तमाम सबूतों के बावजूद भी भ्रष्ट लोगों पर कार्यवाही क्यों नहीं होती है ?
भंवर मेघवंशी
राजस्थान पुलिस का घोष वाक्य है– अपराधियों में भय, आम जन में विश्वास। लेकिन यह सिर्फ थानों की दीवारों पर पुता हुआ एक निर्जीव नारा मात्र है। व्यवहार के धरातल पर पुलिसिया कार्यशैली आमजन में भय पैदा करती है और अपराधियों में विश्वास। थाने अकसर राजनीतिक लोगों, माफिया गिरोहों और दलालों की आरामगाह बने नजर आते हैं। पुलिस कस्टडी में होने वाले अत्याचारों की भयावहता तो अकल्पनीय ही है। इस विभाग में फैला असीम भ्रष्टाचार भी नित प्रतिदिन नए आयाम लिए उजागर होता जा रहा है, पिछले ही साल अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीना और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सोनवाल दलाल रामदेव के ज़रिये वसूली करने के मामले में जेल की सलाखों के पीछे धरे गए। इस मामले में 12 थानेदार अभी तक भागते फिर रहे हैं, उन्हें भगोड़ा घोषित करके सम्पति कुर्क करके कार्यवाही की जाने की खबरें आ ही रही थी कि कोटा शहर के पुलिस अधीक्षक सत्यवीर सिंह ने महकमे का नाम रोशन कर दिया, सत्यवीर सिंह एक मुस्लिम महिला को दलाल बनाये हुए थे। लज़ीज़ खानों के शौक़ से लेकर मोबाईल पर अश्लील वार्ता तक के लुत्फ़ उठाये जा रहे थे। धन वर्षा तो जमीन से जुड़े जमीनी मामलों में हो ही रही थी। लेकिन ये गुलफाम भी धरे गए।
लगभग इन्हीं दिनों भीलवाडा जिले के करेडा थाने में कार्यरत थानेदार चन्द्र प्रकाश भी सुर्ख़ियों में आये, उनके विरुद्ध आस पास के जिलों की ए सी बी की टीमें कई दिनों से सक्रिय थीं। तकरीबन दो महीने से उनके खिलाफ कई शिकायतें पुलिस डिपार्टमेंट के आला अधिकारीयों और एंटी करप्शन ब्यूरो को मिल रही थीं, जिसमें बताया गया कि ये दरोगाजी एक शंकर नामक मास्टरजी के ज़रिये इलाके के लोगों से जमकर पैसा लूट रहे थे। दलाल मास्टर और दरोगा तथा ग्राहकों के चिन्हित मोबाइल्स रिकॉर्डिंग पर रखे गए, जिससे प्राप्त तथ्यों ने साबित किया कि करेडा थाना जिले में धन उगाही का एक बड़ा केंद्र बन चुका है, सुपारी दे कर मारपीट करवाने से लेकर पैसा लेकर दहेज़ हत्या तक के मामले में मृतक महिला के बयानों तक से छेड़छाड़ की गयी, जिस पर कोर्ट ने थानेदार चंद्रप्रकाश के खिलाफ जाँच के आर्डर तक दिए हैं। इतना ही नहीं थानेदार ने लोगों से दलाल शंकर के ज़रिये पैसा इकट्ठा करने का एक नायाब तरीका यह भी खोज निकाला कि जिन मसलों में पुलिस ने आलरेडी जाँच करके उन्हें अदमवकू जूठा मान कर अंतिम रिपोर्ट लगा दी, उन फाइलों को पुनः खोल कर एक एक से वसूली प्रारम्भ कर दी गयी। सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था, इलाके में राम राज आ चुका था, सनातन सत्य की भांति सदासुखी दलालगण और दरोगाजी मिल जुल कर लक्ष्मी जी की आराधना में निमग्न थे कि अचानक एक काना राम गुर्जर नामक सिरफिरे इन्सान ने सारा ही खेल बिगाड़ कर रख दिया।
