चाकचौबंद इंतजाम है यह केसरिया कारपोरेट हिंदुत्व का राजकाज
चाकचौबंद इंतजाम है यह केसरिया कारपोरेट हिंदुत्व का राजकाज
चाकचौबंद इंतजाम है यह केसरिया कारपोरेट हिंदुत्व का राजकाज
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हों क्योंकि देश अब मुकम्मल शेयर बाजार है और शेयर बाजार से बाहर कोई नागरिक नहीं है।
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हो कि जनधन की डकैती का चाकचौबंद इंतजाम है यह केसरिया कारपोरेट हिंदुत्व का राजकाज।
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हों क्योंकि मेरकिंग इन के बहाने अबाद विदेशी पूंजी के प्रवाद ने सारी नदियों की हत्या कर दी है और काट लिये हैं परिंदों के पर तमाम।
तितलियों के परों में परमाणु बम बांध दिये गये हैं और हवाओं पानियों में रेडियोएक्टिव जहर घोला जा रहा है।
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हो क्योंकि मुक्तिकामी जनता को राज्यतंत्र में बदलाव, सामाजिक न्याय और समता, शोषणविहीन, वर्गविहीन जाति विहीन नस्ल विहीन समाज की स्थापना के संघर्ष से अलग थलग करने के लिए किस्म किस्म के रंगबिरंगे हिंदुत्व के झंडे थमाये जा रहे हैं और संकटमोचक सिर्फ हनुमान चालीसा का यंत्र मंत्र तंत्र है।
पिछले लगभग एक दशक से हमारे जैसे अदना सा लेखक पत्रकार तमाम मित्र संपादकों को विज्ञापनदाताओं का फिलर बनने के लिए आर्डर के मुद्दों पर लिखने से मना करता रहा है। हम साफ-साफ कह चुके हैं कि हम किसी भी विधा पर अपने मुद्दे पर बोलेंगे और लिखेंगे, कारपोरेट और बाजार के लिए लिखेंगे नहीं।
अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि टीवी चैनलों की फरमाइश पर किसी भी मुद्दे पर हमारे आदरणीय लोग बहस करके बुनियादी मुद्दों से जनता का फोकस खराब करने लगे हैं। हमारी तुलना में हर मायने में कामयाब और बड़े लोगों की कौन मजबूरी है कि जब तब चैनलों पर प्रकट होकर मुद्दों को बेलाइन करने का खेल रचाये।
जबकि आर्थिक नरसंहार बेहद तेज है और अश्वमेधी घोड़ों के साथ सांढ़ों का धमाल तेज है।
जबकि देश मनसेंटो है और हुकूमत डाउ कैमिकल्स है।
हमारी समझ में नहीं रहा है कि एक फर्जी विकल्प के बचाव में जनता के हित में हम क्या कर, लिख या बोल रहे हैं और जनता को वह हकीकत बताने से परहेज क्यों कर रहे हैं, जिस पर लगातार जनजागरण की जरुरत है।
एक तो बजट के वक्त क्रिकेट कार्निवाल का मौसम होता है, इस पर तुर्रा असमय निवेशकों की होली है। जल जंगल जमीन से बेदखली के अश्वमेध समय में हम किसी राजनीतिक दल के आंतरिक मुद्दों पर बहस केंद्रित करके दरअसल किस किसके हित साध रहे हैं, इस पर हमारे जनपक्ष के तमाम प्रवक्ता गौर करें तो बेहतर है।
इसी तरह हमें बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि नई दिल्ली में बीबीसी में जाकर उनके निरपेक्ष रिपोर्ताज की तारीफ मैं कर आया हूं और मुझे हमेशा बहुत खुशी होती है कि जब बीबीसी उन मुद्दों पर बहस चलाता है, जिन पर भारतीय मीडिया खमोश है।
वहां हमारे मित्र राजेश जोशी हिंदी के संपादक हैं। सलमान रवि तेजतर्रार रिपोर्टर है और दूसरे लोगों के साथ जनसत्ता में सहमकर्मी रहे प्रमोद मल्लिक भी वहां पहुंच गये हैं।
अंग्रेजी बीबीसी से हम कोई उम्मीद नहीं रखते, लेकिन जिस तरह हिंदी बीबीसी ने निर्भया बलात्कार कांड में फांसी सजायाफ्ता मुकेश सिंह के स्त्री आखेट के जश्न का प्रसारण किया है, मुझे बीबीसी की तारीफ में कहे हम लफ्ज को वापस लेते हुए कहना ही होगा कि बुनियादी मुद्दों से भारतीय जनता को भटकाकर पुरुष वर्चस्व की मनुस्मृति के पक्ष में ही सक्रिय है बीबीसी भी।
पलाश विश्वास


