“‘अभिव्यक्ति के खतरे उठाने का वक्त’ अब आ गया है” से आगे

समय से रूबारू हम-2
–सुभाष गाताड़े

इसे एक वि‍चि‍त्र संयोग कह सकते हैं कि अगर हम अपने अगले बग़ल के मुल्कों पर, दक्षिण एशिया के इस हिस्से पर निगाह डालें तो कोई अलग तस्वीर नज़र नहीं आती। ऐसी ही ताकतें भारी होती दिख रही हैं, जिनके चिन्हों में ‘अन्य’ का स्थान दोयम है। अगर 40 के दशक के उत्तरार्द्ध में उपनिवेशवादी बंधनों से मुक्ति होने का नारा बुलंद हुआ था तो 21वीं सदी की दूसरी दहाई में बहुतसंख्यकवाद के उभर का गवाह बनी हैं। एक दिन भी नहीं बीतता जब पीड़ित समुदायों पर हो रहे हमलों के बारे में नहीं सुनते।

दक्षिण एशिया के इस परिदृश्य की विडम्बना यही दिखती है कि एक स्थान का पीड़ित समुदाय दूसरे इलाके में उत्पीड़ित होता दिखता है। कुछ समय पहले इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि महात्मा बुद्ध के सिद्धान्त के स्वयंबू रक्षक ‘बर्मा के बिना लादेन’ में रूपांतरण होते दिखेंगे। मुमकिन है कि आप सभी ने ‘गार्डियन’ में प्रकाशित या ‘टाइम’ में प्रकाशित उस स्टोरी को पढ़ा हो जिसका फोकस विरीथू नामक बौद्ध भिक्षु पर था, जो 2,500 बौद्ध भिक्षुओं के एक समूह का मुखिया है और जिसके प्रवचन ने अत्याचारों को मुसलमान इलाकों पर हमले करने के लिए उकसाया है।