आयोग ईवीएम (EVM) से चुनाव की जिद छोड़े

मेनका गांधी (Maneka Gandhi) ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र (Parliamentary constituency) में पहले मुस्लिम मतदाताओं (Muslim voters) को और फिर सर्व सामान्य मतदाताओं को यह ताकीद करा कि उन्हें जहाँ से जितने वोट मिलेंगे, उस अनुसार काम होगा। चुनाव आयोग (Election commission) ने कार्यवाही करते हुए उन्हें 48 घंटो के लिए चुनाव प्रचार (Election Campaign) से रोक दिया था। जहाँ यह कार्यवाही स्वागत योग्य है, वहीं बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे यह सच्चाई बदल जाएगी कि “गुप्त मतदान” (secret ballot) एक भ्रम है?

मेनका गांधी व्दारा कही गई सच्चाई चुनाव आयोग भी मानता है। उसने, 2008 में ही ईवीएम (EVM) से मतों के बूथवार परिणाम के तरीके को स्वतंत्र मतदान में बड़ी बाधा बताया था। यह बात लॉ कमीशन ने मार्च 2015 में “चुनाव सुधार” (Election reform) पर केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रपट में भी रेखांकित की थी। उन्होंने लिखा: “21 /11/2008 को चुनाव आयोग ने सचिव, कानून एवं विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर यह मांग की, कि चुनाव में ईवीएम (EVM) से मतों की गिनती टोटेलाईज़र से की जा सके इसके लिए चुनाव नियम में जरूरी बदलाव किए जाएं।” यह रिपोर्ट आगे कहती है:

“चुनाव आयोग के इस सुझाव के पीछे का सबसे बड़ा तर्क यह था कि वोटों की गिनती के वर्तमान तरीके में हर बूथ के अनुसार परिणाम मालूम पड़ते है, जिसके चलते उसे क्षेत्र के मतदाता के उत्पीड़न और धमकी और चुनाव के बाद प्रताड़ना की संभावना रहती है।” (http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/report255.pdf).

इसका मतलब साफ़ है, जबतक ईवीएम (EVM) से वोटों की गिनती का तरीका नहीं बदला जाता, तब तक मतदाता स्वतंत्र रूप से मतदान करता है, यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।

भारत का दबे हुए वर्ग का मतदाता तो यह सच्चाई ना सिर्फ जानता है, बल्कि वो वर्षो से उसकी कीमत भी चुकाता आ रहा है। किस समुदाय ने किस को वोट दिया यह जानकारी सिर्फ उमीदवार तक ही सीमित नहीं रहती, चुनाव के बाद धर्म, जाति, समुदाय, क्षेत्र के अनुसार मतदाताओं के मतों की चीरफाड़ कर उन्होंने किस पार्टी को वोट दिया है, यह दुनिया को बताने का एक बड़ा धंधा मीडिया में होता है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया धर्म और जाति के नाम पर राजनीति के लिए नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को आड़े हाथों लेता है, उसी काम को वो खुद गला फाड़-फाड़ कर करता है। इतना ही नहीं, वो लम्बे समय तक इस बात का विज्ञापन भी करता है कि उसका आकलन सटीक होगा, क्योंकि इस बात को बताने के लिए उसके पास नामी विशेषज्ञ हैं। इसके लिए अब तो अजीब-अजीब से ग्राफ़िक का उपयोग भी होता है। याने जो जानकारी कल तक, आमतौर पर, राजनीतिक पार्टियों तक सीमित रहती थी, मीडिया ना सिर्फ उसे अब आम लोगों के बीच लेकर जाता है, बल्कि उसके कारणों पर बहस करवाकर उसे और मचाता है।

इस मुद्दे पर आगे बड़े उससे पहले यह देख लें कि मेनका गांधी ने कहा क्या है। पहले तो, उन्होंने मुस्लिम मतदातो को कहा कि अगर वो उनके लिए वोट नहीं करते हैं, तो फिर चुनाव बाद उनसे काम की उम्मीद न करें; क्योंकि यह तो एक “सौदेबाजी” होती है। (">).

