गुलबर्ग सोसायटी का फैसला बेहद निराशाजनक, न्याय का भद्दा मज़ाक : SDPI
गुलबर्ग सोसायटी का फैसला बेहद निराशाजनक, न्याय का भद्दा मज़ाक : SDPI
गुलबर्ग सोसायटी का फैसला सभ्य समाज के इतिहास में काले दिन के समान
नई दिल्ली/ सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया (SDPI) ने 2002 में गुजरात के मुस्लिम गुलबर्ग सोसायटी में कत्लेआम मामले में कोर्ट के फैसले को बेहद निराशाजनक क़रार दिया है।
गौरतलब है कि इस कत्लेआम में पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
SDPI ने कहा है कि यह फैसला इंसाफ का मज़ाक उड़ाने जैसा है। यह बात भी सर्वमान्य है कि इंसाफ में देरी, इंसाफ का इन्कार करने के समान ही है, जबकि इस मामले में इंसाफ में ना सिर्फ देरी की गई, बल्कि इसे तोड़ मरोड़ कर रख दिया गया। जिसने एक बार फिर भारत की न्यायप्रणाली के हमेशा की तरह डुलमुल रवैये की समस्या को उजागर करके रख दिया है।
SDPI के राष्ट्रीय अध्यक्ष ए. सईद ने अपने बयान में कहा कि वर्तमान मामला साफ तौर से इंसाफ में देरी का है जिसका अवाम द्वारा लगातार, बेसब्री से इंतज़ार करने के बावजूद इस केस में कोर्ट द्वारा निर्णय लेने में 14 साल का लंबा समय लगा दिया गया। इतने लंबे इंतज़ार के बाद अंत में इस तरह का फैसला पीड़ित परिवारों को पूरी तरह संतुष्ट करने के लिए नाकाफी है।
दंगा पीड़ितों को इंसाफ में देरी, लोगों के न्यायपालिका में विश्वास में कमी का सबब बनती है
उन्होंने कहा कि दंगा पीड़ितों को इंसाफ में देरी, लोगों के न्यायपालिका में विश्वास में कमी का सबब बनती है जिसका मुजरिमों को फायदा पहुंचता है जोकि अकसर संदेह का फायदा कई सालों तक उठाते हैं और इस दौरान या तो गवाहों की मृत्यु हो जाती है या फिर सबूत नष्ट हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा बहुंसaख्कवाद का हथकंडा अपनाकर क़ातिलों का लगातर इसी तरह बचाव करती रहेगी, लिहाज़ा पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए राजनैतिक लड़ाई लड़ना बेहद ज़रूरी है।
श्री सईद ने विशेष ध्यान दिलाते हुए कहा कि कोर्ट का यह अवलोकन कि ‘’अपराधी समाज के लिए कोई खास ख़तरा नहीं हैं, जिनमें सुधार हो सकता है’’ सरकार को अपने दोष से बच निकलने का रास्ता प्रदान करता है। यह फैसला सभ्य समाज के इतिहास में काले दिन के समान है। बेहद दुर्लभ से दुर्लभतम अपराध भाजपा की राज्य सरकार की मिलीभगत से अंजाम दिया गया लेकिन एसआईटी जज को इस मामले में कम सज़ा देना न्यायसंगत लगता है। यह फैसला उन इंसाफपसंद लोगों के लिए निराशाजनक है जोकि न्यायपालिका से इंसाफ की उम्मीद रखते हैं।
हालांकि श्री सईद ने एसआईटी टीम की सराहना की जिसने दंगाईयों को क़ानून के सामने पैश कर स्वतंत्र भारत में एक दुलर्भ मिसाल कायम की है।