टोकरा गाँव का निवासी 45 वर्षीय कानाराम गुर्जर नितांत अकेला प्राणी है, न आगे कोई न ही पीछे कोई। गरीब भी इतना कि रोज कमाना और रोज ही खाना। काफी साल पहले उसकी जमीन बिक गयी अब सिर्फ घर बचा है, उस पर भी ग्रामीण भू माफिया की नज़र लगी हुयी है। इन्हीं भू माफियाओं ने कानाराम की एक बहन को उकसा कर उस पर केस करवा दिया। पुलिस जाँच में पूरा मामला ही फर्जी पाया गया। फाइल दफ्तर दाखिल हो गयी लेकिन वर्तमान दरोगाजी जी इस गरिबड़े को भी कैसे बख्श देते सो कानाराम भी थानेदार और उनके दलालों के लपेटे में आ गया। बिना किसी मामले में ही कानाराम को थाने में बुला कर धमकाया गया कि तेरी जाँच वापस होगी और इस बार तू जरुर जेल जायेगा। काना राम डर गया, उसने बहुत हाथ पैर जोड़े और कहा कि वो अत्यंत गरीब और एकदम अकेला इन्सान है, उसके पास रहने के एक झौपड़े के अलावा कुछ भी नहीं है, लेकिन आततायियों के दिल नहीं पसीजते हैं, वो तो चाहते ही यही थे कि यह घबरा कर काना राम घर बेच डाले, इसलिए उससे मामला ख़तम करने के लिए 20 हज़ार रुपयों की मांग की गयी। किसी तरह उधार ला कर काना राम ने थानेदार के दलाल शंकर मास्टर को 15 हज़ार रुपये अपने ही गाँव के भाजपा के छुटभैय्या नेता भेरूलाल गुर्जर के मार्फ़त दे दिए, बाकी के पैसे का इंतजाम करने के लिए थोडा वक़्त मांग लिया, मगर हराम का खून मुंह लग जाये तो रहा नहीं जाता है, इसलिए काना को थानेदार और दलाल की ओर से बार बार फोन आने लगे कि अब 5 हज़ार नहीं बल्कि 8 हज़ार रूपए और देने पड़ेंगे और 2 -3 गवाह भी लेने होंगे।
अब बेचारा काना राम गवाह कहाँ से लाता, उसे जब कोई रास्ता नहीं मिला तो उसने किसी से राय मशवरा किया और जा पहुंचा एंटी करप्शन ऑफिस। वहां से मिले निर्देशानुसार पुलिस की टेप में रिकार्डिंग भी हो गयी, जिसमे दलाल शंकर द्वारा थानेदार के नाम पर पैसा मांगे जाने की बातचीत रिकॉर्ड हो गयी। ए सी बी की टीम पहुंचने ही वाली थी कि थानेदार चंद्रप्रकाश को इसकी भनक लग गयी। वह थाना छोड़कर जंगल की ओर भाग गया, बाद में रात के वक़्त वापस आ कर उसने अपने तमाम सहकर्मियों को आपबीती सुनाई और कहा कि एंटी करप्शन टीम मुझे रंगे हाथों पकड़ना चाह रही है। मुझे बचाने के लिए सभी लोग आज की रात मोबाईल स्विच ऑफ कर दो और किसी से भी मत मिलो।