इसके बाद उन्होंने एक गाँव में बाकी मतदाताओं को कहा कि चुनाव में जिस गाँव से उन्हें जितने वोट मिलते हैं, उस अनुसार वो उस गाँव को “A” से लेकर “D” की श्रेणी में रखती हैं। जहाँ से 80% वोट मिलते हैं, वो “A” में आते हैं और उनके काम सबसे पहले होते हैं; जहाँ 60% वोट मिलते हैं, वो “B” में आते हैं, और “A” श्रेणी के गाँवो के काम के बाद उनका नम्बर आता है। इस तरह से, जहाँ 50% वोट मिलते हैं, वो “C” श्रेणी में और 30% वाले “D” श्रेणी में।

(">)./http://thewirehindi.com/78286/maneka-gandhi-abcd-grading-to-vilages-development/

इसी तरह से गुजरात सरकार के जल आपूर्ति मंत्री कुवरजी बावलिया से चुनाव प्रचार के दौरान जब महिलाओं ने गाँव में पानी की आपूर्ति पूरी तरह से ना होने की शिकायत की, तो मंत्री जी बोले: पिछले विधानसभा चुनाव में मुझे यहाँ से 55% मिले थे, इसलिए उस अनुसार यहाँ आधी जल आपूर्ति हो रही है।

अब सवाल यह है, जब हमारे देश में गुप्त मतदान है, तो नेताओं को यह कैसे मालूम पड़ता है कि किस समुदाय, जाति और गाँव के लोगों ने किसको वोट दिया है ? चुनाव आयोग मतदान की गिनती करते समय हर बूथ से जुडी ईवीएम (EVM) मशीन से मिलने वाले मतों की अंतिम संख्या को फॉर्म 20 में दर्ज करता है और फिर उसका टोटल कर पूरे विधानसभा में किस उम्मीदवार को कितने मत मिले वो निकालता है। उदाहरण के लिए म. प्र. की हरदा विधानसभा का फार्म 20 यहाँ जुड़ा है (http://ceomadhyapradesh.nic.in/VS%202008/135.pdf). आप इसमें देख सकते हैं कि कैसे हर उम्मीदवार को किस बूथ से कितने मत मिले यह दिया हुआ है। इसी तरह आप चुनाव आयोग की वेब साईट से किसी भी विधानसभा या लोकसभा के पिछले चुनावों के भी फॉर्म 20 को देख सकते है। https://eci.gov.in/statistical-report/link-to-form-20/.

एक बूथ में आमतौर पर 1000 वोट होते हैं। अगर गाँव बड़ा है, तो उसमें इस अनुसार एक से ज्यादा बूथ होंगे। इसमें से हर बूथ पर 200 से 700 तक मतदाता अपने मत का प्रयोग करते हैं।

अब दो बातें हैं: पहला तो, हमारे देश के गाँव, कस्बों, यहाँ तक कि शहरों में जाति, धर्म, समुदाय के हिसाब से लोग एक बस्ती में बसे होते हैं। या कई तो गाँव के गाँव ही एक जाति या समुदाय के होते हैं। दूसरा, गाँव में अगर कई जाति के लोग हुए तो प्रभावशाली जाति के लोग तो खुले आम अपनी पसंद की पार्टी का काम करते हैं, इसलिए उन्हें तो गिना जा सकता है।

अब जब फॉर्म 20 में रिजल्ट को देखते हैं, तो गाँव में बचे वोट के आधार पर निचली जाति के लोगों ने किन्हें वोट दिया इसका अंदाजा लगा लिया जाता है। यह भी समझ आ जाता है कि अमुक गाँव किस पार्टी के साथ था। बल्कि लोग तो कहते भी हैं, कौन सा कांग्रेस का गाँव है, और कौनसा भाजपा का या किसी अन्य पार्टी का।

मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि इसका सबसे बड़े शिकार वंचित समाज के लोग होते हैं। जब हमने अपने संगठन- श्रमिक आदिवासी संगठन – को समाजवादी जन परिषद के जरिए वैल्पिक राजनीति से जोड़ा और सबसे पहले 2003 में म. प्र. की हरदा विधानसभा से पहला चुनाव लड़ा, तब हमें इसका प्रत्यक्ष अनुभव हुआ। चुनाव का परिणाम आने के बाद हमने देखा कि जिस अनुसार हमारी सदस्यता थी और रैली में लोग आते थे, उसका एक तिहाई वोट ही हमें मिला है। जब इसका कारण मालूम किया, तो लोगों ने कहा कि चुनाव के रिजल्ट के बाद बड़ी-बड़ी पार्टी के स्थानीय नेता इसका बात का अंदाजा कर लेते हैं कि किस गाँव या मोहल्ले ने किसे वोट दिया है।

हमारे साथ जुड़े ज्यादातर मतदाता आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक और मजदूर थे। उनका कहना था - “हमारा वोट आज भी हमारा नहीं है”। अगर हम संगठन के उमीदवार को वोट देंगे, तो चुनाव के बाद हमें नेता लोग कई तरह से प्रताड़ित करेंगे। दिन शुरू होने से ही इसकी शुरुआत हो जाती है, जब सुबह चावल/रोटी के साथ खाने के लिए मही (बटर मिल्क) लेने हम जमींदार के दरवाजे पर जाते हैं, तो वो कहता है – “जाओ, अब उन्ही से जाकर मही मांगो”। वो हमें अपने खेत में काम नहीं देता है। गाँव का साहूकार हमें उधार पैसे देने से मना कर देता है। मजदूर को सेठ काम से निकाल देता है। नेता सरकारी अधिकारी को हमारा काम नहीं करने देते है; हमारी बस्ती की सड़क नहीं बनती है।

बात यही नहीं रुकती है; जो लोग ज्यादा सक्रिय होते हैं, उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जाता है। अगर वो जंगल जमीन पर बसे हैं; और आदिवासी इलाकों में तो आधा गाँव अतिक्रामक होता है, तो उन्हें वहां से बेदखल करते हैं। हमें से जुड़े ऐसे अनेक गाँव और लोग उजाड़ दिए गए; कईयों पर दस-दस मामले लगे और जेल भी जाना पड़ा। (https://pudr.org/unkept-promises-struggle-forests-land-and-wages-harda)

अब सवाल यह है कि किस गाँव, मोहल्ले, जाति, समुदाय ने किसको वोट दिया है, यह उजागर ना हो इसके लिए क्या किया जाए। जब मतदान मतपत्रों के जरिए होता था, तब इस बात से निपटने के लिए 1993 में चुनाव प्रक्रिया नियम (निर्वाचन का संचालन अधिनियम, १९६१) में धारा 59 (क) जोड़ी गई। इस धारा के अनुसार, किसी भी ख़ास विधानसभा क्षेत्र में अगर मतदातों को प्रताड़ना होने की शंका हो, तो उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए पूरे विधानसभा क्षेत्र के सभी बूथों की मतपेटियों के मतपत्रों को निकालकर और एक साथ मिलाकर फिर उनकी गिनती की जाए।

मगर ईवीएम (EVM) से मतदान की प्रक्रिया शुरू होने के बाद इस तरह की कोई भी सुरक्षा मतदाताओं के लिए नहीं बची। ईवीएम (EVM) में मतों की गिनती के संचालन के लिए 1992 में चुनाव प्रक्रिया नियम (निर्वाचन का संचालन अधिनियम, १९६१) में धारा 66 (क) जोड़ी गई। और इसके ही नियम 56 (2) (ग) के अनुसार वोटों की बूथवार गिनती कर उन्हें फॉर्म 20 में भरा जाता है।

