गुजरात में आप का नेतृत्व सरकारी अनुदान पर पलने फूलने वाले एनजीओ वालों के हाथ
गुजरात में आप का नेतृत्व सरकारी अनुदान पर पलने फूलने वाले एनजीओ वालों के हाथ
नचिकेता देसाई
आ आ पा का सदस्य बने मुझे दो महीने से ज्यादा हो गया है। सदस्य बनते समय ही मैंने आ आ पा के केन्द्रीय नेतृत्व को यह स्पष्ट कर दिया था कि मैं किसी पद या चुनाव लड़ने के लिये पार्टी में शामिल नहीं हुआ हूँ।
इन दो महीनो में मैंने आ आ पा के गुजरात कार्यालय में प्रतिदिन जाना शुरू किया। यहाँ शुरूआती दिनों में बड़ी संख्या में युवाओं को, विशेष कर मुसलमान युवकों को आते देख मुझे बहुत ख़ुशी हुयी। लेकिन कुछ ही दिनों में आने वालों की संख्या कम होती चली गयी। इसका मुख्य कारण था राज्य समिति के सदस्यों का पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ का दुर्व्यवहार और उपेक्षापूर्ण रवैय्या।
राज्य इकाई ने गुजरात के 26 संसदीय क्षेत्र में 26 से 30 जनवरी तक 'झाड़ू यात्रा' निकालने का फैसला किया। यात्रा शुरू होने के चार दिन पहले गुजरात तथा गोवा के प्रभारी दिनेश वाघेला ने मुझे बुलवा कर पूछा की झाड़ू यात्रा के मुख्य मुद्दे क्या होने चाहिए। मैंने उन्हें मोदी कुशासन के प्रमुख मुद्दे बताये - स्वास्थ्य सेवा की बदहाली, खेती की जमीन को हथिया कर मुट्ठी भर पूँजीपतियों को पानी के मोल दिया जाना। शिक्षकों को 2,500 रुपये महीने पर ठेके में काम करवाना, और इसी प्रकार स्वास्थ्य, वन विभाग तथा पुलिस में भी ठेके पर भर्ती करना, बिजली तथा गैस के ऊँचे भाव, प्रशासन के हर स्तर पर व्यापक भ्रष्टाचार आदि मुद्दे जो जन सामान्य को प्रभावित करते हैं उन्हें बताया।
झाड़ू यात्रा के साथ इन मुद्दों पर पोस्टर, बैनर, सूत्रोच्चार करने का सुझाव दिया।
मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। झाड़ू यात्रा भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ एक सशक्त प्रदर्शन के बजाये गणतंत्र दिवस पर निकाली जाने वाली झाँकी बन कर रह गयी। स्कूल तथा कॉलेज में गणतंत्र दिन को इसी प्रकार मनाया जाता है। नरेन्द्र मोदी मन ही मन मुस्कुराए होंगे।
आ आ पा में जब सुप्रसिद्ध समाज कर्मी मल्लिका साराभाई दाखिल हुयी तो राज्य कार्यालय में मातम सा वातावरण बन गया। 'अब ये कहाँ आ गईं? गुजरात की जनता नाराज़ हो जाएगी।' पार्टी कार्यकर्ता बोलने लगे। इसी तरह की प्रतिक्रिया मेधा पाटकर के आ आ पा में शामिल होने पर व्यक्त की गयी।
अरविन्द केजरीवाल की गुजरात यात्रा से पहली बार मोदी के खिलाफ एक बुलंद आवाज उठी। लेकिन यह गर्म तवे पर पानी की एक बूँद की तरह भाप बन कर उड़ जायेगी। क्योंकि गुजरात में आ आ पा का नेतृत्व अब तक सरकारी अनुदान पर पलने फूलने वाले एन जी ओ चलाने वालों के हाथ में है, न कि जन आन्दोलन में सक्रीयता से अपनी पहचान बनाने वाले कार्यकर्ता।
(फेसबुक पर आया एक कमेंट)