इतना ही नहीं बल्कि रातों रात थानेदार छुट्टी स्वीकृत करवा कर कहीं भाग छूटा। बाद में गैरहाज़िर हो गया और अंतत कुछ देर के लिए कल आमद करवाई, जहाँ से दरोगाजी लाइन में भिजवा दिए गए। लेकिन यहाँ की आम जनता यह पूछ रही है कि जिस थानेदार के खिलाफ अजा जजा अत्याचार निवारण कानून के तहत मामला दर्ज है और जिसकी निगरानी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग स्वयं कर रहा है, उसे यहाँ से ट्रांसफर करने में भीलवाड़ा पुलिस के आला अधिकारीयों ने इतने दिन क्यों लगाये ? जबकि इसी थानेदार पर टोकरा गाँव के ही निवासी भेरू रावल ने भी कई गंभीर आरोप लगाये हैं। रावल जो की स्वयं ही दलित समुदाय से आते हैं, उन पर जान बूझकर दलित अत्याचार का एक फर्जी मामला एक अनपढ़ विधवा से लगवाया गया है तथा भेरू रावल पर ग्रामीणों को उकसा कर जानलेवा हमला भी करवाया गया, क्योंकि वह कानाराम गुर्जर का सहयोग कर रहा था। इतना ही नहीं बल्कि हमले के बाद गंभीर रूप से घायल भेरू रावल की अफ आई आर 5 घंटों तक दर्ज ही नहीं की गयी, जब हमलावर थाने आ पंहुचे। उनकी ओर से भी शिकायत ली गयी तब भेरू रावल की शिकायत भी ली गयी और उपयुक्त धाराएँ तक नहीं जोड़ी गयी। मेडिकल रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि भेरू रावल को सर में गंभीर चौट लगी हैं, फिर भी धारा 307 में मामला दर्ज नहीं किया गया। भेरू रावल ने थानेदार से लेकर पुलिस अधीक्षक भीलवाड़ा और पुलिस महानिरीक्षक अजमेर तक अपने खिलाफ थानेदार और उसके दलालों द्वारा रचे गए षड्यंत्र को लेकर शिकायत दर्ज करवाई मगर कुछ भी कार्यवाही नहीं हो पाई। थक हार कर उसने राजस्थान हाईकोर्ट की शरण ली। अब दोनों ही मामलों की फ़ाइलों को उच्च न्यायालय ने तलब कर लिया है।
दूसरी और कानाराम गुर्जर ने लोकायुक्त सज्जन सिंह कोठारी के समक्ष लोकसेवक चंद्रप्रकाश और शंकर मास्टर के खिलाफ रिश्वत मांगने और आय से कई गुना संपत्ति भ्रष्टाचार के ज़रिये धन इकट्ठा कर लेने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज करवा दिया है। उसने एंटी करप्शन ब्यूरो के मुख्यालय पहुंच कर भी तमाम मोबाईल रिकॉर्डिंग एवं अन्य दस्तावेज सलंग्न कर शिकायत दर्ज करवाई है कि थानेदार और उसके दलालों के विरुद्ध कार्यवाही की जाये। हैरत की बात सिर्फ यह है कि जिस थानेदार और उसके दलालों के कारनामों के तमाम दस्तावेजी सबूत राज्य की मुख्यमंत्री तक पहुंच चुके हैं, मानवाधिकार आयोग से लेकर अनुसूचित जाति आयोग और पुलिस मुख्यालय एवं एंटी करप्शन मुख्यालय तक मामले दर्ज हुए हैं, उस थानेदार को सिर्फ लाइन हाज़िर ही किया जाना क्या इस बात का संकेत नहीं है कि भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री का लाभ नीचे से लेकर ऊपर तक उठाया जा रहा था। लोग बड़ी बेसब्री से उस दिन के इंतजार में है जब इस थानेदार के खिलाफ कठोर कार्यवाही अमल में लायी जाएगी ताकि पुलिस महकमे में फैली गन्दगी को साफ करने और पुलिस सुधार जैसे कार्यों को गति मिल सके। देखते हैं जनता के अच्छे दिनों की शुरुआत कब होती है और कब दलालों और भ्रष्ट एवं अपराधी तत्वों के बुरे दिन प्रारंभ होते हैं।
भंवर मेघवंशी, लेखक राजस्थान में मानव अधिकार के मुद्दों पर कार्यरत हैं ।