लम्बे अनुभव के बाद, इस मुद्दे को लेकर हमने वर्ष 2013 में चुनाव आयोग को ई-मेल के जरिए पत्र लिखा। आयोग ने जवाब दिया: इस मुद्दे पर आयोग पहले से ही काम कर रहा है। उन्होंने 14 ईवीएम (EVM) के वोटों की एक साथ गिनती करने के लिए “टोटेलाईज़र” का उपयोग करने के लिए चुनाव संचालन अधिनियम में जरूरी बदलाव करने के लिए भारत सरकार को लिखा है। (https://drive.google.com/file/d/1ud3w_EuDSIJ8TmPcTI0bA-rG9Lcbfj-Q/view?usp=sharing )

इस मुद्दे पर हमने भी एक जनहित याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी, मगर वो डिसमिस हो गई। https://www.sci.gov.in/jonew/courtnic/rop/2014/32702/rop_235362.pdf

वर्तमान में, इस मुद्दे पर दो जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचार्थ है: पहली, वकील योगेश गुप्ता व्दारा दायर; दूसरी, दिल्ली के भाजपा के नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय। 12 जनवरी 2018 को इन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा: “ चुनाव आयोग की ओर से विद्वान वकील ने कहा कि मत की गुप्तता, व्यक्ति की निजता और क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों को के अधिकारों को खतरे में नहीं डालना चाहिए, और ऐसी परिस्थिति को टालना होगा जहाँ लोगों ने किसे अपना वोट दिया है, इस आधार पर उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव एवं पूर्वागृह से ग्रसित व्यवहार हो। इसलिए, “टोटेलाईज़र” से वोटों की गिनती करने के पहलूओं पर विचार करना होगा।” (https://www.livelaw.in/cluster-counting-votes-sc-decide-introduction-totaliser-feb-12/).

फरवरी 2018 को यह मामला फिर सुनवाई पर आया, तब केंद्र सरकार ने “टोटेलाईज़र” के प्रस्ताव का विरोध किया।https://www.outlookindia.com/website/story/no-need-of-totaliser-machines-at-this-juncture-for-counting-of-votes-centre-tell/309381.

नवम्बर 2018 में मामला में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया। https://www.indiatvnews.com/elections/lok-sabha-elections-2019-supreme-court-declines-urgent-hearing-on-pil-seeking-use-of-totaliser-for-counting-votes-in-polls-487035

जाने-माने सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता Anurag Modi अनुराग मोदी समाजवादी जन परिषद् के राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य हैं।
जाने-माने सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता अनुराग मोदी समाजवादी जन परिषद् के राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य हैं।

अब यह तो साफ है कि बात सिर्फ मेनका गांधी की नहीं है, देश के चुनाव आयोग और लॉ कमीशन ने भी यह बात पूरी तरह से मान ली है कि ईवीएम (EVM) से वोटों की गिनती के वर्तमान तरीके में मतदाता की प्रताड़ना होती है, उन्हें धमकी मिलती है और वो स्वतन्त्र होकर वोट नहीं दे पाते हैं। और यह भी साफ़ है कि इसका सबसे बुरा असर दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक (मुस्लिम) मतदाताओं पर होता है। यह ना सिर्फ सविंधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) में अपने विचार को बिना भय के स्वतंत्रता पूर्वक व्यक्त करने के अधिकार का उल्लघंन है, बल्कि यह चुनाव आयोग को संविधान की धारा 324 में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के दिए गए अधिकार एवं दायित्व का भी उल्लघंन है।

और जब आयोग यह मान चुका है कि ईवीएम (EVM) से गिनती में मतदाता स्वतंत्र रूप से और बिना डरे मतदान नहीं कर पाते हैं, तो फिर उसे जबतक “टोटेलाईज़र” के उपयोग की अनुमति नहीं मिल जाती तब तक उसे ईवीएम (EVM) से वोटिंग कराने की अपनी जिद्द पर पुनर्विचार करना चाहिए।

अनुराग मोदी

राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य, समाजवादी जन परिषद