किसका धर्म परिवर्तन, किसकी घर वापसी
संसद् का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। आरएसएस से जुड़ी दो संस्थाओं- बजरंग दल और हिंदू जनजागृति समिति- द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में फुटपाथ पर रहने वाले और कचरा बीनने वाले लगभग 350 लोगों को मुसलमान से हिंदू बनाया गया। उनसे यह वायदा किया गया था कि यदि वे कार्यक्रम में भाग लेंगे तो उन्हें राशन कार्ड व बीपीएल कार्ड उपलब्ध करवाए जायेंगे। हंगामा होने पर इसे इसे धर्मपरिवर्तन न कहकर घरवापसी बताया गया।

संसद् में हंगामा होने पर संघ के नेताओं ने कहा कि वे तो धर्मांतरण के विरुद्ध हैं और धर्मांतरण विरोधी कानून बना दिया जाए। सरकार की तरफ से भी कहा गया कि वह धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने को तैयार है।

दरअसल संघ कबीले का असल मकसद धर्मांतरण करना नहीं बल्कि धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की पूर्वपीठिका तैयार करना था। संघ कबीला झूठ का कारोबार करने में माहिर है। न तो संघ कबीला कहीं धर्मांतरण करा रहा है और न किसी अन्य धर्म के लोग धर्मांतरण करा रहे हैं।

पहले तो आगरा की घटना पर ही बात की जाए तो जिसे धर्मांतरण या घर वापसी कहा गया, वह मीडिया में आए चित्रों से साफ जाहिर था कि एक छलावा था, वरना जो व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर रहा है उसे जालीदार टोपी पहनने की क्या आवश्यकता थी? जाहिर है, उन गरीब कूड़ा बीनने वालों को लालच दिया गया होगा, जैसा कि बाद में यह सामने आया भी कि उनसे वायदा किया गया था कि यदि वे कार्यक्रम में भाग लेंगे तो उन्हें राशन कार्ड व बीपीएल कार्ड उपलब्ध करवाए जायेंगे। इसलिए यह संघ कबीले का मात्र एक स्टंट था। वरना संघ कबीले से सवाल किया जाना चाहिए कि ठीक है आपने धर्म परिवर्तन या घर वापसी करा दी लेकिन इन घर वापस आने वालों को किस जाति में प्रवेश दिया गया ? यदि संघ कबीला कहता है कि उसने इनको कोई जाति दी है तो उस जाति के लोगों से पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्होंने इन घर वापिस आए लोगों को अपनी जाति में स्वीकार कर लिया है? बस यहीं संघ कबीले की पोल खुल जाएगी।

संघ कबीला बार-बार धर्मांतरण के लिए घरवापसी शब्द का इस्तेमाल कर रहा है और विहिप नेता अशोक सिंहल का बयान भी आया कि हिन्दू धर्म ने कभी धर्मांतरण नहीं कराया और वे तो केवल उन लोगों की घर वापसी करा रहे हैं जो लालच या भयवश दूसरे धर्म में चले गए थे।

दरअसल सिंहल और संघ कबीले की दोनों बातें सफेद झूठ हैं। पहली बात तो यही कि इतिहास साक्षी है कि भारत में भी हिन्दू धर्म भी धर्मांतरण से ही फला-फूला है। तमाम नस्लें पूरी दुनिया से यहां आईं और हिन्दू धर्म में समा गईं। इन्हें ही ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य के अतिरिक्त शूद्र जातियों में शामिल किया गया। समस्या तब हुई जब इस्लाम और ईसाई धर्म यहां आए क्योंकि ईसाई और मुसलमान अपना कल्चर, अपना धर्म अपने पैगंबर और अपनी किताब लेकर आए तो वे अन्य नस्लों की तरह हिन्दू धर्म में नहीं समा सके। ठीक उसी तरह जिस तरह आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इस समय संघ कबीला और ईसाई मिशनरीज़ काम कर रही हैं, क्योंकि आदिवासी न हिन्दू हैं, न मुसलमान, न सिख, न ईसाई। संघ कबीला इसीलिए आदिवासियों को हिन्दू धर्म में प्रवेश दिलाना चाहता है क्योंकि उन्हें किसी जाति में फिट करने की आवश्यकता नहीं होगी और इस तरह हिंदुत्व का कुनबा बिना वर्ण व्यवस्था को भंग किए बढ़ता जाएगा।

दूसरी सदी के राजा पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों का जबर्दस्त जनसंहार कराया और उस जनसंहार के बाद ही बौद्ध धर्म भारत से लुप्तप्राय हो गया। इसलिए हिन्दू धर्म तलवार के बल पर नहीं फैला, ऐसा कहना सरासर गलत है।

