगी?
उम्मीद है सरकार सभी किसान जो गाय भैंस पालते हैं उन्हें गैर क़ानूनी न घोषित कर दे और फिर उसके लिए लाइसेंस मांगने की बात न कहे।
गाय और भैंस हमारे जीवन का हिस्सा हैं और उससे कोई इंकार नहीं, लेकिन उनकी खरीद फरोख्त से किसानों को रोकने का मतलब है कि खेती को चौपट करने की व्यवस्था।
सरकार को चाहिए कि बीफ निर्यात पर एक श्वेत पत्र जारी करे और जो इस निर्यात के अगुआ हैं उनके नाम जारी करे।
हम जानना चाहते हैं कि तीस हज़ार करोड़ रुपये के बीफ निर्यात के ठेकेदार कौन हैं ? क्या उनकी ठेकेदारी की मज़बूत करने के लिए तो किसानों की कमर तोड़ने का इंतेज़ाम तो नहीं है ?
समय आ गया है कि सरकार अपनी मंशा साफ़ करे।
गाय सुरक्षा के नाम पर बड़ी कंपनियों को फायदा पहुँचाने की हर कोशिश का पर्दाफाश होना चाहिए।
गाय के नाम पर निर्दोष लोगों को मारने या परेशान करने वालों को चाहिए कि उन निर्यात कंपनियों के खिलाफ आंदोलन करें जो अरबो पैसा कमा रही हैं।
क्या विदेश में मांस निर्यात होने से आपकी भावनायें नहीं भड़कती ?
छोटे कामगारों पर हाथ डालकर आप अपनी राजनीति तो कर लेंगे लेकिन आपकी नियत पर शक रहेगा। आखिर वर्षो पूर्व डालडे में चर्बी की मिलावट किसी मुसलमान ने तो नहीं की।
गाय को हिन्दू और मुस्लमान न बनायें और उसे किसान ने पाला है वो किसान जो आज आत्महत्या करने पर उतारू है क्योंकि उसे बचाने के लिए हम कुछ नहीं कर रहे।
खेती को कॉर्पोरेट के हवाले करने के षड्यंत्र को पहचानने की जरुरत है।
यदि सरकार समझती है कि पशुपालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए तो उसे एक कंक्रीट योजना लानी होगी जो किसानों खासकर छोटे और मंझोले किसानों को मदद कर सके। गाय भैंस पालन और उनके रख रखाव के लिए किसानों की मदद की जाए और उनकी कोआपरेटिव बनाकर दूध व्यापर को बढ़ाया जाय लेकिन ये तभी होगा जब सरकार इन पर किसानों से बात करे और मुद्दे पर गंभीर हो।
गाय को अपनी राजनीति की रोटियां सेकने का मोहरा न बनायें तो अच्छा होगा और ऐसे लोगों को तुरंत सन्देश दिया जाए कि सरकार गौरक्षा के नाम पर उनकी गैर क़ानूनी हरकतों को बर्दाश्त नहीं करेगी। क्या हम इसके लिए तैयार हैं ?


