अंग्रेजों के जुल्म-ओ-सितम के ख़िलाफ़ जब हमारा देश लड़ रहा था तो लड़ने के तरीक़ों और आज़ादी के बाद की हिन्दुस्तान की तस्वीर को लेकर पर्याप्त मतभेद थे। एक तरफ गाँधी की अहिंसा थी तो दूसरी तरफ़ भगत सिंह की हिंसात्मक लड़ाई। सुभाष चन्द्र बोस थे जो जर्मनी और जापान जैसे देशों की सहायता से मुल्क को आज़ाद कराना चाहते थे। लेकिन इस मतभेद और तीखी राजनीतिक बहसों के बावज़ूद इनके बीच दुश्मनाना सम्बन्ध नहीं थे। भगत सिंह गाँधी जी की इज्जत करते थे तो गांधी जी ने भगत सिंह और उनके साथियों को भटके हुए नौजवान मानने के बावज़ूद उनकी शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित की थी। सुभाष चन्द्र बोस के तौर तरीक़ों से असहमति के बावज़ूद नेहरु ने आज़ाद हिन्द फौज के अफसरान की पैरवी लाल किले में चले ऐतिहासिक मुक़दमें में की थी। 30 जनवरी 1948 को गोड्से द्वारा की गयी गाँधी की हत्या इसकी अपवाद थी। यह किसी एक व्यक्ति द्वारा दूसरे की हत्या नहीं बल्कि एक विचार की दूसरे विचार द्वारा की गयी हत्या थी। यह सहिष्णुता और सर्वधर्म समुदाय पर कट्टरपंथ का हमला था। यह एक निहत्थे बूढ़े की धार्मिक प्रार्थना के दौरान खुद को उस धर्म का प्रतिनिधि बताने वाले व्यक्ति द्वारा की गयी हत्या थी जिसके बाद मिठाइयाँ बंटी, दीवाली मनी। वह व्यक्ति जिसने आज़ादी की लड़ाई में कभी किसी अंग्रेज़ पर एक पत्थर न फेंका आज जब गांधी की हत्या के अपने उस इकलौते काम के कारण हीरो बनाया जा रहा है जिसे इस देश की न्यायालय ने हीरो बनाया, तो यह कोई साधारण मामला नहीं है। तब तो और भी नहीं जब ऐसा करने वाले उन संगठनों से जुड़े हैं जिनका आज इस देश की केन्द्रीय सत्ता में दख़ल है।
आज़ादी के बाद जो संविधान हमने अपनाया उसमें सभी धर्मों के लिए जगह थी लेकिन धार्मिक कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं थी। देश के भीतर ऐसी ताक़तें उस वक़्त भी थीं जो मनु स्मृति को संविधान बनाने की मांग कर रही थीं, आरक्षण का विरोध कर रही थीं और धार्मिक कट्टरता फैलाने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन वे हाशिये पर थीं। पिछले सत्तर सालों में यह परिदृश्य बदला है। आज वे सत्ता में हैं और समाज में उनका व्यापक प्रभाव है। ज़ाहिर है वे अपने उन नायकों को सेलिब्रेट करने की कोशिश करेंगी जिन्हें अब तक खलनायक समझा गया। सवाल यह है कि क्या यह देश उन्हें अपना नायक स्वीकार करने को तैयार है जिन्होंने हत्या और विरोध के लिए किसी औपनिवेशिक शासक या उसके प्रतिनिधि को नहीं बल्कि शान्ति और अहिंसा के प्रतिनिधि उस व्यक्ति को चुना जो स्वाधीनता आन्दोलन का प्रतीक था? सवाल यह है कि उस रास्ते पर चल के यह देश कहाँ पहुँचेगा? हालिया कुछ घटनाओं से हम इसका अंदाजा लगा सकते हैं। महाराष्ट्र में अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ अलख जगाये नरेंद्र दाभोलकर की पिछले वर्ष की गयी हत्या इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है। हालत यह है कि कभी पार्क में बैठे युवाओं पर हमला होता है, कभी पब में, कभी कोई किताब जलाई जाती है तो कभी अनंतमूर्ति जैसे लेखक की मृत्यु पर मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं। यह विचारधारा असहिष्णुता और हिंसा की विचारधारा है जो विरोधियों से बहस-मुबाहिसे नहीं बल्कि उन पर हमले और उनकी हत्या पर विश्वास करती है। इतिहास और विज्ञान इसके लिए अपनी जड़ मान्यताओं को लागू करने का हथियार भर हैं। यह हमारे देश को आगे नहीं पीछे ले जाने वाली विचारधारा है जो एक तरफ किसानों, मज़दूरों, छात्रों की ज़िन्दगी मुश्किल बनाती जाती है तो दूसरी तरफ बड़े बड़े पूँजीपतियों की ज़िन्दगी खुशहाल। यह दंगों की आग भड़काने वाली और उनकी आँच पर राजनीति की रोटियाँ सेंकने वाली विचारधारा है। असल में यह आतंक की विचारधारा है। यह गाँधी को गालियाँ देने वाली और क़ानून द्वारा मुज़रिम पाए गए हत्यारे गोडसे के मंदिर बनाने वाली विचारधारा है।
तो जब हम गांधी को हाँ और गोडसे को ना कह रहे हैं तो इसका अर्थ यह है कि हम सहिष्णुता की विचारधारा को स्वीकारने और हिंसा की विचारधारा को नकारने की बात कर रहे हैं। वरना दुनिया भर में अपने वैचारिक विरोधियों द्वारा भी महामानव की तरह सम्मानित गाँधी और एक हत्यारे गोडसे की क्या तुलना? यहाँ हमारी चिंता देश के भीतर साम्प्रदायिक सद्भाव तथा जनोन्मुख विकास के साथ साथ ज्ञान विज्ञान के स्वायत्त वैज्ञानिक विकास की है और एक ऐसे लोकतांत्रिक माहौल के निर्माण की जिसमें अलग अलग विचारों के लोगों को अपनी बात बिना किसी भय के कहने की आज़ादी हो। जहाँ लेखक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो। “हिंसा के ख़िलाफ़ कला” मंच देश के संवैधानिक मूल्यों और सहिष्णु परम्पराओं को क़ायम रखने तथा और मज़बूत करने के उद्देश्य से गठित मंच है। आज गांधी-गोडसे को आमने सामने रख कर की गयी यह पहल उसी के निमित्त है।
हम इस देश की आम जनता से यह अपील करना चाहते हैं कि वह ऐसे असहिष्णु, बर्बर और हिंसक हत्यारे को नायक की तरह पेश किये जाने वाली ताक़तों की असलियत को पहचाने और उन्हें नकारे ताकि हम अपने बच्चों को एक ख़ुशहाल और शांतिपूर्ण भविष्य दे सकें।
‪#‎gandhi_not_godse
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