जैसा कि अशोक सिंहल का दावा है कि हिन्दू धर्म, धर्मांतरण कराने के लिए कहीं बाहर नहीं गया। तो ऐसा किसी सदिच्छा में नहीं, बल्कि उसके सामने संकट था कि जिन्हें हिन्दू धर्म में दीक्षित किया जाएगा उन्हें किस जाति में फिट जाएगा? स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की इस कमजोरी की ओर इशारा किया था कि जाति व्यवस्था के चलते भगिनी निवेदिता हिन्दू धर्म ग्रहण कर संन्यासिनी तो बन सकती हैं लेकिन गृहस्थ नहीं, क्योंकि तब उन्हें किस जाति में शामिल किया जाएगा। यही वह कारण है जिसके लिए अशोक सिंहल गौरवान्वित हो रहे हैं कि हिन्दू धर्म धर्मांतरण कराने बाहर नहीं गया।

जहां तक हिन्दू धर्म का भारत से बाहर जाकर धर्मांतरण कराने का प्रश्न है तो सम्राट अशोक ने अपनी बहन को बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भेजा था। बौद्ध धर्म भारत से बार जाकर ही फैला। मूलतः हिन्दू धर्म ब्राह्मणत्व ही है, इसीलिए भारत में ब्राह्मण धर्म और बौद्ध धर्म में संघर्ष रहा।

सारी दुनिया में धर्मांतरण होते ही आए हैं और होते ही रहते हैं। वैसे भी धर्म व्यक्ति का निजी मामला है। एक व्यक्ति किस धर्म को मानता है और किसको नहीं, ये उसका स्वविवेक है उसके घर की बात है। समस्या तब पैदा होती है जब यह घर्म सड़क पर आ जाता है।

अशोक सिंहल ने धर्मान्तरण के खिलाफ कानून बनाने के सवाल पर फिर कहा है कि उनकी मांग है कि यह कानून बनना चाहिए लेकिन कानून बनाना सरकार का काम है और यह सरकार पर है कि वह यह काम कब और कैसे करती है।

जाहिर है, इस विवाद का मकसद धर्मान्तरण के खिलाफ कानून बनवाना ही है। और यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है। दरअसल संघ कबीले पर आधिपत्य महाराष्ट्र के चित्पावन ब्राह्मणों का है और संघ कबीला मनुस्मृति का उपासक है। उसे हिन्दू धर्म से कोई लेना-देना भी नहीं है, वह तो केवल ब्राह्मण वर्चस्व को कायम रखना चाहता है। धर्मांतरण के बहाने बहस चलाकर वह धर्मान्तरण के खिलाफ कानून बनवाना चाहता है ताकि फिर कोई बाबा साहेब अंबेडकर या रामराज से उदितराज बना आदमी हिन्दू धर्म तजकर बौद्ध या अऩ्य धर्म में न चला जाए। संघ कबीले की असल मंशा है कि धर्मान्तरण के खिलाफ कानून बनवा लिया जाए, फिर उसके बाद मनुस्मृति का संविधान लागू किया जाए। इसीलिए एक ओर गीता को राष्ट्रीय किताब का दर्जा देने की मांग है ताकि चतुर्वर्ण व्यवस्था को मजबूत बनाया जा सके और एक बड़ी बहुसंख्य हिन्दू आबादी के साथ अमानुषिक पशुवत् व्यवहार की संवैधानिक व्यवस्था कायम की जा सके। इसलिए संघ कबीले के घर वापसी कार्यक्रम से गैर हिन्दुओं नहीं बल्कि हिन्दुओं को भयभीत होने की आवश्यकता है।

हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था और कथित ऊँची जातियों के अत्याचारों से त्रस्त होकर धर्मपरिवर्तन होते रहे हैं। जिस मीनाक्षीपुरम धर्मपरिवर्तन को लेकर आरोप लगते रहे कि उसके पीछे पेट्रोडालर था, मालूम पड़ा कि वह धर्म परिवर्तन भी कथित ऊँची जातियों के अत्याचार से त्रस्त होकर किया गया था।

सारे विवाद को छोड़ भी दिया जाए तो भागवत जी से सवाल तो किया ही जाना चाहिए कि मान्यवर अभी ज्यादा दिन कहां हुए हैं जब आप दहाड़ रहे थे कि अगर इंग्लैंड में रहने वाले अंग्रेज हैं, जर्मनी में रहने वाले जर्मन हैं और अमेरिका में रहने वाले अमेरिकी हैं तो फिर हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी लोग हिन्दू क्यों नहीं हो सकते।... सभी भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान हिंदुत्व है और देश में रहने वाले इस महान संस्कृति के वंशज हैं।... हिंदुत्व एक जीवन शैली है और किसी भी ईश्वर की उपासना करने वाला अथवा किसी की उपासना नहीं करने वाला भी हिंदू हो सकता है।

फिर भागवत जी और संघ कबीला, ये घर वापसी किनकी और कहां करा रहा है? जरा प्रकाश डालें स्वयंभू हिन्दू हृदय सम्राट।
O- अमलेन्दु उपाध्याय